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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में वायु प्रदूषण और नवजात स्वास्थ्य

  • 22 Oct 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

उत्तर भारत में वायु प्रदूषण, स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर- रिपोर्ट 

मेन्स के लिये:

भारत में वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य

चर्चा में क्यों?

'हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट’ (HEI) की रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर'- 2020 (SoGA- 2020) के अनुसार,  भारत में प्रतिवर्ष 116,000 से अधिक नवजात शिशुओं की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हो जाती है।

प्रमुख बिंदु:

  • SoGA रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर वायु की गुणवत्ता और इसके स्वास्थ्य पर प्रभाव तथा रुझानों का व्यापक विश्लेषण किया जाता है।
  •  रिपोर्ट में वायु प्रदूषण तथा भारत में शिशु मृत्यु के मध्य संबंध स्थापित करने का प्रयास किया गया है।

रिपोर्ट संबंधी प्रमुख तथ्य:

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 116,000 से अधिक नवजातों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हो जाती है।
  • 50% से अधिक नवजातों की मृत्यु आउटडोर 'पार्टिकुलेट मैटर'- 2.5 (PM 2.5) से जुड़ी थी, जबकि नवजात मृत्यु के अन्य कारणों में लकड़ी का कोयला/चारकोल, लकड़ी और गोबर के उपले जैसे ठोस ईंधन का उपयोग शामिल था।
    • PM 2.5 का आशय उन कणों या छोटी बूँदों से है जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है और इसीलिये इसे PM 2.5 के नाम से भी जाना जाता है।
  • वर्ष 2019 में आउटडोर और इनडोर वायु प्रदूषण के कारण स्ट्रोक, दिल का दौरा, मधुमेह, फेफड़ों का कैंसर, क्रोनिक फेफड़ों की बीमारियों और नवजात रोगों से 1.67 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी।
  • भारत में अधिकांश नवजातों की मृत्यु का कारण जन्म के समय वजन का कम होना और अपरिपक्व जन्म (Preterm birth) से संबंधित जटिलताएँ थीं।

COVID-19 और वायु प्रदूषण:

  • यद्यपि वायु प्रदूषण और COVID-19 महामारी के मध्य पूर्ण संबंध अभी तक ज्ञात नहीं हैं लेकिन दिल और फेफड़ों से संबंधित रोगियों में COVID-19 महामारी के संक्रमण और मृत्यु का खतरा अधिक रहता है।
  • वायु प्रदूषण में वृद्धि होने पर दिल एवं फेफड़ों की बीमारियों के बढ़ने की  संभावना भी बढ़ जाती है, अत: दक्षिण एशिया में बढ़ता वायु प्रदूषण स्तर COVID-19 महामारी की संभावना को बढ़ा सकता है।

भारत में वायु प्रदूषण का कारण:

  • ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की रिपोर्ट (वर्ष 2016) के अनुसार,  PM 2.5 के संकेंद्रण के आधार पर विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 उत्तर भारत में अवस्थित हैं। उत्तर भारत में वायु प्रदूषण के निम्नलिखित संभावित कारक हो सकते हैं: 

मौसम विज्ञान संबंधी (Meteorology):

  • शीत काल में उत्तर भारत में 'तापीय व्युत्क्रमण' और स्थिर वायु  की दशा देखने को मिलती है। 
  • स्थिर/शांत वायु की दशा में प्रदूषकों का प्रसार बाहरी क्षेत्रों में नहीं हो पाता है। इसी प्रकार तापीय व्युत्क्रमण होने पर प्रदूषकों का सतह के पास संकेंद्रण बढ़ जाता है जिससे दृश्यता कम हो जाती है। 

पवन अभिसरण क्षेत्र (Wind Convergence Zone):

  • सिंधु-गंगा का मैदान एक स्थालाब्ध (Landlocked) क्षेत्र है। हिमालय प्रदूषित हवा को उत्तर की ओर जाने से रोकता है,  इसे 'घाटी प्रभाव' (Valley Effect) के रूप में जाना जाता है।
  • इस क्षेत्र में 'कम दबाव के गर्त' का  निर्माण होता है जिससे आसपास की पवनें अपने साथ प्रदूषक भी लाती हैं।

असंगठित जलोढ़ मृदा (Loose Alluvial Soil):

  • सिंधु-गंगा बेल्ट सतत् जलोढ़ मृदा जमाव का सबसे बड़ा क्षेत्र है। जलोढ़ मृदा में असंगठित मृदा कण होते हैं। इस प्रकार वायु-जनित धूल के निर्माण में शुष्क जलोढ़ मृदा का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

PM कणों में मौसमी बदलाव (Seasonal variation of PM composition):

  • सिन्धु-गंगा बेसिन में मानवजनित स्रोतों का प्रदूषण में प्रमुख योगदान है।  आईआईटी-कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार, ग्रीष्मकाल में PM 10 में धूल का 40 प्रतिशत योगदान रहता है, जबकि सर्दियों में यह मात्र 13 प्रतिशत रहता है।

आगे की राह:

  • निम्न और मध्यम आय वाले देशों को वायु प्रदूषण के कारण गर्भावस्था और नवजातों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों को संबोधित करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाना चाहिये।
  • राष्ट्रीय सरकारों को समाज के कमज़ोर समूहों को संबोधित करने के लिये रणनीतिक हस्तक्षेप के माध्यम से व्यापक रणनीति अपनाने की आवश्यकता है।
  • ठोस ईंधन के कारण उत्पन्न होने वाले इनडोर प्रदूषण की जाँच के लिये सतत् सरकारी समर्थन की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू

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