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सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक-2020

  • 10 Oct 2020
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक-2020, इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन, सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019

मेन्स के लिये:

सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक-2020 से संबंधित चिंताएँ   

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक-2020 [Assisted Reproductive Technology (Regulation) Bill-2020] को लोकसभा में पेश किया गया था।

प्रमुख बिंदु: 

  • सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive Technology-ART):
    • सहायक प्रजनन तकनीक का प्रयोग बाँझपन की समस्या के समाधान के लिये किया जाता है। इसमें बाँझपन के ऐसे उपचार शामिल हैं जो महिलाओं के अंडे और पुरुषों के शुक्राणु दोनों का प्रयोग करते हैं।
    • इसमें महिलाओं के शरीर से अंडे प्राप्त कर भ्रूण बनाने के लिये शुक्राणु के साथ मिलाया जाता है। इसके बाद भ्रूण को दोबारा महिला के शरीर में डाल दिया जाता है।
    • इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (In Vitro fertilization- IVF), ART का सबसे सामान्य और प्रभावशाली प्रकार है। 
  • ‘सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक-2020’ का उद्देश्य: 
    • ART बैंकों एवं क्लीनिकों को विनियमित करना।
    • ART के सुरक्षित एवं नैतिक अभ्यास की अनुमति देना।
    • महिलाओं एवं बच्चों को शोषण से बचाना।
  • अनुपूरक स्थिति (Supplementary Status):
    • इसे सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019 (Surrogacy (Regulation) Bill (SRB), 2019) के पूरक के रूप में पेश किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगाना है।
    • यह विधेयक ART के लिये सलाहकार निकायों के रूप में कार्य करने हेतु SRB के तहत सरोगेसी बोर्डों को नामित करता है।

चिंताएँ: 

  • पहुँच में भेदभाव (Discrimination in Accessibility):
    • यह विधेयक एक शादीशुदा हेट्रोसेक्सुअल जोड़े (Married Heterosexual Couple) और शादी की उम्र से अधिक की एक महिला को ART का उपयोग करने की अनुमति देता है, जबकि एकल पुरुषों, साथ रहने वाले विषमलैंगिक जोड़ों एवं एलजीबीटीक्यू+ (LGBTQ+) व्यक्तियों या जोड़ों को ART का उपयोग करने से रोकता है।
    • यह विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और वर्ष 2017 के पुट्टास्वामी मामले के निजता के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करता हुआ प्रतीत होता है। 
    • SRB के विपरीत ART के तहत विदेशी नागरिकों पर कोई प्रतिबंध नहीं है किंतु यह सभी भारतीय नागरिकों को वंचित करता है जो एक अतार्किक निष्कर्ष है, यह भारतीय संविधान की मूल भावना को प्रतिबिंबित करने में विफल रहा है।
    • यह विधेयक एक बच्चे (कम-से-कम 3 वर्ष का) वाली विवाहित महिला के अंडा दान करने पर प्रतिबंधित लगाता है। हालाँकि परोपकारी कार्य के रूप में अंडा दान केवल एक बार संभव है यदि महिला ने विवाह के पितृसत्तात्मक संस्थान के लिये अपने कर्तव्यों को पूरा किया हो। 
  • दाताओं के लिये निम्न या कोई सुरक्षा नहीं:
    • यह विधेयक अंडा दाता को बहुत कम सुरक्षा प्रदान करता है। अंडों का विच्छेदन एक आक्रामक प्रक्रिया है, इसे यदि गलत तरीके से किया जाता है तो इससे मृत्यु भी हो सकती है।
    • इस विधेयक में अंडा दाता की लिखित सहमति को आवश्यक बताया गया है, किंतु प्रक्रिया के पहले या प्रक्रिया के दौरान दाता के परामर्श की आवश्यकता या उसके द्वारा दी गई सहमति वापस लेने का अधिकार नहीं दिया गया है।
    • एक महिला को वेतन, समय एवं प्रयास को लेकर हुए नुकसान के लिये कोई क्षतिपूर्ति नहीं मिलती है। 
    • शारीरिक सेवाओं के लिये भुगतान करने में नाकाम होना गैर-स्वतंत्र श्रमिक की स्थिति उत्पन्न करता है, जिसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 द्वारा निषिद्ध घोषित किया गया है।
    • कमीशनिंग दलों को केवल चिकित्सा की जटिलताओं या मृत्यु के लिये उसके नाम पर एक बीमा पॉलिसी प्राप्त करने की आवश्यकता के बारे में बताया गया है जिसमें कोई राशि या समयसीमा निर्दिष्ट नहीं है।
  • अस्पष्टता (Ambiguity): 
    • इस विधेयक में प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक (Pre-implantation Genetic) परीक्षण की आवश्यकता बताई गई है और जहाँ भ्रूण पूर्व-विद्यमान, पैतृक, आनुवंशिक रोगों’ से ग्रस्त होता है, उसे कमीशनिंग दलों की अनुमति से अनुसंधान के लिये दान किया जा सकता है।
      • इन विकारों को निर्दिष्ट नहीं किया गया है और यह बिल जोखिम वाले यूजेनिक्स (Eugenics) के एक अभेद्य कार्यक्रम को बढ़ावा देता है।
        • यूजेनिक्स विशिष्ट वांछनीय वंशानुगत लक्षणों वाले लोगों का चयन करके मानव प्रजातियों में सुधार करने का अभ्यास है।
  • सूचना का अप्रकटीकरण:
    • ART से पैदा हुए बच्चों को अपने माता-पिता को जानने का अधिकार नहीं है, जो उनके सर्वोत्तम हितों के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • ART और SRB के मध्य असंतुलन:
    • यद्यपि यह बिल और SRB क्रमशः ARTs एवं सरोगेसी को विनियमित करते हैं, इससे दोनों क्षेत्रों के बीच काफी दुहराव उत्पन्न होता है।
    • कोर ART प्रक्रियाओं को अपरिभाषित छोड़ दिया जाता है और उनमें से कुछ को एसआरबी में परिभाषित किया जाता है किंतु इस बिल में इसे परिभाषित नहीं किया गया है।
    • दोनों विधेयकों के तहत एक ही निषेधात्मक व्यवहार के लिये अलग-अलग दंड का प्रावधान किया गया है और कभी-कभी SRB के तहत अधिक दंड का भी प्रावधान है।
      • इस विधेयक के तहत अपराध, जमानती हैं किंतु SRB के तहत नहीं।
    • इस विधेयक के तहत रिकॉर्ड को 10 वर्ष तक बनाए रखा जाना चाहिये किंतु SRB के तहत इसकी अवधि 25 वर्ष निर्धारित की गई है।
  • दुहराव की स्थिति:
    • दोनों विधेयकों ने पंजीकरण के लिये कई निकायों की स्थापना की जिसके परिणामस्वरूप दुहराव बढ़ेगा और विनियमन की कमी होगी। 
  • युग्मकों की कमी (Gamete Shortage):
    • युग्मकों (Gamete) की कमी होने की संभावना है क्योंकि इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि क्या युग्मकों को अब ज्ञात मित्रों एवं रिश्तेदारों को उपहार में दिया जा सकता है जिसके बारे में पहले अनुमति नहीं थी।
      • युग्मक एक जीव की प्रजनन कोशिकाएँ हैं। इन्हें सेक्स कोशिकाओं के रूप में भी जाना जाता है। महिला युग्मकों को ओवा (Ova) या अंडा कोशिकाएँ कहा जाता है और पुरुष युग्मकों को शुक्राणु कहा जाता है।
  • सज़ा में वृद्धि:  
  • इस विधेयक और SRB के तहत 8-12 वर्ष की सज़ा एवं भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
  • गर्भधारण-पूर्व और प्रसव-पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के खराब प्रवर्तन से पता चलता है कि सज़ा में की गई वृद्धि इसके अनुपालन को सुरक्षित नहीं करती है।

आगे की राह: 

  • क्लीनिकों में नैतिकता समितियाँ होनी चाहिये और अनिवार्य परामर्श सेवाएँ उनसे स्वतंत्र होनी चाहिये।
  • ‘विधेयक के पूर्व संस्करणों में भ्रूण का उपयोग करके अनुसंधान को विनियमित किये जाने का प्रावधान था’ जिसे पुनः वापस लाया जाना चाहिये। साथ ही इस विधेयक और SRB के मध्य ‘युगल’, ‘बांझपन’, ‘ART क्लीनिक’ एवं ‘बैंकों’ की परिभाषाओं को लेकर आपस में तालमेल होना ज़रूरी है।
  • सभी ART निकायों को राष्ट्रीय हित में केंद्र एवं राज्य सरकारों के दिशा-निर्देशों से तथा  विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता एवं नैतिकता से संलग्न होना चाहिये।
  • इस विधेयक से संबंधित लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली सभी संवैधानिक, चिकित्सीय-कानून, नैतिक एवं नियामक चिंताओं के बारे में  पहले अच्छी तरह से समीक्षा की जानी चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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