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आंतरिक सुरक्षा

बोडो समूहों के साथ समझौता

  • 28 Jan 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

बोडो समूह, बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद

मेन्स के लिये:

बोडो समूहों के साथ समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने बोडो समूहों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

मुख्य बिंदु:

  • यह समझौता केंद्र सरकार, बोडो समुदाय और असम सरकार के बीच हुआ है।
  • केंद्र सरकार ने असम के विद्रोही समूहों में से एक ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ (National Democratic Front of Boroland- NDFB) के विभिन्न समूहों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

पृष्ठभूमि:

  • बोडो ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी हिस्से में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति है। यह राज्य की कुल आबादी के 5-6 प्रतिशत से अधिक है। बोडो (असमिया) समुदाय के लोग पूर्वोत्तर भारत के असम राज्य के मूल निवासी हैं तथा यह भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत भारत की एक महत्त्वपूर्ण जनजाति है।
  • असम के चार ज़िले कोकराझार (Kokrajhar), बक्सा (Baksa), उदलगुरी (Udalguri) और चिरांग (Chirang) बोडो प्रादेशिक क्षेत्र ज़िला (Bodo Territorial Area District- BTAD) का गठन करते हैं।
  • 1960 के दशक से ही बोडो अपने लिये बोडोलैंड नामक अलग राज्य की मांग करते आए हैं।

बोडोलैंड का मुद्दा:

  • असम में इनकी ज़मीन पर अन्य समुदायों का आकर बसना और ज़मीन पर बढ़ता दबाव ही बोडो असंतोष की प्रमुख वज़ह है।
  • अलग राज्य के लिये बोडो आंदोलन 1980 के दशक के बाद हिंसक हो गया और तीन धड़ो में बँट गया। पहले समूह का नेतृत्व NDFB ने किया जो अपने लिये अलग राज्य चाहता था। दूसरा समूह बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स है जिसने अधिक स्वायत्तता की मांग की। तीसरा समूह ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (All Bodo Students Union-ABSU) है जिसने मध्यम मार्ग की तलाश करते हुए राजनीतिक समाधान की मांग की।
  • वर्ष 1993 में ABSU के साथ पहली बार बोडो समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे जिसके फलस्वरूप सीमित राजनीतिक शक्तियों के साथ एक बोडोलैंड स्वायत्त परिषद का निर्माण हुआ।
  • बोडो अपने क्षेत्र की राजनीति, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधनों पर वर्चस्व चाहते थे और यह उन्हें 2003 में तब मिला जब बोडो समूहों ने हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा की राजनीति में आने पर सहमति जताई।

क्या है वर्तमान समझौता?

  • वर्तमान समझौते के अनुसार, बोडो वर्चस्व वाले गाँव जो वर्तमान में BTAD क्षेत्र से बाहर हैं, उन्हें BTAD क्षेत्र में शामिल किया जाएगा तथा गैर-बोडो आबादी के व्यक्तियों को इससे बाहर रखा जाएगा।
  • अब तक हुए समझौतों में BTAD क्षेत्र में गैर-अधिवासियों के लिये ‘नागरिकता या कार्य परमिट’ के मुद्दे से संबंधित प्रावधान नहीं किया गया था।
  • इस समझौते के अनुसार, ‘गैर-जघन्य अपराधों’ (Non-Heinous Crimes) के लिये NDFB समूहों के सदस्यों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले असम सरकार द्वारा वापस लिये जाएंगे और जघन्य अपराध संबंधी मामलों की समीक्षा की जाएगी।
  • इस समझौते से पहले भारत सरकार ने यह साफ कर दिया है कि असम की एकता बरकरार रहेगी और उसकी सीमाओं में कोई बदलाव नहीं होगा।
  • बोडो आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के परिवार को 5 लाख रुपए प्रदान किये जाएंगे।
  • बोडो क्षेत्रों के विकास की विशिष्ट परियोजनाओं के लिये केंद्र सरकार द्वारा 1500 करोड़ रुपए विशेष आर्थिक पैकेज के तौर पर प्रदान किये जाएंगे।
  • BTAD में नए क्षेत्रों को शामिल करने और न करने के संबंध में निर्णय करने के लिये एक समिति का गठन किया जाएगा। इस परिवर्तन के बाद विधानसभा की कुल सीटों की संख्या मौजूदा 40 से बढ़कर 60 हो जाएगी।
  • देवनागरी लिपि के साथ बोडो पूरे असम के लिये सहयोगी आधिकारिक भाषा होगी।
  • BTAD और संविधान की छठी अनुसूची के तहत उल्लिखित अन्य क्षेत्रों को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 [Citizenship (Amendment) Act, 2019] से छूट प्रदान की गई है।

समझौते से लाभ:

  • इस समझौते से असम में शांति, सद्भाव और एकजुटता की भावना को बल मिलेगा।
  • इस समझौते से सशस्त्र संघर्ष समूहों से जुड़े हुए लोग मुख्यधारा में शामिल होंगे और राष्ट्र की प्रगति में योगदान देंगे।
  • बोडो समूहों के साथ हुआ यह समझौता बोडो लोगों की विशिष्ट संस्कृति को संरक्षित कर उसे लोकप्रिय बनाएगा।
  • इस समझौते के बाद NDFB में शामिल लोग हिंसा का मार्ग छोड़ देंगे तथा अपने हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कर समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक महीने के भीतर अपने सैन्य संगठनों को भंग करेंगे।

स्रोत- द हिंदू

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