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Sambhav-2023

  • 02 Jan 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस- 47

    प्रश्न.1 मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भारत में स्वतंत्र, उत्तराधिकार वाले और नवीन राज्यों का उदय हुआ था। उन कारकों की चर्चा कीजिये जिनके कारण इन राज्यों का उदय हुआ था। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 उत्तरी भारत में अधिक संसाधन और उपजाऊ भूमि होने के बावजूद व्यापारिक उद्देश्य से भारत में आईं लगभग सभी यूरोपीय शक्तियों ने अपने आप को प्रायद्वीपीय भारत में स्थापित किया था। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    दृष्टिकोण:

    • मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भारत में होने वाले विभिन्न राज्यों के उदय का परिचय दीजिये।
    • इन राज्यों के उदय के कारणों की विवेचना कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    औरंगज़ेब के शासनकाल में जाट, सिख और मराठा जैसी क्षेत्रीय शक्तियों द्वारा विद्रोह किया गया था। उन्होंने अपने राज्य को मजबूत करने के क्रम में मुगल सत्ता को चुनौती दी थी। अपने प्रयासों में सफल न होने के बावजूद इन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में संभावित राजनीतिक घटनाओं का मार्ग प्रशस्त किया था। राजनीतिक वर्चस्व के लिये इस साम्राज्य के विरुद्ध होने वाले निरंतर संघर्ष के कारण यह कमजोर हो गया था।

    मुख्य भाग:

    क्षेत्रीय राज्यों का उदय: मुगल साम्राज्य के पतन के परिणामस्वरूप उदय होने वाले राज्यों को निम्नलिखित तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

    (i) उत्तराधिकार वाले राज्य: ये ऐसे मुगल प्रांत थे जो साम्राज्य से अलग होने के बाद स्वतंत्र राज्यों में बदल गए थे। यद्यपि इन्होंने मुगलों की संप्रभुता को चुनौती नहीं दी थी लेकिन कई क्षेत्रों में स्वतंत्र और वंशानुगत सत्ता स्थापित की थी। उदाहरण- अवध, बंगाल और हैदराबाद।
    (ii) स्वतंत्र राज्य: विभिन्न क्षेत्रों पर मुगल नियंत्रण के कमजोर पड़ने के कारण इन राज्यों का उदय हुआ था। उदाहरण- मैसूर और राजपूत राज्य।
    (iii) नवीन राज्य: मुगल साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह करने वालों द्वारा इन राज्यों को स्थापित किया गया था। जैसे- मराठा, सिख और जाट।

    इन राज्यों के उदय के कारण:

    • मुगल साम्राज्य की संरचना और कार्यप्रणाली से इन राज्यों के उदय का मार्ग प्रशस्त हुआ था।
      • साम्राज्य के विभिन्न भागों में उथल-पुथल और अस्थिरता से भी इसका आधार तैयार हुआ था।
      • सिखों, मराठों और राजपूतों में मुगल साम्राज्य को पूरी तरह से पराजित करने की क्षमता नहीं थी लेकिन इन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्रता हासिल करने और बनाए रखने के लिये मुगल सत्ता का विरोध किया था।
    • जमींदारों की निष्ठा में परिवर्तन: जमींदार अपनी भूमि के वंशानुगत मालिक थे जिन्हें वंशानुगत आधार पर कुछ विशेषाधिकार प्राप्त थे। यह राजस्व संग्रह और स्थानीय प्रशासन में मदद करते थे। कई स्थानीय जमींदारों ने इस साम्राज्य की कमजोरी का फायदा उठाने और स्वयं को स्वतंत्र करने के क्रम में दूसरे शक्तिशाली कुलीन वर्ग की सहायता की थी।
    • जागीरदारी संकट: मुगल शासन को अक्सर "कुलीनों के शासन" के रूप में परिभाषित किया जाता है क्योंकि इन कुलीनों ने इस साम्राज्य के प्रशासन में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। क्षेत्रीय आकांक्षाओं का उदय होने के साथ औरंगजेब के शासनकाल में जाटों, सिखों और मराठों जैसे क्षेत्रीय समूहों द्वारा विद्रोह शुरु किया गया था। इन्होंने अपने राज्य को स्वतंत्र करने के प्रयास में मुगल सत्ता को चुनौती दी थी।
    • आर्थिक और प्रशासनिक समस्याएँ: समय के साथ संभ्रांत अधिकारियों और उनकी रैंकों या मनसबों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई थी और इनके पास जागीर के रूप में बाँटने के लिये काफी कम जमीन उपलब्ध थी।
      • इस समय होने वाले युद्ध, शासकों और संभ्रांत लोगों की शाही जीवन शैली के साथ खालसा भूमि में कमी आने के कारण राज्य पर अतिरिक्त बोझ पड़ा था।
      • इसके अलावा इस दौरान कोई महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति नहीं हुई थी। भारत के तटीय क्षेत्रों में यूरोपीय व्यापारियों की बढ़ती संख्या से व्यापार के विस्तार के बावजूद भी इस साम्राज्य को राजस्व के रुप में कुछ खास लाभ नहीं हुआ था।
      • औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद ये आर्थिक और प्रशासनिक समस्याएँ काफी बढ़ गई थीं।
    • मराठा, राजपूत और जाट जैसी स्थानीय शक्तियों की अपने स्वतंत्र राज्य विकसित करने की क्षेत्रीय आकांक्षाओं से नवीन राज्यों का उदय हुआ था।

    निष्कर्ष:

    • प्रांतों में उभरने वाली स्वतंत्र राजनीतिक शक्तियों ने मुगल सत्ता के साथ संबंध बनाए रखने के साथ इसकी अधीनता को स्वीकार किया था। यहाँ तक कि मराठों और सिखों के विद्रोही सरदारों ने भी मुगल बादशाह की सर्वोच्चता को स्वीकार किया था। इन राज्यों की विकसित राजनीतिक स्थिति अपने चरित्र में क्षेत्रीय थी और इसका क्रियान्वयन विभिन्न स्थानीय समूहों के सहयोग से होता था।
    • प्रांतीय शासक मजबूत वित्तीय, प्रशासनिक और सैन्य संगठन पर आधारित प्रणाली विकसित करने में विफल रहे थे। वास्तव में ये राज्य मुगल सत्ता को चुनौती देने में सक्षम तो थे लेकिन इनमें से कोई भी अखिल भारतीय स्तर पर स्थायी राज्यव्यवस्था स्थापित करने में सक्षम नहीं था।

    उत्तर 2:

    दृष्टिकोण:

    • भारत में आने वाली यूरोपीय शक्तियों का परिचय दीजिये।
    • बताइए कि उत्तरी भारत में अधिक संसाधन और उपजाऊ भूमि होने के बावजूद व्यापारिक उद्देश्य से भारत में आई लगभग सभी यूरोपीय शक्तियों ने अपने आप को प्रायद्वीपीय भारत में स्थापित क्यों किया था।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत के साथ व्यापार में संलग्न विभिन्न यूरोपीय शक्तियों जैसे कि ब्रिटिश, डच और पुर्तगाली ने देश के दक्षिणी क्षेत्रों (विशेष रूप से पश्चिम और पूर्वी तटों पर) पर अपना ध्यान केंद्रित किया था।

    • कुछ यूरोपीय शक्तियों के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापारिक कारखाने होने के साथ उन्होंने भारत के उत्तरी क्षेत्र से व्यावसायिक संबंध स्थापित किये थे। उदाहरण के लिये ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के उत्तरी भारत (जैसे आगरा और इलाहाबाद में) में कई व्यापारिक कारखाने थे साथ ही डच ईस्ट इंडिया कंपनी की भी इस क्षेत्र में उपस्थिति थी।
    • अधिकांश यूरोपीय शक्तियों द्वारा उत्तरी क्षेत्र के बजाय भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने हेतु अनेक कारण उत्तरदायी थे।

    मुख्य भाग:

    दक्षिण भारत में यूरोपीय लोगों द्वारा दिखाई गई रूचि के लिये कई कारण उत्तरदायी थे। जैसे:

    • पूर्वी रोमन साम्राज्य के पतन और तुर्कों द्वारा भारत एवं यूरोप के बीच व्यापारिक भूमि मार्ग में व्यवधान उत्पन्न करने के बाद भारत और यूरोप के बीच समुद्री मार्ग की खोज को बढ़ावा मिला था।
      • समुद्री मार्ग की खोज करने के क्रम में भारत में पुर्तगालियों का आगमन हुआ था। उसके बाद डच, अंग्रेज और फ्रांसीसी भी इसी अनुक्रम में भारत आए।
    • समुद्र के द्वारा प्रायद्वीपीय क्षेत्र तक आसानी से पहुँचा जा सकता था। प्रायद्वीपीय क्षेत्र के प्रमुख बंदरगाह स्थल जैसे बॉम्बे (मुंबई), कलकत्ता (कोलकाता) और मद्रास (चेन्नई) तट पर ही स्थित थे और समुद्री व्यापारिक मार्गों के माध्यम से विश्व के बाकी हिस्सों से इनका बेहतर जुड़ाव था।
      • ये बंदरगाह नीदरलैंड और ब्रिटेन जैसे प्रमुख यूरोपीय व्यापारिक केंद्रों हेतु सुलभ थे, जिससे यूरोपीय व्यापारियों के लिये भारतीय व्यापारियों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित करना आसान हो गया था।
      • इससे पहले दक्षिणी साम्राज्य जैसे- चोल, चालुक्य, चेर और विजयनगर के शासकों को मुगलों की तुलना में समुद्री मार्गों से व्यापार की अच्छी समझ थी। इस कारण यूरोपीय लोग दक्षिण भारत की ओर आकर्षित हुए थे।
    • प्रायद्वीपीय क्षेत्र में कई ऐसे शक्तिशाली साम्राज्य थे जो यूरोपीय लोगों के साथ व्यापार हेतु अधिक अनुकूलित थे जैसे वास्कोडिगामा का कालीकट के शासक ज़मोरिन द्वारा स्वागत किया गया था।
    • उत्तरी भारत का मुगल साम्राज्य अधिक केंद्रीकृत होने के साथ यूरोपीय लोगों के साथ व्यापार में कम रुचि रखता था।
      • इसके विपरीत प्रायद्वीपीय क्षेत्र के राज्य (जैसे मराठा साम्राज्य) व्यापार के लिये अधिक अनुकूलित होने के साथ विदेशी व्यापार में संलग्न थे। इसके कारण यूरोपीय व्यापारियों के लिये इन राज्यों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित करना और इन क्षेत्रों के संसाधनों और बाज़ारों तक पहुँच स्थापित करना आसान हो गया था।
    • प्रायद्वीपीय क्षेत्र में उपलब्ध अनेक प्राकृतिक संसाधनों (जैसे- मसाले, वस्त्र और कीमती पत्थर) में यूरोपीय लोगों को रुचि थी। यूरोप में अत्यधिक मांग होने के कारण यूरोपीय शक्तियाँ इन संसाधनों पर व्यापारिक एकाधिकार स्थापित करने के लिये उत्सुक थीं।
      • प्रायद्वीपीय क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करके, इन्हें इन संसाधनों तक पहुँच प्राप्त होने के साथ इनके व्यापार की सुविधा प्राप्त हुई थी।

    निष्कर्ष:

    • कुल मिलाकर प्रायद्वीपीय क्षेत्र तक सुलभ पहुँच, राजनीतिक अनुकूलन और यहाँ उपलब्ध संसाधनों के कारण, यूरोपीय व्यापारियों का इस क्षेत्र की ओर आकर्षण बढ़ा था। इसी कारण से इन्होंने भारत के उत्तरी क्षेत्र की बजाय दक्षिणी क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिया था।
    • यह बात सही है कि यूरोपीय शक्तियों ने भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्र पर अपना ध्यान अधिक केंद्रित किया था लेकिन यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि देश के उत्तरी क्षेत्र में भी इनकी महत्त्वपूर्ण आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियाँ थीं।
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