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  • 26 Jun 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    19वीं शताब्दी में प्रेस के उद्भव ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास और स्वतंत्रता के लिये संघर्ष में किस प्रकार योगदान दिया, वर्णन कीजिये साथ ही इसकी लोकप्रियता को दबाने के लिये ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में भी बताएं। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत में प्रेस के उद्भव का परिचय दीजिये।

    • देशी समाचार पत्रों को लिखिये।

    • राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता के संघर्ष में प्रेस के योगदान को लिखिये।

    • ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रेस पर लगाए गए प्रतिबंधों को लिखिये।

    • निष्कर्ष

    परिचय: भारत में पहला समाचार पत्र वर्ष 1780 में जेम्स आगस्टस हिक्की द्वारा प्रकाशित किया गया। इस समाचार पत्र का नाम बंगाल गज़ट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर था। इसके बाद बॉम्बे हैराल्ड व द कलकत्ता क्रॉनिकल जैसे अन्य समाचार पत्रों का प्रकाशन शुरू हुआ जिसके प्रति ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी नीति को अपनाया।

    द ऑरिजनल कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर

    संरचना:

    देशी भाषा के समाचार पत्र

    • जी. सुब्रहमण्यम अबयर के संरक्षण में द हिन्दू व स्वदेश मित्र
    • अमृत बाज़ार पत्रिका (शिशिर कुमार घोष)
    • वॉयस ऑफ इंडिया (दादा भाई नौरोजी)
    • केसरी (मराठी) व मराठा (अंग्रेज़ी), (बाल गंगाधर तिलक)
    • सुधारक (गोपाल कृष्ण गोखले)
    • हिन्दुस्तानी व एडवोकेट (जी.पी. वर्मा)

    भारतीय प्रेस का स्वतंत्रता संघर्ष व राष्ट्रवाद के उद्भव में योगदान

    • इन समाचार पत्रों का प्रकाशन राष्ट्रीय भावना से किया गया। इनका उद्देश्य व्यवसाय करना नहीं था।
    • इन समाचार पत्रों को वाचनालयों (लाइब्रेरी) में पढ़ा जाता था तथा लोगों में इनमें प्रकाशित समाचारों व संपादकीय पर चर्चा होती थी जिससे लोगों को राजनीतिक रूप से शिक्षित किया तथा राजनीतिक भागीदारी को प्रेरित किया।
    • इन समाचार पत्रों के द्वारा सरकार की भेदभाव पूर्ण व दमनकारी नीतियों की आलोचना की जाती थी।
    • भारतीय समाचार पत्रों ने वास्तव में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विपक्ष की भूमिका निभाई।
    • भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने अपनी नीतियों व बैठकों में पारित प्रस्तावों कोे भारतीयों तक पहुँचाने में समाचार पत्रों का प्रयोग किया।
    • मराठा व केसरी के माध्यम से बाल गंगाधर तिलक ने मध्यम वर्ग, कृषक, मज़दूरों व शिल्पकारों की समस्याओं व मुद्दों को उठाया।
    • राष्ट्रीय आंदोलन के प्रारंभिक चरण में प्रेस का प्रयोग भारतीयों के मध्य शिक्षा के प्रचार-प्रसार, राष्ट्रवादी विचारधारा का निर्माण, उपनिवेशी शासन के विरुद्ध राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करने में किया।

    ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रेस पर आरोपित प्रतिबंध

    • अंग्रेज़ अधिकारी इस बात से भयभीत थे कि यदि ये समाचार पत्र लंदन पहुँच गए तो उनके काले कारनामों का भंडाफोड़ हो जाएगा, इसलिये उन्होंने भारतीय प्रेस के साथ दमनकारी नीति का प्रयोग किया।
    • ब्रिटिश सरकार ने प्रेस के दमन के लिये विभिन्न कानूनों का प्रयोग किया जिसमें भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 124A के द्वारा सरकार को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असंतोष व भड़काने वाली गतिविधियाँ संचालित करने पर 3 वर्ष का कारावास या देश से निर्वासित करने का अधिकार दिया।
    • देशी भाषा के समाचार-पत्र अधिनियम, 1878 (The Vernacular Press Act, 1878) इस अधिनियम को पारित करने का उद्देश्य समाचार पत्रों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित करना तथा राजद्रोही लेखों को रोकना था।
      • इसके द्वारा अंग्रेज़ों व देशी भाषा के समाचार पत्रों के मध्य भेदभाव किया गया।
      • इसमें अपील करने का कोई अधिकार नहीं था।
    • वर्ष 1898 में एक अधिनियम द्वारा दंड संहिता को पुन: स्थापित किया गया और इसमें एक नई धारा 153-A को जोड़ा गया जिसमें भारत सरकार की अवमानना करने पर सजा का प्रावधान था।
    • भारतीय समाचार पत्र अधिनियम, 1910 (The Indian Press Act, 1910): इस अधिनियम के अनुसार स्थानीय सरकार द्वारा किसी समाचार पत्र के प्रकाशक से पंजीकरण जमानत मांग सकती थी।

    निष्कर्ष:

    • भारतीय प्रेस ने स्वतंत्रता संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, लोगों को उनके राजनीतिक अधिकारों का ज्ञान, सरकार की भेदभाव पूर्ण नीति की आलोचना, शिक्षा का प्रचार-प्रसार, राष्ट्रीय नेताओं द्वारा आंदोलनों की सूचना के प्रसार आदि में प्रेस का सराहनीय योगदान रहा।
    • देश के विभिन्न भागों के स्वतंत्रता सेनानियों के मध्य परस्पर विचारों के आदान-प्रदान करने में प्रेस ने समर्थ बनाया।
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