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इतिहास प्रैक्टिस प्रश्न

  • वैदिक काल में विभिन्न देवताओं की पूजा के पीछे के अवधारणात्मक आधारों पर मूल्यांकन कीजिये।

    18 Jun, 2020

    उत्तर :

    किसी भी समुदाय का धर्म अपने परिवेश से प्रभावित होता है। उसके लौकिक एवं पारलौकिक विश्वास पर आवश्यकताएँ विशिष्ट प्रकार की पूजा पद्धति को जन्म देती है। वैदिक काल में भी इसी प्रकार देवताओं की पूजा के पीछे कुछ विशिष्ट अवधारणाएँ रही।

    • वैदिक काल में लोगों ने वर्षा, सूर्य और चंद्र, नदी पर्वत आदि प्राकृतिक शक्तियों को अपने मन में दैहिक रूप देकर प्राणियों के रूप में देखा और इनमें मानव व पशु के गुण आरोपित किये। ऋग्वैदिक सूक्तों में इस प्रकार के विभिन्न देवताओं के दर्शन मिलते हैं।
    • ऋग्वैदिक समाज आंतरिक एवं बाहरी जनजातीय संघर्षों से ग्रस्त था। इस कारण इंद्र को युद्ध में विजय पाने के लिये पूजा जाने लगा, जिसे पुरंदर अथवा किले को तोड़ने वाला कहा गया है। इंद्र को आर्यों के युद्ध के देवता के रूप में चित्रित किया गया।
    • जंगलों को जलाना, खाना पकाने जैसे कारणों से अग्नि आदि काल से ही महत्त्वपूर्ण रही है। इन सबके साथ वैदिक काल में यज्ञ में अग्नि में डाली जाने वाली आहुतियों के कारण अग्नि को देवताओं और मानवों के बीच मध्यस्थ समझा जाने लगा। इन वजहों से अग्नि पूजा की अत्यंत महत्ता थी।
    • वरुण, जल या समुद्र के देवता को ऋतु या प्राकृतिक संतुलन का रक्षक कहा गया है। ऐसा विश्वास था कि जगत में जो भी घटनाएँ होती है, वे उसी की इच्छा का परिणाम है।
    • आदिम/जनजातीय समाज के कारण वनस्पतियों की वैदिक काल में अत्यंत महत्ता थी। इनकी सुरक्षा के लिये ‘वनस्पतियों के अधिपति’ के रूप में सोम की पूजा की जाती थी।
    • आँधी जैसी प्राकृतिक शक्तियों से सुरक्षा के लिये मरुत नामक देवता की स्तुति की जाती थी।
    • पितृसत्तात्मक समाज होने के कारण वैदिक समाज में देवियों को प्रमुखता नहीं दी जाती थी और देवताओं का महत्त्व देवियों से कहीं अधिक था। फिर भी कुछ देवियों का उल्लेख मिलता है, जैसे- अदिति एवं ऊषा, जो प्रभात समय के प्रतिरूप है।

    उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि वैदिक समाज के लोगों ने अपनी आवश्यकताओं व सुरक्षा के लिये प्राकृतिक शक्तियों की ही देवताओं के रूप में पूजा की। वे लोग आध्यात्मिक उत्थान या जन्म-मृत्यु के कष्टों से मुक्ति के लिये ऐसा नहीं करते थे। उनके द्वारा सुरक्षा, संतति, पशु, अन्न, धान्य एवं आरोग्य आदि पाने की कामना से उनकी उपासना की जाती थी।

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