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  • 07 Nov 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    “उपनिवेशवाद के माध्यम से एक देश, दूसरे देश पर नियंत्रण स्थापित करता है जबकि साम्राज्यवाद या तो औपचारिक रूप से या अनौपचारिक रूप से राजनीतिक या आर्थिक नियंत्रण का मार्ग प्रशस्त करता है” इन नीतियों के पीछे अंतर्निहित तर्कों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण:

    • संक्षेप में दोनों शब्दों को समझाइये।
    • दोनों शब्दों के बीच अंतर को स्पष्ट करते हुए उनके उदय के पीछे अंतर्निहित तर्क पर चर्चा कीजिये।
    • उपनिवेशों और स्वदेशी लोगों पर पड़ने वाले इसके परिणामों को लिखिये।

    परिचय:

    • साम्राज्यवाद एक ऐसी नीति है जिसमें एक महत्वाकांक्षी देश सैन्य बल के साथ-साथ शक्ति के अन्य साधनों का प्रयोग कर अन्य देशों या क्षेत्रों पर अपना प्रभाव स्थापित करता है।
    • उपनिवेशवाद एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक शक्तिशाली देश द्वारा उपनिवेश या बस्तियों को (अन्य देशों या क्षेत्रों में) अपने राजनीतिक और आर्थिक लाभ के लिये स्थापित किया जाता है।

    प्रारूप:

    • उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के मध्य अंतर:
      यद्यपि दोनों ही शब्द शोषण के स्वरूप को रेखांकित करते हैं लेकिन उपनिवेशवाद में जहाँ एक राष्ट्र दूसरे पर नियंत्रण स्थापित करता है, वही साम्राज्यवाद या तो औपचारिक रूप से या अनौपचारिक रूप से राजनीतिक या आर्थिक नियंत्रण से संबंधित है। सरल शब्दों में, उपनिवेशवाद को एक अभ्यास माना जा सकता है तथा साम्राज्यवाद एक विचार है जिसका अभ्यास किया जाता है।
      • उपनिवेशवाद एक ऐसा शब्द है जहाँ एक देश अन्य क्षेत्रों पर विजय प्राप्त करता है और शासन करता है। अर्थात् विजेता देश द्वारा अपने लाभ के लिये विजित देश के संसाधनों का दोहन किया जाता है। जबकि साम्राज्यवाद का अर्थ है एक साम्राज्य को स्थापित करना, पड़ोसी क्षेत्रों में विस्तार करना एवं अपने प्रभुत्व का विस्तार करना।
      • उपनिवेशवाद पूरी तरह से एक क्षेत्र की सामाजिक और भौतिक संरचना तथा अर्थशास्त्र को परिवर्तित कर सकता है जो दीर्घकालीन प्रक्रिया का प्रतिफल होता है।
      • उपनिवेशवाद शब्द का उपयोग भारत, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, अल्जीरिया, न्यूज़ीलैंड और ब्राज़ील जैसे उन सभी औपनिवेशिक देशों के संदर्भ में किया गया है जो यूरोप द्वारा नियंत्रित थे। दूसरी ओर, साम्राज्यवाद में इस बात को वर्णित किया जाता है कि एक विदेशी सरकार किसी क्षेत्र को अपना उपनिवेश बनाए बिना उस पर शासन करे। उदाहरण के रूप में पोर्टरिको और फिलीपींस पर अमेरिकी वर्चस्व को साम्राज्यवाद के विस्तार के रूप में देखा जाता है।
      • उपनिवेशवाद में किसी भी नए क्षेत्र के लोगों का आवागमन होता है तथा उन्हें स्थायी निवासियों के रूप में बसते भी देखा जा सकता है। बावजूद इसके उनकी निष्ठा अपनी मातृभूमि के प्रति ही बनी रहती है। साम्राज्यवाद या तो संप्रभुता द्वारा या अप्रत्यक्ष तंत्र नियंत्रण के माध्यम से विजित क्षेत्रों पर शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
    • उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद दोनों की उत्पत्ति की बात करें तो साम्राज्यवाद का इतिहास उपनिवेशवाद की तुलना में कहीं अधिक विस्तृत है। जहाँ उपनिवेशवाद 15वीं शताब्दी की उपज है वही साम्राज्यवाद की उत्पत्ति रोमनों के समय में हुई।

    उत्पत्ति के पीछे तर्क:

    • आर्थिक कारण:
      • वर्ष 1870 के उत्तरार्द्ध में यूरोप में त्वरित औद्योगिक विकास हुआ। उत्पादन इतना अधिक होने लगा कि खपत के लिये बाज़ार की आवश्यकता महसूस हुई। साथ ही सतत रूप से उद्योगों को संचालित करने के लिये कच्चे माल की आवश्यकता बढ़ती चली गई। अत: यूरोपीय देशों में एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों के अविकसित देशों पर नियंत्रण करने की प्रतिस्पर्द्धा प्रारंभ हो गई।
      • अब यूरोपीय उधमियों और बैंकरों के पास निवेश करने के लिये अधिक पूंजी थी, जिसने विदेशी निवेशों को जोखिमों के बावजूद अधिक मुनाफा प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित किया।
      • औद्योगिक राष्ट्र की ज़रूरतों जैसे-सस्ते श्रम तथा तेल, रबर और स्टील मैंगनीज़ जैसे कच्चे माल की एक निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता ने औद्योगिक राष्ट्र को अस्पष्टीकृत क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिये प्रोत्साहित किया।
    • सैन्य और राजनीतिक कारण:
      • अग्रणी यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा इस बात को महसूस किया गया कि उपनिवेश सैन्य शक्ति, राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
      • सैन्य नेताओं द्वारा दावा किया कि एक महान शक्ति बनने के लिये एक मज़बूत नौसेना आवश्यक है इसके लिये नौसेना के जहाज़ों को कोयला और अन्य सामग्री की आपूर्ति सुनिशित करने के लिये वैश्विक स्तर पर सैन्य ठिकानों की आवश्यकता थी।
      • मानवीय और धार्मिक लक्ष्य:
      • पश्चिमी देशों के लोगों अर्थात श्वेत लोगों का ऐसा मानना था कि यूरोप को समुद्र से परे अपने छोटे भाइयों अर्थात् अश्वेत लोगों को सभ्य बनाने की आवश्यकता है। अतः उनका विचार था कि उपनिवेशों के माध्यम से अश्वेत लोगों को चिकित्सा, कानून और ईसाई धर्म सहित पश्चिमी सभ्यता जैसा वरदान प्राप्त होगा और उनका विकास संभव होगा ।
      • यूरोपीय शक्तियों का यह विचार ‘द व्हाइट मैन्स बर्डन’ के सिद्धांत से प्रेरित था।

    खोजी दृष्टि:

    साहसी व्यक्तियों तथा खोजकर्त्ताओं के कार्यों ने भी उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया । कुछ प्रशासकों तथा सैनिक प्रमुखों ने भी उपनिवेश की स्थापना को राष्ट्रीय दायित्व मानकर लगन एवं निष्ठा से इसे पूरा करने का प्रयास किया। विशेषकर अफ्रीकी महाद्वीप पर यूरोप के साम्राज्यवाद की स्थापना में साहसी खोजकर्त्ताओं की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

    निष्कर्ष:

    • पश्चिमी साम्राज्यवादी विस्तार के परिणाम कुछ जटिल है जिन्हें सरलीकृत करना आसन नहीं हैं।
    • इसके आर्थिक प्रभाव काफी हानिकारक एवं कष्टप्रद रहे और यूरोपीय कार्यशैली को स्वदेशी लोगों के दमन के रूप में देखा गया।
    • हालाँकि औपनिवेशिक देशों को पश्चिमी वैज्ञानिक और तकनीकी के संपर्क में आने से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों रूप में फायदा हुआ, परिणामस्वरूप औपनिवेशिक देशों में स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार हुआ साथ ही रेलवे, बंदरगाहों आदि के निर्माण के लिये तकनीकी शिक्षा तक लोगों की पहुँच सुनिश्चित हुई।
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