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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

बढ़ती तकनीक और नैतिक दुविधा

  • 12 Feb 2019
  • 12 min read

संदर्भ

विकास चाहे देश का हो या फिर व्यक्ति का, यह अनेक तरीकों से तकनीकों की उचित वृद्धि और उनके विकास से जुड़ा हुआ है। मानव जीवन के अस्तित्व और प्रगति के लिये ज़रूरी है कि जीवन के हर पहलू में विज्ञान और तकनीक का इस्तेमाल हो। इस बात को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि नवीन आविष्कारों ने हमें बहुत लाभ पहुँचाया है और यह तकनीक ही है जिसने मानव जीवन को अत्यंत सहज, सरल और रोचक बना दिया है। लेकिन हाल ही में GM-Crop और ‘Designer Baby’ की नैतिकता पर उठ रहे सवालों ने एक बार फिर विज्ञान और तकनीक को नैतिकता और सामाजिक पहलुओं के नज़रिये से कठघरे में खड़ा कर दिया है।

ऐसे में सवाल है कि क्या तकनीक, भविष्य में कुछ नई चुनौतियों को जन्म देगी? तकनीकी प्रगति के कारण सामने आए मुद्दों ने इस बहस को तेज़ कर दिया है कि वे कौन से मानक हैं, जो तकनीक को नैतिकता के दायरे से बाहर न होने देने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं? इस लेख के ज़रिये हम इन्हीं मुद्दों पर चर्चा करेंगे।

तकनीक से जुड़े नवीनतम मुद्दे

  • जहाँ एक ओर ‘Technology’ का अर्थ ‘ज्ञान व कौशल’ के संयोजन से है, वहीं दूसरी ओर तकनीक की दिशा किस ओर हो इस पर विवाद लगातार सामने आ रहे हैं। चाहे वह पहले से ‘Robotics’ या ‘Space Programme’ पर किये जा रहे खर्च का विवाद हो या हाल ही में चर्चित चीनी वैज्ञानिक द्वारा CRISPR/Cas9 की मदद से दुनिया में पहले ‘Designer Baby’ बनाने के ऐलान में कही जा रही ‘Experimental Errors’ की बात हो। इन विवादों ने एक विमर्श को जन्म दे दिया है।
  • इसी बीच जाने-माने कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन द्वारा GM-Crop को एक असफल प्रयोग कहे जाने के कारण इस विमर्श पर चर्चा का बाज़ार और गर्म हो चला है। दरअसल, ये सभी विवाद ऐसी ‘नैतिक दुविधा’ की ओर इशारा करते हैं जिसमें विज्ञान और तकनीक की दिशा किस ओर हो, इसको तय करना आवश्यक हो जाता है।

GM-Crop और Designer Baby से जुड़ा मुद्दा

  • एम.एस. स्वामीनाथन का कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि BT Cotton भारत में विफल रहा है तथा यह किसानों के लिये आजीविका सुरक्षा प्रदान करने में भी असफल रहा है। स्वामीनाथन के इस बयान ने GM-Crop के लाभों पर ही संदेह पैदा कर दिया है।
  • वहीं, दूसरी ओर चीनी वैज्ञानिक द्वारा भ्रूण स्तर पर की गई Gene Editing ने अनेक नैतिक सवाल खड़े कर दिये हैं, क्योंकि भ्रूण स्तर पर अभी तक किसी प्रकार की Gene Editing नहीं की गई थी। उनके द्वारा किये गए इस प्रयोग में अनेक वैश्विक नियमों को नज़रंदाज़ करने की बात भी कही जा रही है। उल्लेखनीय है कि इस प्रयोग में CRISPR/Cas9 तकनीक का प्रयोग किया गया है।

इससे जुड़े नैतिक पक्ष

यह ठीक बात है कि नए युग के साथ नई तकनीक जब-जब आती है, तो उसके साथ नए प्रयोग होना लाज़मी है। यह प्रयोग समाज के विकास के लिये ज़रूरी भी होता है। इसी के मद्देनजर भूख के खिलाफ़ इंसान की जो जंग है उसमें GM-Crop की अहम भूमिका हो सकती है। GM-Crop द्वारा फसलों की उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

  • भारत में BT Cotton का उत्पादन GM-Crop के रूप में ही शुरू हुआ। वर्ष 2002 में BT Cotton को मंज़ूरी मिलने के बाद भारत के लगभग 10 राज्यों में BT-Cotton की खेती हो रही है।
  • BT Cotton जैसी नकदी फसलों के उत्पादन के साथ-साथ जीन संवर्द्धन तकनीक द्वारा फसलों में पोषक तत्त्वों को भी बढ़ाया जा सकता है। इसी के चलते अमेरिका में वर्ष 2000 में अधिक पोषक तत्त्वों वाले जीन संवर्द्धित सुनहरे चावल का विकास किया गया।
  • इसके अलावा GM-Crop कीटों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर कीटनाशकों के इस्तेमाल को कम करने में सहायक है। वहीं फसलों के साथ उगने वाले अवांछ्नीय पौधों पर भी GM-Crop द्वारा लगाम लगाई जा सकती है।
  • दूसरी ओर, CRISPR/Cas9 जैसी जीन एडिटिंग तकनीक द्वारा Sickle Cell Anemia जैसी बीमारियों पर विजय पाई गई है। साथ ही इसके द्वारा भविष्य में विभिन्न लाइलाज और जानलेवा बीमारियों जैसे-कैंसर, डायबिटीज़ आदि से निजात मिलने की संभावना है।

मनुष्य के जीन में चिकित्सीय कारणों से बदलाव आना नैतिक रूप से न्यायसंगत लगता है लेकिन ‘Designer Baby’ के स्तर पर मनुष्य के गुणों में संवर्द्धन के लिये इसे न्यायप्रिय रूप में देखना सवाल खड़े कर रहा है। M.S.Swaminathan द्वारा GM-Crop को लेकर की गई हालिया टिप्पणी ने भी कुछ ऐसे ही सवाल उठाए हैं।

इस विषय से जुड़े अनैतिक पक्ष

कृषि को हमारी अर्थव्यवस्था की धुरी और किसान को देश का अन्नदाता कहा जाता है। लेकिन किसानों द्वारा आत्महत्या करना भी एक बड़ा सच है। उत्पादन में इज़ाफा करने का दावा करने वाली GM-Crop, अपने दावों से इतर साबित हो रही है और GM बीज मुहैया कराने वाली कंपनियों का मुनाफ़ा कई गुना बढ़ गया है।

  • कई वैज्ञानिक आँकड़े बताते हैं कि GM-Crop के चारे ने जानवरों को न केवल नुकसान पहुँचाया बल्कि दुधारू पशुओं के दुग्ध उत्पादन पर भी इसका नकारात्मक असर देखने को मिला। वहीं GM-SOYA के संपर्क में आए चूहों में असामान्य शुक्राणु पाए गए। लिहाज़ा GM-Crop के दीर्घकालिक प्रभावों की अनदेखी नहीं की जा सकती है।
  • साथ-ही-साथ Property Right का मुद्दा भी इसके नैतिक होने पर प्रश्नचिह्न लगाता है। उदाहरण के तौर पर एकाधिकार हासिल करने के लिये बड़ी कंपनियाँ छोटी-छोटी बीज कंपनियों को खरीद लेती हैं जिससे किसानों की आजीविका प्रभावित होती है क्योंकि उन्हें प्रत्येक वर्ष बीज के लिये भुगतान करना पड़ता है।
  • इसी प्रकार CRISPR/Cas9 जैसी तकनीक के इस्तेमाल का दायरा केवल चिकित्सीय सुधार के लिये न होकर मनुष्य के DNA में गुणों के संवर्द्धन की ओर उन्मुख है जो निकट भविष्य में अनेक चुनौतियाँ खड़ी कर सकता है। उदाहरण के लिये सफ़ेद चूहों पर किये गए एक प्रयोग में ‘Gene Editing’ के बाद उनकी अगली संतति में अनेक विकार उत्पन्न होने लगे। ऐसा किसी गलत प्रोटीन के बन जाने के कारण हुआ जो कि Gene Editing का परिणाम था।

  • इसी प्रकार ‘Designer Baby’ की संकल्पना सामाजिक असमानता व भेदभाव की एक नई खाई पैदा करेगी। ‘Designer Baby’ अधिक बेहतर दिखने वाले अधिक कुशल व अधिक बुद्धिमान बनाए जा सकेंगे। इससे समाज में एक नए वंचित वर्ग का जन्म होगा। समाज में पहले से मौजूद असमानताओं के बीच यह कदम उत्प्रेरक का कार्य करेगा। ‘Designer Baby’ को समाज में ज़्यादा अवसर प्राप्त होंगे जिससे समाज का एक वर्ग अधिक तेज़ी से आगे बढ़ने लगेगा। साथ-ही-साथ Gene Editing द्वारा ‘एथिलिटिक एबिलिटी’ बढ़ाई जा सकती है जिससे खेल जगत में होड़ का कोई आधार नहीं बचेगा।
  • Gene Editing के कारण व्यक्तिगत पहचान को भी एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि इसका प्रयोग आपराधिक गतिविधियों या उनसे बचने के लिये भी किया जा सकता है।
  • ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि तकनीक की दिशा में बारीकी से सोच-विचार हो ताकि इसका गलत इस्तेमाल न होने पाए।

आगे की राह

भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक कर्त्तव्यों में इसकी चर्चा की गई है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे। लेकिन इन मानकों को तय करना जिससे किसी प्रकार की असमानता, भेदभाव व शोषण न हो, यह भी एक सभ्य समाज की ही पहचान है।

  • इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी भी तकनीक के साथ उसके सही व गलत पक्ष जुड़े होते हैं। लेकिन तकनीक का प्रयोग न केवल मानव जीवन के उत्थान में बल्कि इस तरह होना चाहिये कि इसका लाभ पूरे जीव जगत व प्रकृति को भी हो।
  • तकनीक के अत्यधिक उपयोग ने आज ‘Global Warming’ जैसी समस्याओं को भी पैदा किया है ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि नई तकनीक को अपनाने से पहले उसकी बारीकी से जाँच की जाए। यह भी ध्यान रखना होगा कि किसी भी तकनीक से भविष्य में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का केवल कयास लगाकर उन्हें ख़ारिज करना अक्लमंदी नहीं है।
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प्रश्न : ‘जहाँ एक ओर तकनीक ने सदैव विकास की राह प्रशस्त की है, वहीं दूसरी ओर कुछ नैतिक दुविधाएँ भी तकनीक की राह में आती रही हैं।’ हालिया संदर्भों का उदाहरण देते हुए कथन की पुष्टि कीजिये।

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