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  • 29 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधन

    दिवस 19: भारत में वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं के कारणों और उन्हें रोकने के लिये उठाए जा सकने वाले उपायों की जाँच कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत में वनाग्नि की घटनाओं के संबंध में कुछ उदाहरण लिखिये।
    • भारत में वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं के कारणों की विवेचना कीजिये।
    • उन्हें नियंत्रित करने के लिये उठाए जा सकने वाले कदमों की व्याख्या कीजिये।

    इसे बुशफायर (Bushfire) या जंगल की आग भी कहा जाता है। इसे किसी भी जंगल, घास के मैदान या टुंड्रा जैसे प्राकृतिक संसाधनों को अनियंत्रित तरीके से जलाने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो पर्यावरणीय परिस्थितियों जैसे- हवा, स्थलाकृति आदि के आधार पर फैलता है।

    वनाग्नि की घटनाएँ वन क्षेत्र की सफाई जैसे- मानवीय कार्यों, अत्यधिक सूखा या दुर्लभ मामलों में आकाशीय बिजली गिरने के कारण प्रेरित हो सकती हैं।

    स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में लगभग 22% वन क्षेत्र अत्यंत और अति उच्च अग्नि प्रवण श्रेणी के अंतर्गत आते है। असम, मिज़ोरम और त्रिपुरा के जंगलों में आग लगने की आशंका के रूप में इन्हें अति उच्च अग्नि प्रवण' के रूप में पहचाना गया है। ‘उच्च अग्नि प्रवण' श्रेणी के तहत बड़े वन क्षेत्रों वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। एमओईएफसीसी की 2020-2021 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी छत्तीसगढ़ और मध्य ओडिशा के साथ तेलंगाना व आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्र 'अति उच्च अग्नि प्रवण' वनाग्नि वाले क्षेत्र के रूप में बदल रहे है।

    वर्ष 2021 और 2022 में वनाग्नि की घटनाएँ:

    मार्च, 2022 के अंत से पहले राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिज़र्व, ओडिशा के सिमलिपाल वन्यजीव अभयारण्य, मध्य प्रदेश के सतना ज़िले के मझगाँव क्षेत्र के वन क्षेत्रों तथा तमिलनाडु के डिंडीगुल ज़िले के कोडाईकनाल पहाड़ियों के पास पेरिमलमलाई चोटी में वनाग्नि की घटना देखने को मिली।

    वर्ष 2021 में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश (कुल्लू घाटी) और नगालैंड-मणिपुर सीमा (दजुकोऊ घाटी) में लंबे समय तक आग लगी रही तथा ओडिशा के सिमलीपाल नेशनल पार्क में फरवरी के अंत और मार्च की शुरुआत के बीच भीषण आग लगने की घटना देखी गई थी।

    वनाग्नि के कारण:

    • वन की आग के कई प्राकृतिक कारण भी हो सकते हैं, लेकिन भारत में इसका प्रमुख कारण मानव गतिविधियाँ हैं।
      • कई अध्ययन विश्व स्तर पर आग के बढ़ते मामलों को जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं, विशेष रूप से ब्राज़ील (अमेज़न) और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग को।
      • वनाग्नि की लंबी अवधि, बढ़ती तीव्रता, उच्च आवृत्ति आदि को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा रहा है।
    • भारत में मार्च और अप्रैल के दौरान वनाग्नि की सबसे अधिक घटनाएँ घटित होती हैं क्योंकि यहाँ के जंगलों में इस समय सूखी लकडियाँ, पत्तियाँ, घास और खरपतवार जैसे आग को बढ़ावा देने वाले पदार्थ मौजूद होते हैं।
    • इसके लिये उत्तराखंड में मिट्टी की नमी में कमी भी एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में देखा जा रहा है। लगातार दो मानसून सी़जन ( वर्ष 2019 और 2020) में क्रमशः 18% और 20% तक औसत से कम वर्षा हुई है।
    • वनों की अधिकांश आग मानव निर्मित होती हैं, कभी-कभी तो जान-बूझकर भी आग लगाई जाती है। उदाहरण के लिये ओडिशा में सिमलीपाल के जंगल में पिछले महीने भीषण आग की घटना देखी गई थी, जिसका कारण यह था कि यहाँ के स्थानीय लोगों ने महुआ के फूलों को इकट्ठा करने के लिये ज़मीन साफ करने हेतु सूखी पत्तियों में आग लगा दी और यह आग जंगल में फैल गई।

    वनाग्नि का प्रभाव:

    • वनाग्नि से वन आवरण, मिट्टी की उर्वरता, पौधों के विकास, जीवों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं।
    • आग कई हेक्टेयर जंगल को नष्ट कर देती है और राख को पीछे छोड़ देती है, जिससे यह क्षेत्र वनस्पति विकास के लिये प्रतिकूल हो जाता है।
    • आग जानवरों के आवास को नष्ट कर देती है।
      • मिट्टी की संरचना में परिवर्तन के साथ इसकी गुणवत्ता घट जाती है।
      • मिट्टी की नमी और उर्वरता भी प्रभावित होती है।
      • वनों का आकार सिकुड़ सकता है।
      • आग से बचे हुए पेड़ अक्सर अस्त-व्यस्त रहते हैं और इनका विकास बुरी तरह प्रभावित होता है।

    वनाग्नि को कम करने के प्रयास:

    • FSI ने वर्ष वर्ष 2004 के बाद से सही समय पर जंगल की आग की निगरानी के लिये फॉरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम (Forest Fire Alert System) विकसित किया।
      • इस सिस्टम का जनवरी 2019 में उन्नत संस्करण लॉन्च किया गया जो अब नासा और इसरो से एकत्रित उपग्रह जानकारियों का उपयोग करता है।
    • वनाग्नि को कम करने के प्रयासों में शामिल अन्य योजनाएँ हैं- वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on Forest Fire), 2018 और वनाग्नि निवारण तथा प्रबंधन योजना।
    • भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26 और 33 के अनुसार आरक्षित और संरक्षित वनों में आग लगाना या लगाने का आदेश देना एक अपराध है।
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 30 के तहत वन्यजीव अभयारण्यों में आग लगाने पर प्रतिबंध है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) इसका नोडल मंत्रालय है।
    • वन सीमांत समुदायों को सूचित करने, उन्हें सक्षम और सशक्त बनाने तथा वन विभागों के साथ मिलकर कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करके जंगल में आग लगने की घटना को वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPFF) तैयार की गई है।
    • वनाग्नि की घटना के निवारण के लिये कई वन अग्नि निवारण और प्रबंधन (FFPM) जैसे प्रयास किये जाते है।
      • ईंधन भार को सीमित करने के लिये फायर लाइनों की निकासी और नियंत्रण।
      • अन्य तरीकों में चयनात्मक तरीके से आग-प्रवण क्षेत्रों में आग-अनुकूलित पेड़ प्रजातियों को लगाना।
      • तेलंगाना एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ फायर लाइनों के डिजिटलीकृत स्थान हैं।
      • प्रारंभिक चेतावनी और फायर डेंजर रेटिंग सिस्टम भी रोकथाम प्रक्रिया का एक हिस्सा हैं

    हालाँकि इन सभी प्रयासों के बावजूद अभी भी वनाग्नि एक आम घटना है,जो जीवन, संपत्ति और जैव विविधता को प्रभावित करती है। अग्नि प्रबंधन नीति बनाने तथा कुछ अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को आकर्षित करने का समय आ गया है।

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