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15वें वित्त आयोग की सिफारिशें: वित्तीय समावेशन

  • 04 Feb 2021
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट को संसद के समक्ष प्रस्तुत किया गया। इसमें केंद्र और राज्यों दोनों के वित्तीय घाटे और ऋण संबंधी आवश्यकताओं पर सिफारिशें प्रदान की गई हैं।

प्रमुख बिंदु

राजकोषीय घाटा:

  • केंद्र के लिये लक्ष्य: 15वें वित्त आयोग द्वारा यह अनुशंसा की गई है कि केंद्र सरकार राजकोषीय घाटे को वित्त वर्ष 2022 के सकल घरेलू उत्पाद के 6.8% से वर्ष 2025-26 में 4% तक ले आएगी।
  • राज्यों के लिये लक्ष्य: राज्यों के लिये 15वें वित्त आयोग ने वर्ष 2021-22 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का 4%, उसके अगले वर्ष में 3.5% और बाद के अगले तीन वर्षों के लिये 3% राजकोषीय घाटे की सिफारिश की।

राज्यों के लिये उधार सीमा

  • ज्ञात हो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 293 के तहत राज्य सरकारें, केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित उधार सीमा के अधीन कार्य करती हैं।
  • आयोग ने शुद्ध उधार सीमा को वर्ष 2021-22 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के 4 प्रतिशत, वर्ष 2022-23 में 3.5 प्रतिशत तथा वर्ष 2023-24 से वर्ष 2025-26 तक 3 प्रतिशत पर बनाए रखने की सिफारिश की है।
  • इसके अलावा यदि राज्य द्वारा ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित सुधारों के मानदंडों को पूरा कर लिया जाता है, तो उन्हें सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का अतिरिक्त 0.5 प्रतिशत ऋण लेने की अनुमति दी जाएगी।

केंद्र प्रायोजित योजना की बेहतर निगरानी: 

  • वार्षिक विनियोग की सीमा संबंधी एक राशि तय की जानी चाहिये, जिससे नीचे केंद्र प्रायोजित योजना के लिये धन का आवंटन रोक दिया जाए। 
    • निर्धारित सीमा से कम राशि की योजना को प्रशासनिक विभाग द्वारा जारी रखे जाने  की आवश्यकता को न्यायसंगत सिद्ध किया जाना चाहिये।
  • मौजूदा योजनाओं के जीवन चक्र को वित्त आयोगों की कार्य अवधि के समान ही डिज़ाइन किया गया है, जिससे सभी केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तृतीय-पक्ष मूल्यांकन को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा किया जा सकेगा।

नया FRBM फ्रेमवर्क:

  • राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM Act), 2003 के पुनर्गठन की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए 15वें वित्त आयोग ने सिफारिश की है कि ऋण स्थिरता को परिभाषित करने और उसे प्राप्त करने के लक्ष्य से संबंधित समय-सीमा की जाँच एक उच्च-स्तरीय अंतर-सरकारी समूह द्वारा की जा सकती है।
    • यह उच्च-संचालित समूह नए FRBM ढाँचे को तैयार कर सकता है और इसके कार्यान्वयन की देखरेख कर सकता है।
  • राज्य सरकारें स्वतंत्र सार्वजनिक ऋण प्रबंधन प्रकोष्ठों का गठन कर सकती हैं, जो उनके उधार कार्यक्रम को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने में मदद करेंगे।

स्रोत- पी.आई.बी.

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