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27 Jul 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 2
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दिवस-10. अंटार्कटिक क्षेत्र के सैन्यीकरण और संसाधनों के दोहन को रोकने के लिये विश्व को एक व्यापक नीति की आवश्यकता है। विश्लेषण कीजिये। अंटार्कटिक क्षेत्र से संबंधित भारत की नीतिगत रूपरेखा पर भी प्रकाश डालिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- अंटार्कटिक महाद्वीप और इसकी विशेष प्रकृति बताते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- अंटार्कटिक के बारे में विश्व की नीति और वर्तमान में अंटार्कटिका के समक्ष आने वाले मुद्दों जैसे पर्यटन में वृद्धि एवं इसके सैन्यीकरण के खतरे तथा मौद्रिक लाभ के लिये इसके दोहन से संबंधित चिंताओं को बताइये।
- अंटार्कटिक की पारिस्थितिकी और अन्य विशिष्टता को संरक्षित करने के लिये एक व्यापक वैश्विक नीति की आवश्यकता को बताइये तथा इस महाद्वीप के प्रति भारत की नीति एवं हाल ही में संसद द्वारा प्रस्तुत किये गए अंटार्कटिक विधेयक का उल्लेख कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
अंटार्कटिक, सबसे दक्षिणी महाद्वीप एवं विशेष क्षेत्र है जिसका विश्व स्तर पर काफी महत्त्व है। यह विविध पारिस्थितिकी तंत्र, दुर्लभ वन्य जीवों का आवास स्थल है तथा जलवायु परिवर्तन के अध्ययन के लिये यह महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोगशाला के रूप में कार्य करता है। हाल के वर्षों में वैश्विक समुदाय ने अंटार्कटिक क्षेत्र की अपार क्षमता और इसे सैन्यीकरण तथा दोहन से बचाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
अंटार्कटिक के प्रति वैश्विक नीति और वर्तमान चुनौतियाँ: वर्तमान में अंटार्कटिक क्षेत्र, अंटार्कटिक संधि प्रणाली (ATS) द्वारा शासित है जिसमें शांतिपूर्ण उद्देश्यों तथा वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये महाद्वीप को संरक्षित करने के उद्देश्य से कई अंतर्राष्ट्रीय समझौते शामिल हैं।
- अंटार्कटिक संधि प्रणाली (ATS), अंटार्कटिक में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों तथा सहयोग को विनियमित करने का मुख्य आधार है। इसमें चार प्रमुख समझौते शामिल हैं: अंटार्कटिक संधि,1959 अंटार्कटिक सील के संरक्षण पर कन्वेंशन,1972, अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण पर कन्वेंशन,1980 और पर्यावरण संरक्षण पर प्रोटोकॉल,1991।
- ATS का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि अंटार्कटिक का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जाए एवं यहाँ सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया जाए। जिससे अंटार्कटिक पर्यावरण तथा उस पर निर्भर एवं संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र सुरक्षित रहें तथा किसी भी नए क्षेत्रीय दावे या संप्रभुता संबंधित विवाद उत्पन्न न हो।
हालाँकि ATS, 21वीं सदी में अंटार्कटिक के समक्ष आने वाले सभी मुद्दों और चुनौतियों का समाधान करने के लिये पर्याप्त नहीं है। इनमें से कुछ मुद्दे निम्नलिखित हैं:
- मछली, खनिज, तेल और गैस जैसे अंटार्कटिक संसाधनों की बढ़ती मांग के कारण इसके अत्यधिक दोहन के कारण पर्यावरणीय क्षरण को बढ़ावा मिल सकता है।
- अंटार्कटिक क्षेत्र में पर्यटकों की बढ़ती संख्या एवं अविवेकपूर्ण गतिविधियों से वन्यजीवों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिये जोखिम पैदा होने के साथ इससे अपशिष्ट एवं प्रदूषण भी उत्पन्न हो सकता है।
- कुछ देशों या समूहों द्वारा अंटार्कटिक क्षेत्र का संभावित सैन्यीकरण हो सकता है जो ATS की भावना और सिद्धांतों का उल्लंघन होने के साथ इस क्षेत्र की शांति तथा स्थिरता को खतरे में डाल सकता है।
- ATS और उससे संबंधित समझौतों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये प्रभावी निगरानी एवं प्रवर्तन तंत्र का अभाव है।
- नॉर्वे और आइसलैंड ने अंटार्कटिक समुद्री संरक्षण क्षेत्र में व्हेलों को मारने पर लगे प्रतिबंध से खुद को छूट दी है।
- ATS की निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में विकासशील देशों और स्थानीय लोगों की अधिक भागीदारी एवं प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है।
इसलिये अंटार्कटिक के लिये एक व्यापक वैश्विक नीति की आवश्यकता है जो समग्र और समन्वित तरीके से इन मुद्दों तथा चुनौतियों का समाधान कर सके। एक ऐसी नीति होनी चाहिये जिससे:
- इसके प्रावधानों को अद्यतन करके मौजूदा ATS को मज़बूत बनाया जा सके, जिससे इसके दायरे का विस्तार करना एवं इसकी पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाने के साथ इसके विवाद समाधान तंत्र में सुधार को बल देना शामिल है।
- सरकारों, वैज्ञानिक संस्थानों, नागरिक समाज संगठनों, स्थानीय लोगों और निजी क्षेत्र सहित अंटार्कटिक मामलों में शामिल सभी हितधारकों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा संवाद को बढ़ावा मिल सके।
- अंटार्कटिक संसाधनों के संबंध में सभी पक्षों के हितों और अधिकारों को संतुलित करते हुए, उनके स्थायी उपयोग तथा संरक्षण को सुनिश्चित किया जा सके।
- अंटार्कटिक में पर्यटन और गैर-सरकारी गतिविधियों को विनियमित करने के साथ-साथ आगंतुकों और ऑपरेटरों के लिये शिक्षा तथा जागरूकता कार्यक्रम प्रदान करने के लिये सामान्य मानक तथा दिशानिर्देश विकसित हो सकें।
- अंटार्कटिक में ऐसी किसी भी सैन्य या सुरक्षा-संबंधी गतिविधियों को रोका जा सके जिससे इसकी शांतिपूर्ण स्थिति से समझौता होता हो या पर्यावरण एवं वन्य जीवों को जोखिम हो।
- अंटार्कटिक क्षेत्र में ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा मिल सके जो मानव ज्ञान एवं कल्याण में योगदान दे।
अंटार्कटिक से संबंधित भारत की नीति: भारत, अंटार्कटिक मामलों में सक्रिय प्रतिभागियों में से एक है। भारत ने वर्ष 1983 में अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर किये। भारत ने वर्ष 1986 में अंटार्कटिक के समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण पर कन्वेंशन की भी पुष्टि की है। भारत के अंटार्कटिक में दो अनुसंधान केंद्र हैं: मैत्री और भारती।
विशिष्टता और वैज्ञानिक मिशन के संरक्षण के लिये अपनी प्रतिबद्धता को मज़बूत करने हेतु भारत ने भारतीय अंटार्कटिक विधेयक, 2022 पारित किया है। इस विधेयक का उद्देश्य अंटार्कटिक क्षेत्र तथा उस पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना भी है। इस विधेयक के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत अंटार्कटिक क्षेत्र के शासन और पर्यावरण संरक्षण पर एक समिति का गठन करना, जो अंटार्कटिक में विभिन्न गतिविधियों के लिये परमिट देने हेतु ज़िम्मेदार हो।
- अंटार्कटिक में विभिन्न गतिविधियों के लिये समिति या किसी अन्य पक्ष से परमिट या प्राधिकरण की आवश्यकता का निर्धारण करना। इन गतिविधियों में अंटार्कटिक में प्रवेश करना या रहना; खनिज संसाधनों की ड्रिलिंग, ड्रेजिंग या उत्खनन करना; स्थानीय प्रजातियों को नुकसान पहुँचाना; अपशिष्ट का निपटान आदि शामिल हैं।
- अंटार्कटिक में कुछ गतिविधियों का निषेध करना, जिनमें परमाणु विस्फोट करना अथवा रेडियोधर्मी कचरे का निपटान करना; समुद्र में कचरा या प्लास्टिक फैलाना आदि शामिल है।
अंटार्कटिक एक महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र है इसके प्रबंधन हेतु एक व्यापक वैश्विक नीति की आवश्यकता है। ATS ऐसी नीति के आधार के रूप में कार्य करती है लेकिन उभरते मुद्दों एवं चुनौतियों से निपटने के लिये इसे और भी मज़बूत एवं अद्यतन करने की आवश्यकता है। भारत, अंटार्कटिक क्षेत्र की गतिविधियों में प्रमुख हितधारकों में से एक है एवं यह इस अद्वितीय तथा मूल्यवान महाद्वीप को संरक्षित करने के वैश्विक प्रयासों में भूमिका निभाता है।