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Sambhav-2024

  • 27 Feb 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस 86

    Q1. स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों एवं प्रकारों की व्याख्या कीजिये। इसके पारिस्थितिकी महत्त्व को बताते हुए इसके तहत शामिल जीवों के बीच परस्पर निर्भरता पर प्रकाश डालिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों एवं प्रकारों पर चर्चा कीजिये।
    • स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र के पारिस्थितिकी महत्त्व को बताते हुए इसके तहत शामिल जीवों की परस्पर निर्भरता को भी स्पष्ट कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र का आशय स्थलीय (भूमि-आधारित) आवास में भौतिक पर्यावरण एवं जीवों के बीच का संबंध है। वनस्पति की उपलब्धता इस पारिस्थितिक तंत्र की विशेषता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना एवं कार्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

    मुख्य भाग:

    स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के कार्य:

    • प्राथमिक उत्पादक: स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र, प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से, जीवन के लिये आवश्यक ऑक्सीजन एवं कार्बनिक पदार्थ का उत्पादन करते हैं।
    • जैवविविधता का प्रबंधन: ये पारिस्थितिकी तंत्र विविध वनस्पतियों और जीवों का समर्थन करने के साथ आनुवंशिक विविधता एवं पारिस्थितिकी स्थिरता में सहायता करते हैं।
      • स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र वाष्पीकरण और अल्बेडो प्रभाव जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से स्थानीय एवं क्षेत्रीय जलवायु को प्रभावित करते हैं।
    • जलवायु विनियमन: ये तापमान, वर्षा एवं वायुमंडलीय संरचना को प्रभावित करके जलवायु को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्रों द्वारा लगभग 25% मानवजनित CO2 उत्सर्जन के अवशोषण द्वारा जलवायु परिवर्तन को कम करने में भूमिका निभाई जाती है।
    • पोषक तत्त्व चक्र: स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्रों द्वारा पौधों की वृद्धि और मृदा की उर्वरता के लिये आवश्यक कार्बन, नाइट्रोजन एवं फास्फोरस जैसे पोषक तत्त्वों के चक्रण की सुविधा मिलती है।

    स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार:

    • वन: ये पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी की लगभग 31% भूमि को कवर करने के साथ वैश्विक जैवविविधता में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
      • अमेज़न वर्षावन (विश्व के सबसे बड़े स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों में से एक) सभी ज्ञात प्रजातियों में से लगभग 10% का आवास है।
    • घास के मैदान: अंटार्कटिक को छोड़कर प्रत्येक महाद्वीप पर पाए जाने वाले घास के मैदान विभिन्न प्रकार के वन्य जीव का समर्थन करने के साथ पशुओं के लिये चरागाह क्षेत्र प्रदान करते हैं।
      • घास के मैदान उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण दोनों क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जो विभिन्न प्रकार की घास प्रजातियों एवं बाइसन तथा मृग जैसे शाकाहारी जीवों का समर्थन करते हैं।
      • घास के मैदान पृथ्वी के लगभग 40% भूमि क्षेत्र को कवर करते हैं जो लाखों पशुओं की चराई गतिविधियों का समर्थन करते हैं।
    • रेगिस्तान: कठोर परिस्थितियों के बावजूद रेगिस्तान शुष्क वातावरण हेतु अनुकूलित विशेष पौधों एवं जीवों के लिये अनुकूलित स्थल हैं।
    • टुंड्रा: टुंड्रा ध्रुवीय क्षेत्रों की वनस्पति है। यह काई और लाइकेन जैसी पादपों की प्रजातियों के साथ-साथ प्रवासी पक्षियों एवं कारिबू जैसे स्तनधारियों का आवास है।
    • आर्द्रभूमियाँ: दलदल वाली आर्द्रभूमियाँ जैवविविधता से समृद्ध होने के साथ जल निस्पंदन एवं बाढ़ नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
      • आर्द्रभूमियाँ, पृथ्वी की भूमि की सतह का लगभग 6% हिस्सा कवर करने के बावजूद, सबसे अधिक उत्पादक पारिस्थितिक तंत्रों में से हैं, जो कई प्रजातियों के लिये आवास प्रदान करते हैं।
        • सभी पौधों और जानवरों की प्रजातियों में से चालीस प्रतिशत का आवास आर्द्रभूमि हैं या यह इनमें प्रजनन करते हैं।

    स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र का पारिस्थितिकी महत्त्व:

    • आवास और खाद्य स्रोत: स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र जैवविविधता का समर्थन करते हुए, जीवों की एक विस्तृत शृंखला के लिये आवास एवं भोजन प्रदान करते हैं।
    • कार्बन पृथक्करण: वन और अन्य स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, जो वायुमंडल से CO2 को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायक होते हैं।
    • जल विनियमन: स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र की वनस्पतियाँ जल चक्र को विनियमित करने में मदद करने के साथ बाढ़ और सूखे के खतरे को कम करने में भूमिका निभाती हैं।
    • मृदा निर्माण एवं संरक्षण: स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में पौधे मृदा के निर्माण में योगदान देने के साथ इसके कटाव को रोकते हैं, जिससे मृदा की उर्वरता बनी रहती है।

    स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के तहत जीवों की परस्पर निर्भरता:

    • खाद्य शृंखलाएँ और खाद्य जाल: स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में जीव, खाद्य शृंखलाओं और खाद्य जालों के माध्यम से आपस में संबंधित होते हैं, जिसमें प्रत्येक जीव भोजन के लिये दूसरों पर निर्भर होता है।
    • परागण: स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में कई पौधे प्रजनन के लिये मधुमक्खियों, तितलियों एवं पक्षियों जैसे परागणकों पर निर्भर होते हैं।
    • सहजीवी संबंध: सहजीवी संबंध स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में सामान्य हैं, जो जीवों की परस्पर निर्भरता को प्रदर्शित करते हैं।
    • शिकारी-शिकार गतिशीलता: स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में शिकारी और शिकार एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, प्रत्येक प्रजाति की आबादी दूसरे को प्रभावित करती है।

    निष्कर्ष:

    स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने और पृथ्वी पर जीवन का समर्थन करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। इन पारिस्थितिक तंत्रों के प्रभावी संरक्षण एवं टिकाऊ प्रबंधन के लिये उनके कार्यों, प्रकारों तथा पारिस्थितिकी महत्त्व को समझना महत्त्वपूर्ण है।

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