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जैव विविधता और पर्यावरण

मृदा में नमी का पूर्वानुमान पहली बार

  • 08 Oct 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आईआईटी गांधीनगर तथा भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने सात और तीस दिनों के अंतराल पर देशव्यापी ‘मृदा नमी पूर्वानुमान’ की सुविधा पहली बार पेश की है। इस संयुक्त सहयोग में मृदा के अंदर नमी की मात्रा का पूर्वानुमान लगाने के लिये भूमि सतह मॉडल का उपयोग किया गया है।

  • यह उत्पाद, जिसे ‘प्रायोगिक पूर्वानुमान भूमि सतह उत्पाद’ कहा जाता है, IMD की वेबसाइट पर उपलब्ध है तथा इसे हाइड्रोलॉजिकल मॉडल का उपयोग करके विकसित किया गया है जो अन्य मानकों के बीच मृदा, वनस्पति, भूमि उपयोग और भूमि आवरण को ध्यान में रखता है।
  • भारत अपने हाई-रिज़ोलूशन मृदा डेटाबेस पर काम कर रहा है जो मृदा के मानकों के लिये आवश्यक है। हालाँकि, यह डेटाबेस वर्तमान में पूरे देश के लिये उपलब्ध नहीं है।

भूमि सतह मॉडल

  • इसमें भूमि सतह और वायुमंडल के बीच पारस्परिक एवं जटिल क्रियाएँ (बायोफिजिकल, हाइड्रोलॉजिकल, और बायोजियोकेमिकल) शामिल हैं।
  • इसका अंतिम लक्ष्य क्षेत्रीय मौसम, जलवायु तथा जल विज्ञान पर भूमि सतह प्रक्रियाओं के प्रभावों की भविष्यवाणी में सुधार लाने के लिये इस तरह के ज्ञान को एकीकृत करना है।

इस प्रथा की महत्ता

  • मृदा की नमी कृषि के लिये महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि यह सीधे फसल की वृद्धि तथा क्षेत्र विशेष के लिये आवश्यक सिंचाई की मात्रा को प्रभावित करती है।
  • उचित समय पर मृदा की नमी का पूर्वानुमान कृषि में बेहतर योजना के लिये बीज के किस्मों के संदर्भ में लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करेगा।
  • रबी की फसल के लिये मृदा की नमी का पूर्वानुमान महत्त्वपूर्ण हो जाता है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, रबी फसलों के तहत बोया जाने वाला कुल क्षेत्रफल 625 लाख हेक्टेयर है जिसमें गेहूँ की खेती 300 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर होती है।
  • अनिवार्य रूप से मृदा की नमी हमें देश के विभिन्न हिस्सों में फसल की वृद्धि के लिये आवश्यक घटकों के बारे में अधिक जानकारी देती है।
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