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एएआर के आदेश के कारण मुश्किल में सौर ऊर्जा उद्योग

  • 29 May 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों ?

दो अलग-अलग अग्रिम विनिर्णय प्राधिकरणों (Authority for Advance Rulings) द्वारा दिये गए हालिया आदेशों ने सौर उद्योग को चिंता में डाल दिया है। ये आदेश सौर सयंत्रों की स्थापना पर लागू जीएसटी दर के संबंध में दिये गए हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • इस मामले पर सौर ऊर्जा उद्योग ने सरकार से स्पष्टता की मांग की है, क्योंकि इस संदर्भ में महाराष्ट्र और कर्नाटक के अग्रिम विनिर्णय प्राधिकरणों ने अलग-अलग आदेश दिये हैं। 
  • महाराष्ट्र के एएआर ने स्थापना को एक पूर्ण कार्य अनुबंध मानते हुए 18% जीएसटी दर का समर्थन किया है, जबकि कर्नाटक के एएआर ने उपकरणों पर 5% की रियायती दर का समर्थन किया है।
  • पूर्व में सौर विद्युत क्षेत्र को उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क और वैट के मामले में रियायतें दी गई थीं। 
  • सौर उद्योग को डर है कि स्थापना संबंधी 18% जीएसटी शुल्क देश के 2022 तक 100 गीगावाट सौर क्षमता हासिल करने के लक्ष्य को पटरी से उतार सकता है।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि जीएसटी के अंतर्गत सौर ऊर्जा क्षेत्र को अस्पष्टता संबंधी मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि कुछ उपकरणों पर 5% की दर से जीएसटी लागू है, जबकि कुछ उपकरणों पर यह दर 18% एवं कुछ के मामले में यह 28% है। समेकित आपूर्ति पर यह दर 18% है।
  • अस्पष्टता की वजह से प्रावधानों की अलग-अलग प्रकार से व्याख्या की जाती है। ऐसे में दो अलग-अलग निर्णयों ने इस उलझन को और बढ़ा दिया है।
  • इस वजह से ‘सोलर पावर डेवलपर्स एसोसिएशन’ को सरकार के समक्ष उपस्थित होने के लिये मजबूर होना पड़ा, ताकि इस उलझन का कोई हल निकल पाए।
  • एसोसिएशन का मानना है कि उद्योग क्षेत्र के लिये अनिश्चितता की स्थिति हानिकारक है, क्योंकि यह क्षेत्र विनिर्माण गतिविधियों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण इनपुट प्रदान करता है।
  • ऐसे समय में, जब परियोजनाओं के संबंध में बोलियों (bidding) का दौर चल रहा है, करों में परिवर्तन जैसे मामले पूरी परियोजना को ही अव्यवहारिक बना सकते हैं। अतः सरकार को यह सुनिश्चित करने की सख्त आवश्यकता है कि करों के संदर्भ में स्थिति एकदम स्पष्ट रहे।
  • अतिरिक्त कर भार के कारण न केवल ईपीसी अनुबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, बल्कि यह देश में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के विस्तार में भी बाधक बन सकता है, क्योंकि ऊँची दरों के कारण परियोजना लागत में वृद्धि हो सकती है।
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