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  • 05 Nov 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की कलात्मक सृजनशीलता व्यापक थी। टिप्पणी कीजिये।(250 शब्द)

    उत्तर
    हल करने का दृष्टिकोण:
    • हड़प्पा काल के विभिन्न कला रूपों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • सिंधु घाटी सभ्यता के कलात्मक रूपों की विशेषताओं, विशिष्टताओं और व्यापक कल्पनाओं की चर्चा कीजिये।
    • सामाजिक जीवन में उपयोग किये जाने वाले विशिष्ट कला रूपों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • सिंधु घाटी में कला का उद्भव तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के उत्तरार्द्ध में हुआ था। इस सभ्यता के विभिन्न स्थलों से प्राप्त कला रूपों में मूर्तियाँ, मुहरें, मिट्टी के बर्तन, आभूषण, टेराकोटा मूर्तियाँ (पकी हुई मिटटी की मूर्तियाँ) आदि शामिल हैं।
    • उनके द्वारा बनाई मानव और और पशुओं की आकृतियाँ अत्यंत स्वाभाविक थीं क्योंकि उनकी शारीरिक बनावट अद्वितीय थी वहीं टेराकोटा कला के मामले में जानवरों की आकृतियों का निर्माण बेहद सावधानीपूर्वक किया गया था।

    प्रारूप:

    • निश्चित रूप से सिंधु घाटी सभ्यता के कलाकारों में उच्च कोटि की कलात्मक सूझ-बूझ और कल्पना शक्ति विद्यमान थी। इसे सिंधु घाटी सभ्यता के निम्नलिखित उदाहरणों में देखा जा सकता है:
    • पाषाण मूर्तियाँ: लाल बलुआ पत्थर से निर्मित पुरुष धड़ की त्रि-आयामी मूर्ति तथा शेलखड़ी से निर्मित दाढ़ी वाले पुरुष की आवक्ष मूर्ति पाषाण मूर्ति कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
    • कांसे की ढलाई: कांस्य मूर्तियों को 'लुप्त मोम' (लॉस्ट वैक्स) तकनीक का उपयोग करके बनाया जाता था। इसके सामान्य उदाहरणों में मानव के साथ-साथ जानवरों की आकृतियाँ जैसे- नर्तकी की मूर्ति , ऊपर उठे सिर और कूबड़ तथा मुड़े हुए सींग वाला भैंसा तथा बकरी की कलात्मक आकृतियाँ शामिल हैं।
    • मृण्मूर्तियाँ (टेराकोटा): सिंधु घाटी में पत्थर और कांस्य की मूर्तियों की तुलना में मानव टेराकोटा मूर्तियाँ कुछ अपूर्ण एवं बेडौल होती थीं। टेराकोटा मूर्तियों का अधिक यथार्थवादी स्वरूप गुजरात एवं कालीबंगा स्थलों से प्राप्त हुआ है।
      • टेराकोटा से बनी मूर्तियों में दाढ़ी वाले पुरुष तथा मातृदेवी जैसे देवियों/देवताओं, खिलौना गाड़ियों और जानवरों इत्यादि की मूर्तियाँ सबसे सामान्य थीं।
    • मुहरें और मुद्राएँ: मुहरों और मुद्राओं के निर्माण में आमतौर पर सेलखड़ी का प्रयोग किया गया है तथा कई स्थानों से सांड, एक सींग वाला गैंडा, भैंसा, बकरी, जैसे जानवरों की खूबसूरत आकृतियों वाली मुहरें प्राप्त हुई है जिनके निर्माण में गोमेद, चकमक पत्थर, तांबा, कांस्य और मिट्टी का प्रयोग किया गया है। विभिन्न मनोभावों के साथ जानवरों की आकृतियों का निर्माण अपने आप में उल्लेखनीय है।
      • इन मुद्राओं को तैयार करने का उद्देश्य मुख्यतः वाणिज्यिक था लेकिन इनका प्रयोग विशिष्ट पहचान के रूप में भी किया जाता था।
      • हड़प्पा की मानक मुद्रा 2×2 इंच की वर्गाकार पटिया थी जो आमतौर पर सेलखड़ी से बनाई जाती थी। प्रत्येक आयताकार/वर्गाकार मुद्रा में एक चित्रात्मक लिपि खुदी होती थी, जिसमें एक तरफ किसी जानवर या एक मानव की आकृति और दूसरी ओर चित्रात्मक लेख या दोनों तरफ चित्रात्मक लेख उत्कीर्ण थे।
    • मृद्भांड: मिट्टी के बर्तन/मृद्भांड को बनाने में अधिकांशतः चाक का उपयोग किया गया था हाथ से इनका निर्माण बहुत कम किया जाता था। चित्रित मृद्भांड की तुलना में सादे मृद्भांड अधिक प्रचलित थे।
      • सादे मृद्भांडो में लाल मिट्टी के चिकने मृद्भांड या बिना चिकने किये हुए मृद्भांड शामिल थे। इसमें घुंडी वाले बर्तन शामिल हैं तथा इनमें पकड़ने के लिये हत्था लगा होता था।
      • काले रंगीन बर्तनों पर लाल लेप की एक सुंदर परत है तथा इन लाल परतों पर काले चमकदार रंग से ज्यामितीय आकृतियाँ एवं जानवरों का चित्रण किया गया है।
      • सिंधु घाटी सभ्यता में बहुरंगी मृद्भांड बहुत कम पाए गए हैं। इसमें मुख्य रूप से छोटे कलश शामिल हैं जिनपर लाल, काले, हरे और कभी-कभी सफेद तथा पीले रंग से ज्यामितीय आकृतियाँ बनी हुई हैं। उत्कीर्णित बर्तन भी बहुत कम पाए गए हैं, और जो पाए गए हैं, उनमें उत्कीर्णन की सजावट पेंदी और बलि तश्तरियों तक ही सीमित है।
      • छिद्रित मृद्भांडों के तल पर एक बड़ा छेद और दीवार के चारों ओर छोटे छेद बने हुए हैं, जिनका उपयोग संभवत पेय पदार्थों के लिये किया जाता था।
    • मनके और आभूषण: सिंधुकालीन आभूषण बहूमूल्य धातुओं और रत्नों से लेकर हड्डी और पकी हुई मिट्टी से बने होते थे। खुदाई में आभूषणों में सोने और बहूमूल्य नगों के हार, तांबे के कड़े और मनके, सोने के कुंडल और बुंदे/झुमके, शीर्ष आभूषण, लटकनें तथा बटन, सेलखड़ी के मनके तथा बहुमूल्य रत्न प्राप्त हुए हैं।
      • मनके विभिन्न रूपों और आकार- तश्तरीनुमा, बेलनाकार, गोलाकार, ढोलकाकार होते थे। कुछ मनकों को दो या दो से अधिक पत्थरों को मिलाकर बनाया गया था तो कुछ पत्थरों पर सोने का आवरण चढ़ा होता था, कुछ काटकर या रंगकर सुंदर बनाया जाता था तो कुछ पर तरह-तरह की आकृतियाँ खुदी होती थीं।

    महत्त्व:

    • सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल जैसे- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो, उचित नगर नियोजन के साथ-साथ मकान, नियोजित गलियाँ, सार्वजनिक स्नानघर, जल निकासी प्रणाली, भंडारण की सुविधा, आदि को दर्शाते हैं।
    • सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों को देखकर इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यहाँ के लोगों द्वारा किस प्रकार विभिन्न निर्माण कार्यों में पत्थर का इस्तेमाल किया जाता था। सिंधु घाटी के कलाकार और शिल्पकार विभिन्न प्रकार के शिल्प कार्यों में कुशल थे। उदाहरण के लिये - धातु प्रगलन एवं काटने का कार्य, पत्थर पर नक्काशी का कार्य, मिट्टी के बर्तनों को बनाना एवं चित्रित करना, जानवरों, पौधों और पक्षियों के सरलीकृत रूपांकनों का उपयोग करके टेराकोटा चित्र बनाना इत्यादि।

    निष्कर्ष

    सिंधु घाटी सभ्यता के कलाकार और शिल्पियों की कलात्मक बहुमुखी प्रतिभा उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली विभिन्न प्रकार की सामग्रियों और उनके द्वारा बनाए गए विभिन्न कला रूपों में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। विभिन्न सामग्रियों पर पाए जाने वाले पैटर्न और डिजाइन उनकी रचनात्मकता को दर्शाते हैं जो सिंधु घाटी सभ्यता के विभिन्न स्थलों की खुदाई के दौरान देखने को मिले हैं। इन्हें देखकर कम-से-कम यह निष्कर्ष अवश्य निकाला जा सकता है कि सिंधु सभ्यता के लोग वास्तव में कला के सच्चे संरक्षक थे।

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