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शासन व्यवस्था

रोगाणुरोधी प्रतिरोध

  • 24 Jul 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

AMR सर्विलांस एंड रिसर्च नेटवर्क, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

AMR के प्रसार के कारण

चर्चा में क्यों?    

हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने देश में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance- AMR) द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से निपटने हेतु विभिन्न उपायों पर प्रकाश डाला।

प्रमुख बिंदु

रोगाणुरोधी प्रतिरोध:

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance-AMR) का तात्पर्य किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी, आदि) द्वारा एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (जैसे एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंटिक्स) जिनका उपयोग संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है, के खिलाफ प्रतिरोध हासिल कर लेने से है। 
  • परिणामस्वरूप मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण जारी रहता है और दूसरों में फैल सकता है।
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को कभी-कभी "सुपरबग्स" के रूप में जाना जाता है।

AMR के प्रसार का कारण:

  • रोगाणुरोधी दवा का दुरुपयोग और कृषि में अनुचित उपयोग।
  • दवा निर्माण स्थलों के आसपास संदूषण शामिल हैं, जहाँ अनुपचारित अपशिष्ट से अधिक मात्रा में सक्रिय रोगाणुरोधी वातावरण में मुक्त हो जाते है।

भारत में AMR:

  • भारत में बड़ी आबादी के संयोजन के साथ बढ़ती हुई आय जो एंटीबायोटिक दवाओं की खरीद की सुविधा प्रदान करती है, संक्रामक रोगों का उच्च बोझ और एंटीबायोटिक दवाओं के लिये आसान ओवर-द-काउंटर (Over-the-Counter) पहुँच की सुविधा प्रदान करती है, प्रतिरोधी जीन की पीढ़ी को बढ़ावा देती है। 
  • बहु-दवा प्रतिरोध निर्धारक, नई दिल्ली मेटालो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (एनडीएम -1), इस क्षेत्र में विश्व स्तर पर तेज़ी से  उभरा है।
    • अफ्रीका, यूरोप और एशिया के अन्य भाग भी दक्षिण एशिया से उत्पन्न होने वाले बहु-दवा प्रतिरोधी टाइफाइड से प्रभावित हुए हैं।
  • भारत में सूक्ष्मजीवों (जीवाणु और विषाणु सहित) के कारण सेप्सिस से प्रत्येक वर्ष 56,000 से अधिक नवजात बच्चों की मौत होती है जो पहली पंक्ति के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी हैं।

AMR को संबोधित करने के लिये किये गए उपाय:

  • AMR नियंत्रण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम: इसे वर्ष 2012 में शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के तहत राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में प्रयोगशालाओं की स्थापना करके AMR निगरानी नेटवर्क को मज़बूत किया गया है।
  • AMR पर राष्ट्रीय कार्ययोजना: यह स्वास्थ्य दृष्टिकोण पर केंद्रित है और अप्रैल 2017 में विभिन्न हितधारक मंत्रालयों/विभागों को शामिल करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • AMR सर्विलांस एंड रिसर्च नेटवर्क (AMRSN): इसे वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था ताकि देश में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के सबूत और प्रवृत्तियों तथा पैटर्न का अनुसरण किया जा सके।
  • AMR अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने AMR में चिकित्सा अनुसंधान को मज़बूत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से नई दवाओं को विकसित करने की पहल की है।
    • ICMR ने नॉर्वे की रिसर्च काउंसिल (RCN) के साथ मिलकर वर्ष 2017 में रोगाणुरोधी प्रतिरोध में अनुसंधान हेतु एक संयुक्त आह्वान शुरू किया।
    • ICMR ने संघीय शिक्षा और अनुसंधान मंत्रालय (BMBF), जर्मनी के साथ AMR पर शोध के लिये एक संयुक्त भारत-जर्मन सहयोग किया है।
  • एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रम: ICMR ने अस्पताल के वार्डों और आईसीयू में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग तथा अति प्रयोग को नियंत्रित करने के लिये भारत में एक पायलट परियोजना पर एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप कार्यक्रम शुरू किया है।
    • DCGI ने अनुपयुक्त पाए गए 40 फिक्स डोज़ कॉम्बिनेशन पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • AMR के लिये एकीकृत स्वास्थ्य निगरानी नेटवर्क: एकीकृत AMR निगरानी नेटवर्क में हिस्सा लेने के लिये भारतीय पशु चिकित्सा प्रयोगशालाओं की तैयारी का आकलन करना।
    • ICMR ने जानवरों और मनुष्यों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध पैटर्न की तुलना के लिये एक पशु चिकित्सा मानक संचालन प्रक्रिया (Vet-SOPs) भी विकसित की है।
  • अन्य
    • भारत ने कम टीकाकरण कवरेज को संबोधित करने के लिये मिशन इंद्रधनुष जैसी कई गतिविधियाँ शुरू की हैं, साथ ही निगरानी एवं जवाबदेही में सुधार के लिये सूक्ष्म योजना और अन्य अतिरिक्त तंत्रों को मज़बूत किया गया है।
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ अपने सहयोगात्मक कार्य के लिये AMR को शीर्ष 10 प्राथमिकताओं में से एक के रूप में पहचाना है।

AMR पर विश्व स्वास्थ्य संगठन का पक्ष

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने AMR को वैश्विक स्वास्थ्य के लिये शीर्ष दस खतरों में से एक के रूप में पहचाना है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुशंसा की है कि देशों को वित्तपोषण और क्षमता निर्माण प्रयासों को बढ़ाने के लिये अपनी राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये, मज़बूत नियामक प्रणाली स्थापित करनी चाहिये तथा मनुष्यों, जानवरों एवं पौधों के स्वास्थ्य में पेशेवरों द्वारा एंटीमाइक्रोबियल के उत्तरदायी एवं विवेकपूर्ण उपयोग के लिये जागरूकता कार्यक्रमों का समर्थन करना चाहिये।
  • साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसे कई उपाय सुझाए हैं जो प्रभाव को कम करने और इस प्रतिरोध के प्रसार को सीमित करने के लिये विभिन्न स्तरों पर प्रयोग किये जा सकते हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.

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