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RAS Mains 2024

  • 10 Jun 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 12: BRICS समूह में भारत के लिये अवसर और चुनौतियाँ क्या हैं? (100 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • BRICS समूह के संदर्भ और भारत की भूमिका के स्पष्ट परिचय के साथ उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
    • स्पष्टता के लिये चुनौतियों और अवसरों को संक्षिप्त बिंदुओं में उल्लेख कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    BRICS (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) वैश्विक सहयोग के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच बन गया है, विशेषकर भारत के लिये रणनीतिक और आर्थिक विकास के मामले में। हालाँकि, भारत को समूह के भीतर चुनौतियों और अवसरों दोनों का सामना करना पड़ रहा है, जो इसकी भूमिका एवं वैश्विक प्रभाव को प्रभावित करता है।

    मुख्य भाग:

    अवसर:

    • ऊर्जा सुरक्षा: ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के सदस्य के रूप में, BRICS देश विश्व के लगभग 44% कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं, जिससे भारत के लिये ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
    • ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व: BRICS भारत को विकासशील देशों के अधिकारों को सुनिश्चित करने तथा आतंकवाद, जलवायु-परिवर्तन और वैश्विक समानता जैसे मुद्दों पर विचार करने का अवसर प्रदान करता है।
    • संवाद के लिये सुरक्षित स्थान: तनाव के बावजूद, BRICS भारत को समन्वय स्थापित करने के लिये एक तटस्थ मंच प्रदान करता है, जिसमें डोकलाम गतिरोध जैसी घटनाओं के दौरान चीन के साथ वार्ता भी शामिल है।
    • बहुपक्षीय सुधार: भारत अधिक समतापूर्ण वैश्विक व्यवस्था सुनिश्चित करने की दिशा में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और विश्व व्यापार संगठन जैसी वैश्विक संस्थाओं में सुधार के लिये दबाव डाल सकता है।

    चुनौतियाँ:

    • आर्थिक क्षमता का कम उपयोग: वैश्विक व्यापार में समूह की महत्त्वपूर्ण साझेदारी के बावजूद, अंतर-BRICS व्यापार मात्र 2.2% पर बना हुआ है। भौगोलिक पृथक्करण और चीन का प्रभुत्व प्रमुख बाधाएँ हैं।
    • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: सदस्य देशों के बीच संघर्ष, जैसे भारत-चीन तनाव और सऊदी-ईरान प्रतिद्वंद्विता, समूह की एकजुटता से कार्य करने की क्षमता को सीमित करते हैं।
    • वैकल्पिक वित्तीय संस्थाओं के गठन में असमर्थता: न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) में विश्व बैंक या IMF जैसी संस्थाओं को चुनौती देने की वित्तीय क्षमता का अभाव है, जिससे इसका वैश्विक प्रभाव सीमित हो रहा है।
    • सदस्यों के बीच आर्थिक संघर्ष: चीन में मंदी, रूस पर युद्ध का प्रभाव और दक्षिण अफ्रीका में चुनौतियाँ BRICS के आर्थिक प्रदर्शन एवं एकजुटता में बाधा डालती हैं।
    • पश्चिम विरोधी पूर्वाग्रह की धारणा: भारत को BRICS के भीतर अपने संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता है, क्योंकि समूह का पश्चिम विरोधी रुख जलवायु-परिवर्तन एवं व्यापार जैसे वैश्विक मुद्दों पर सहयोग को सीमित कर सकता है।

    निष्कर्ष:

    भारत को BRICS में भू-राजनीतिक तनाव, आर्थिक मुद्दे और सामंजस्य की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि, इसके पास ऊर्जा को सुरक्षित करने, बहुपक्षीय सुधारों को आगे बढ़ाने तथा ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व करने के अवसर हैं। भारत का कूटनीतिक दृष्टिकोण BRICS के भीतर अपने वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।

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