लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



State PCS Current Affairs

झारखंड

सोहराई व कोहबर चित्रकला

  • 18 Sep 2021
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

17 सितंबर, 2021 को झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने रांची स्थित राजभवन में डाक विभाग द्वारा सोहराई एवं कोहबर चित्रकला पर जारी एक विशेष लिफापे का लोकार्पण किया।

प्रमुख बिंदु

  • सोहराय व कोहबर कला झारखंड की दो मुख्य लोककला है। यह दोनों चित्रकला मानव सभ्यता के विकास को दर्शाती है। 
  • इन दोनों चित्रकला में नैसर्गिक रंगों का उपयोग किया जाता है। यह कला हजारीबाग और चतरा में मुख्य रूप से ज़्यादा प्रचलित है।
  • झारखंड के अनेक ज़िलों में कोहबर एवं सोहराई की समृद्ध परंपरा रही है। संभवत: आज की कोहबर कला झारखंड में पाए जाने वाले सदियों पुराने गुफाचित्रों का ही आधुनिक रूप है। हजारीबाग के कोहबर चित्रकला के चितेरे मुख्यत: आदिवासी हैं। 
  • मिट्टी की दीवारों पर बनाए जाने वाले चित्रण महिलाओं द्वारा बनाए गए हैं। यह चित्रण बहुत ही कलात्मक और इतने स्पष्ट होते हैं कि आसानी से पढ़े जा सकते हैं।
  • कोहबर के चित्रों का विषय सामान्यत: प्रजनन, स्त्री-पुरुष संबंध, जादू-टोना होता है, जिनका प्रतिनिधित्व पत्तियों, पशु-पक्षियों, टोने-टोटके के ऐसे प्रतीक चिह्नों द्वारा किया जाता है, जो वंश वृद्धि के लिये प्रचलित एवं मान्य हैं, जैसे- बाँस, हाथी, कछुआ, मछली, मोर, कमल या अन्य फूल आदि। इनके अलावा शिव की विभिन्न आकृतियों और मानव आकृतियों का प्रयोग भी होता है। ये चित्र घर की बाहरी अथवा भीतरी दीवारों पर पूरे आकार में अंकित किये जाते हैं।
  • हजारीबाग ज़िले के जोरकाठ, इस्को, शंरेया, सहैदा, ढेठरिगे, खराटी, राहम आदि गाँवों में कोहबर चित्रांकन सदियों से होता आ रहा है।
  • सोहराई चित्रों में दीवारों की पृष्ठभूमि मिट्टी के मूल रंग की होती है। उस पर कत्थई राल, गोद (कैओलीन) और काले (मैंगनीज) रंगों से आकृतियाँ’ बनाई जाती हैं। कोहबर एवं सोहराई चित्रों में विभिन्न आदिवासी समूह या उपजाति के अनुसार, थोड़ी भिन्नता पाई गई है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2