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Sambhav-2024

  • 11 Mar 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    दिवस- 97

    प्रश्न 1. अवसरों और चिंताओं दोनों पर विचार करते हुए भारत की ऊर्जा संक्रमण रणनीति में कोयला आधारित हाइड्रोजन की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत की महत्त्वाकांक्षी ऊर्जा संक्रमण योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • भारत की ऊर्जा परिवर्तन रणनीति में हरित हाइड्रोजन की भूमिका का उल्लेख कीजिये।
    • संबंधित अवसरों एवं चिंताओं पर प्रकाश डालिये।
    • आगे की राह बताइये।

    परिचय:

    जैसे-जैसे भारत अपनी अर्थव्यवस्था को डीकार्बोनाइज़ करने तथा महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने का प्रयास कर रहा है, हरित हाइड्रोजन एक स्थायी एवं कम-कार्बन भविष्य को प्राप्त करने में एक प्रमुख आयाम के रूप में उभर रहा है।

    हरित हाइड्रोजन भारत की ऊर्जा संक्रमण रणनीति के लिये काफी महत्त्व रखता है। इसे देश के महत्त्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक प्रमुख तत्त्व के रूप में देखा जाता है, जिसमें ग्लासगो COP26 की प्रतिबद्धता के अनुसार वर्ष 2070 तक 'शुद्ध शून्य' तक पहुँचना भी शामिल है।

    मुख्य भाग:

    हरित हाइड्रोजन की भूमिका:

    • ऊर्जा सुरक्षा: भारत जीवाश्म ईंधन के आयात पर काफी हद तक निर्भर है। प्रचुर मात्रा में नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग करके हरित हाइड्रोजन उत्पादन भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ा सकता है।
      • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के एक अध्ययन के अनुसार, "जीवाश्म ईंधन के लिये भारत का वार्षिक आयात बिल वर्ष 2040 तक तीन गुना होने का अनुमान है क्योंकि देश में अगले दो दशकों में विश्व स्तर पर सबसे अधिक ऊर्जा मांग में वृद्धि होगी।"
    • ग्रिड स्थिरता और संतुलन: हरित हाइड्रोजन से अधिशेष उत्पादन के दौरान अतिरिक्त बिजली को संग्रहित करना सुलभ हो सकता है और मांग अधिक होने पर इसे वापस ग्रिड में भेजा जा सकता है। इससे ग्रिड को स्थिर करने तथा नवीकरणीय ऊर्जा के साथ इसके एकीकरण को सुविधाजनक बनाने में मदद मिल सकती है।
    • सतत् गतिशीलता: हरित हाइड्रोजन भारी वाहनों, शिपिंग एवं विमानन के लिये आदर्श स्वच्छ ईंधन है जहाँ विद्युतीकरण व्यावहारिक नहीं है। हाइड्रोजन पर चलने वाले ईंधन सेल इलेक्ट्रिक वाहन (FCEVs) बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों (BEVs) की तुलना में लंबी दूरी तक चलने और ईंधन को तीव्रता से भरने की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे ये लंबी दूरी के परिवहन के लिये व्यवहार्य हो जाते हैं। हाइड्रोजन ईंधन भरने के लिये बुनियादी ढाँचे का निर्माण FCEV अपनाने को बढ़ावा दे सकता है जिससे परिवहन में होने वाले उत्सर्जन में कटौती हो सकती है।
    • उद्योगों का डीकार्बोनाइज़ेशन: हरित हाइड्रोजन स्टील, अमोनिया उत्पादन और रासायनिक विनिर्माण जैसे उद्योगों में जीवाश्म ईंधन की जगह ले सकता है, जिससे भारत में कार्बन उत्सर्जन में कटौती होगी तथा जलवायु उद्देश्यों को पूरा करने में सहायता मिलेगी।
      • कोयले से चलने वाले संयंत्रों को हाइड्रोजन से चलने वाले संयंत्रों से बदलने से भारतीय शहरों की वायु गुणवत्ता में काफी सुधार होगा।
    • रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास: हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के विकास से नवीकरणीय ऊर्जा संबंधी बुनियादी ढाँचे एवं हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों के विकास, स्थापना, संचालन तथा रखरखाव के क्षेत्र में रोज़गार सृजित हो सकते हैं। इससे स्वच्छ ऊर्जा में निवेश तथा नवाचार को बढ़ावा मिलने के साथ आर्थिक विकास और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा मिलेगा।

    भारत में हरित हाइड्रोजन संबंधी अवसर:

    • नवीकरणीय ऊर्जा पावरहाउस: भारत की बढ़ती सौर एवं पवन ऊर्जा क्षमता इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से लागत प्रभावी हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान करती है।
    • विनिर्माण केंद्र: भारत इलेक्ट्रोलाइज़र, ईंधन सेल एवं हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के लिये अन्य महत्त्वपूर्ण घटकों के निर्माण में वैश्विक नेतृत्वकर्त्ता बन सकता है।
    • मिशन और प्रोत्साहन: सरकार ने वर्ष 2022 में एक समर्पित बजट के साथ राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन शुरू किया ताकि:
      • वैश्विक नेतृत्वकर्त्ता बन सके: इस मिशन का लक्ष्य भारत को हरित हाइड्रोजन एवं संबंधित क्षेत्र में प्रमुख उत्पादक तथा निर्यातक के रूप में स्थापित करना है।
      • उत्पादन प्रोत्साहन: ग्रीन हाइड्रोजन संक्रमण के लिये रणनीतिक हस्तक्षेप (SIGHT) कार्यक्रम इलेक्ट्रोलाइज़र के निर्माण के साथ हरित हाइड्रोजन उत्पादन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने पर केंद्रित है।
    • निर्यात क्षमता: बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करने के लिये भारत के हरित हाइड्रोजन का निर्यात किया जा सकता है, जिससे नए आर्थिक अवसर सृजित होंगे।

    संबंधित चिंताएँ और चुनौतियाँ:

    • उच्च उत्पादन लागत: वर्तमान इलेक्ट्रोलाइज़र तकनीक अभी तक लागत प्रभावी नहीं है। इन प्रणालियों के लिये उच्च अग्रिम पूंजी व्यय, पारंपरिक तरीकों की तुलना में हरित हाइड्रोजन के उत्पादन को महँगा बनाता है।
    • भंडारण और परिवहन: हाइड्रोजन में मात्रा के हिसाब से ऊर्जा घनत्व कम होता है, जिससे इसका भंडारण और परिवहन चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इस क्रम में पाइपलाइनों या विशेष भंडारण जहाज़ों के लिये एक समर्पित बुनियादी ढाँचा नेटवर्क विकसित करने की आवश्यकता है।
    • मौजूदा ग्रिड के साथ एकीकरण: मौजूदा ऊर्जा ग्रिड बुनियादी ढाँचे के साथ हरित हाइड्रोजन उत्पादन को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश तथा अनुकूलित योजना की आवश्यकता होती है।
    • सीमित घरेलू मांग: वर्तमान में भारत में हरित हाइड्रोजन की घरेलू मांग सीमित है। इसका तात्पर्य यह है कि हाइड्रोजन की मांग के बिना उसका उत्पादन करने का जोखिम बना हुआ है।

    आगे की राह:

    • वित्तीय प्रोत्साहन: सरकार का राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन इस दिशा में एक अच्छी शुरुआत है। इस क्षेत्र में सब्सिडी एवं कर छूट के माध्यम से निरंतर प्रोत्साहन द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सरकार, निजी क्षेत्र तथा अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग करने के माध्यम से तकनीकी प्रगति एवं बुनियादी ढाँचे के विकास में तेज़ी ला सकती है।
    • बुनियादी ढाँचा विकास: लंबी दूरी के परिवहन के लिये पाइपलाइनों में निवेश करना चाहिये। जिसमें विशेष रूप से प्रमुख परिवहन गलियारों में रणनीतिक रूप से स्थित हाइड्रोजन ईंधन स्टेशन स्थापित करना तथा कुशल हाइड्रोजन भंडारण सुविधाओं का विकास करना शामिल है।
    • मांग का सृजन: सार्वजनिक खरीद नीतियाँ लागू करनी चाहिये, जो सरकारी वाहनों और बिजली संयंत्रों जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन के उपयोग को अनिवार्य बनाती हैं। हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों की व्यवहार्यता प्रदर्शित करने के लिये विभिन्न उद्योगों में पायलट परियोजनाओं को वित्तपोषित करना चाहिये। एक मज़बूत हाइड्रोजन बाज़ार के निर्माण हेतु निजी कंपनियों के साथ सहयोग करना भी आवश्यक है।
    • कौशल विकास एवं क्षमता निर्माण: हाइड्रोजन मूल्य शृंखला में शामिल इंजीनियरों, तकनीशियनों तथा अन्य पेशेवरों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करना चाहिये। हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों में विशेष पाठ्यक्रम हेतु शैक्षणिक संस्थानों के साथ साझेदारी करनी चाहिये।
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