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Sambhav-2023

  • 20 Dec 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस- 36

    प्रश्न.1 एक साम्राज्य के रूप में मगध के उदय के कारणों की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    प्रश्न.2 छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का होने वाला उदय, प्राचीन भारत का पहला धार्मिक आंदोलन था। बौद्ध धर्म के पतन के कारणों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    दृष्टिकोण:

    • मगध को छठी शताब्दी ईसा पूर्व के साम्राज्य के रूप में प्रस्तुत कीजिये।
    • उन कारकों की विवेचना कीजिये जिन्होंने एक साम्राज्य के रूप में मगध के उदय में योगदान दिया।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    छठी शताब्दी ईसा पूर्व सोलह राज्यों का उदय हुआ, जिन्हें महाजनपद के रूप में जाना जाता है। उनमें से वज्जि, मगध, कौशल, कुरु, पांचाल, गांधार और अवंती सबसे महत्त्वपूर्ण महाजनपद थे।

    सोलह महाजनपदों में सबसे पहला: मगध

    बिंबिसार के नेतृत्व में मगध का उदय हुआ, जो हर्यंक वंश का था। वह बुद्ध के समकालीन था। उसने विजय और आक्रमण की नीति शुरू की जो अशोक के कलिंग युद्ध के साथ समाप्त हुई। बिंबिसार ने अंग महाजनपद का अधिग्रहण किया और इसे अपने पुत्र अजातशत्रु के वायसराय के अधीन कर दिया। उसने विवाह संबंधों द्वारा भी अपनी स्थिति को मजबूत किया।

    मगध की सफलता के कारण:

    मौर्यों के उदय से पहले की दो शताब्दियों के दौरान मगध साम्राज्य का विस्तार हुआ था।

    • छठी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान भारत में सबसे बड़े साम्राज्य के उदय का श्रेय बिंबिसार, अजातशत्रु और महापद्मनंद जैसे कई महत्त्वाकांक्षी शासकों को दिया जाता है।
      • उन्होंने अपने राज्यों का विस्तार करने और इसे मजबूत बनाने के लिये उचित और अनुचित सभी साधनों का इस्तेमाल किया।
    • मगध साम्राज्य को अपनी भौगोलिक स्थिति का फायदा हुआ जैसे सबसे समृद्ध लोहे के भंडार मगध की सबसे पुरानी राजधानी राजगीर से ज्यादा दूर नहीं थे।
      • इसके कारण मगध के शासक ऐसे प्रभावी हथियारों से युक्त थे, जो उनके प्रतिद्वंद्वियों के लिये आसानी से उपलब्ध नहीं थे।
    • मगध की राजधानियों की भौगोलिक स्थिति निर्णायक थी जैसे राजगीर क्षेत्र पाँच पहाड़ियों से घिरा हुआ था, इसलिये उन दिनों यह अभेद्य क्षेत्र था।
      • 5वीं शताब्दी में ई.पू. में मगध की राजधानी को पाटलिपुत्र स्थानांतरित कर दिया गया था। गंगा, गंडक और सोन के संगम पर स्थित होने के कारण इन्हें संचार की रणनीतिक स्थिति का लाभ प्राप्त हुआ था।
      • सभी तरफ से नदियों से घिरे होने के कारण पटना अभेध क्षेत्र था। पाटलिपुत्र एक जल-किला (जलदुर्ग) के रुप में था और इस पर कब्जा करना आसान नहीं था।
      • मगध, जलोढ़ मध्य गंगा के मैदान के केंद्र में स्थित है। यहाँ पर पर्याप्त वर्षा की उपलब्धता के कारण, साफ किये गए जंगल अत्यधिक उपजाऊ साबित हुए और बिना सिंचाई के भी इस क्षेत्र को उत्पादक बनाना संभव था।
    • कस्बों के उदय और धातु मुद्रा के उपयोग से मगध को लाभ हुआ और इस दौरान उत्तर-पूर्व भारत में भी व्यापार और वाणिज्य फला-फूला।
      • इसके कारण शासकों को वस्तुओं की बिक्री पर कर लगाने और अपनी सेना को भुगतान करने के लिये धन संचय करने में सुविधा हुई।
    • मगध की सैन्य ताकत काफी अधिक थी। हालाँकि भारतीय राज्य घोड़ों और रथों के उपयोग से अच्छी तरह परिचित थे, लेकिन मगध के शासकों ने सबसे पहले अपने पड़ोसियों के खिलाफ युद्धों में बड़े पैमाने पर हाथियों का उपयोग किया था।
      • उदाहरण के लिये ग्रीक स्रोतों के अनुसार नंद शासकों के पास 6000 हाथी थे। हाथियों का इस्तेमाल दुर्गों और संचार के अन्य साधनों की कमी वाले क्षेत्रों पर हमला करने के लिये किया जा सकता था।
    • मगध समाज का व्यवहारिक दृष्टिकोण भी इसमें सहायक था।

    निष्कर्ष:

    इन्हीं सब कारणों से मगध अन्य राज्यों को विजित करने के साथ भारत के प्रथम महान साम्राज्य के रुप में स्थापित हुआ।


    उत्तर 2:

    दृष्टिकोण:

    • छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जैन धर्म और बौद्ध धर्म के उदय का परिचय दीजिये।
    • इन दो धार्मिक आंदोलनों द्वारा उठाए गए सुधारात्मक कदमों की चर्चा कीजिये। साथ ही उन कारकों की चर्चा कीजिये जिनके कारण बौद्ध धर्म का पतन हुआ।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    जैन धर्म और बौद्ध धर्म दोनों का उदय 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था और उत्तर वैदिक काल के दौरान इनका विकास सबसे प्रमुख धार्मिक सुधार आंदोलनों के रूप में हुआ।

    मुख्य भाग:

    इन दोनों धर्मों की उत्पत्ति उस समय की सामाजिक-धार्मिक स्थिति पर आधारित थी। जैसे:

    • इस समय हिंदू धर्म जटिल कर्मकांडों और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के कारण कठोर और रूढ़िवादी हो गया था। धार्मिक जीवन बहुत अधिक जटिल और कर्मकांड वाला था और लोग अंधविश्वास से प्रभावित थे।
      • इस समय जाति व्यवस्था के कारण सामाजिक असमानता व्याप्त थी।
    • वर्ण व्यवस्था के कारण समाज, जन्म के आधार पर 4 वर्गों में विभाजित था जिसमें दो उच्च वर्गों को विशेषाधिकारों प्राप्त था।
    • ब्राह्मणों के इस वर्चस्व का क्षत्रियों ने विरोध किया।
    • जैन धर्म और बौद्ध धर्म द्वारा लाए गए अहिंसा के सिद्धांत के कारण लोहे के औजारों और पशु बल के उपयोग से उत्तर-पूर्व भारत में नई कृषि अर्थव्यवस्था का प्रसार हुआ।
    • व्यापार के विकास से वैश्यों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। अब यह लोग अपनी सामाजिक स्थिति को मजबूत करना चाहते थे और व्यापारी वर्ग ने इन नए धर्मों को मुख्य समर्थन प्रदान किया था।

    इन दोनों धर्मों द्वारा उठाए गए सुधारात्मक कदम:

    • इन्होंने अहिंसक, शांतिपूर्ण, समतामूलक समाज पर बल देने के साथ आर्थिक एवं सामाजिक विकास को प्रोत्साहन दिया।
    • महिलाओं, निम्न जाति और समाज के अन्य दमित वर्ग की स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया।

    बौद्ध धर्म का पतन निम्नलिखित कारणों से हुआ था: बारहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक भारत में बौद्ध धर्म व्यावहारिक रूप से विलुप्त हो चुका था। यह ग्यारहवीं शताब्दी तक बंगाल और बिहार में परिवर्तित रूप में अस्तित्व में रहा था लेकिन उसके बाद यह धर्म देश से लगभग पूरी तरह से विलुप्त हो गया था।

    • शुरुआत में बौद्ध धर्म सुधार की भावना से प्रेरित था लेकिन आगे चलकर इसमें कर्मकांडों का प्रभुत्त्व बढ़ जाने से इसके प्रभाव में कमीं आई। ब्राह्मणवाद के जिन तत्त्वों का शुरु में इसके द्वारा विरोध किया गया था आगे चलकर यही तत्त्व इसमें शामिल होने लगे।
      • दूसरी ओर बौद्ध धर्म से उत्पन्न चुनौती का सामना करने के लिये ब्राह्मणों ने अपने धर्म में सुधार किया।
      • उन्होंने पशुधन के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया।
    • धीरे-धीरे बौद्ध भिक्षु, लोगों के जीवन की मुख्य धारा से अलग होते चले गए। उन्होंने आम लोगों की पाली भाषा को त्यागकर, बुद्धिजीवियों की संस्कृत भाषा को अपना लिया।
    • पहली शताब्दी ईस्वी के बाद से बौद्धों ने बड़े पैमाने पर मूर्ति पूजा करने के साथ भक्तों से उपहार लेना शुरु कर दिया था।
      • बौद्ध मठों के लिये मिलने वाले शाही अनुदानों के कारण भिक्षुओं का जीवन आसान हो गया था।
      • नालंदा जैसे कुछ मठों को 200 गाँवों से राजस्व प्राप्त होता था।
    • सातवीं शताब्दी ईस्वी तक बौद्ध मठ ऐसी भ्रष्ट प्रथाओं के केंद्र बन गए थे, जिनको गौतम बुद्ध ने प्रतिबंधित कर रखा था।
      • मठों के पास विशाल संपत्ति और इनमें महिलाओं के प्रवेश से आगे चलकर इनका पतन हुआ।
    • ब्राह्मण शासक पुश्यमित्र शुंग ने बौद्धों का दमन किया था। हूण शासक मिहिरकुल (जो शिव का उपासक था) ने सैकड़ों बौद्धों को मार डाला था।
      • गौड़ वंश के शशांक ने बोधगया के बोधि वृक्ष को काट दिया था, जहाँ बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था।
      • दक्षिण भारत में प्रारंभिक मध्यकाल में शैव और वैष्णव दोनों धर्मों के द्वारा जैन और बौद्धों का विरोध किया गया था। ऐसे संघर्षों के कारण बौद्ध धर्म और भी कमजोर हुआ।
    • धन के कारण मठों की ओर तुर्की आक्रमणकारियों का ध्यान केंद्रित हुआ। इससे आक्रमणकारियों ने इन्हें लूटना शुरु कर दिया। उदाहरण के लिये बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय पर हमला किया गया और इसे नष्ट कर दिया गया।

    निष्कर्ष

    • एक संगठित धर्म के रूप में अंतिम रूप से विलुप्त होने के बावजूद भी बौद्ध धर्म ने भारत के इतिहास पर अपनी अमित छाप छोड़ी है। बौद्धों ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में उत्तर-पूर्व भारत के लोगों के सामने आने वाली समस्याओं के समाधान के बारे में व्यवहारिक दृष्टिकोण का परिचय दिया।
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