इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Mains Marathon

  • 13 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस 3: आप फर्म नवीकरणीय ऊर्जा से क्या समझते हैं? भारत का तीन-स्तरीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम और थोरियम के विशाल भंडार भारत को फर्म क्लीन एनर्जी में एक प्रमुख खिलाड़ी बना सकते हैं। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • फर्म नवीकरणीय ऊर्जा को परिभाषित कीजिये।
    • संक्षेप में भारत के तीन स्तरीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम और परमाणु ऊर्जा के लिये भारत की क्षमता पर चर्चा कीजिये।
    • परमाणु ऊर्जा में भारत की संभावनाओं का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    फर्म नवीकरणीय ऊर्जा का अर्थ है वह नवीकरणीय ऊर्जा जो चौबीस घंटे प्रति दिन, प्रति वर्ष, तीन सौ पैंसठ दिन हमेशा उपलब्ध होती है और अपनी अनुबंधित क्षमता पर लगातार उत्पादन करने में सक्षम होती है।

    भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम

    भारत विद्युत उत्पादन जैसे क्षेत्रों में नाभिकीय ऊर्जा के दोहन की संभावना का पता लगाने के लिये इस क्षेत्र में आगे बढ़ा है। इस दिशा में 1950 के दशक में होमी भाभा द्वारा एक त्रि-स्तरीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम तैयार किया गया था।

    Nuclear-programme

    • भारत में नाभिकीय कार्यक्रम के प्रथम चरण में दाबित भारी जल रिएक्टर (पीएचडब्ल्यूआर) प्रौद्योगिकी पर आधारित था। इस प्रौद्योगिकी के तहत सीमित यूरेनियम स्रोतों का सर्वोत्तम उपयोग करना तथा द्वितीय चरण के ईंधन हेतु उच्चतर प्लूटोनियम का उत्पादन करना था। पीएचडब्ल्यूआर तकनीक में मंक या शीतलक के रूप में भारी जल का उपयोग किया जाता था। इस चरण में पहले दो रिएक्टर कनाडा के सहयोग से राजस्थान के रावतभाटा में बनाए गए
    • परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के द्वितीय चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर का उपयोग किया गया। फास्ट ब्रीडर रिएक्टर प्रथम चरण में प्रयुक्त ईंधन के पुनर्प्रसंस्करण से प्राप्त प्लूटोनियम-239 और प्राकृतिक यूरेनियम का प्रयोग करता है। इस रिएक्टर में शीतलक के रूप में सोडियम का प्रयोग किया जाता है।
    • तीसरे चरण के रिएक्टर में थोरियम-233 तथा यूरेनियम-233 ईंधनों का प्रयोग करना शामिल है जिससे परमाणु ईंधन के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके। तीसरे चरण के परमाणु रिएक्टर ब्रीडर रिएक्टर होंगे जिन्हें पुनः ईंधन से भरा जा सकता है। पहली बार ईंधन भरने के बाद अगली बार ईंधन के रूप में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध थोरियम का उपयोग सीधे किया जा सकेगा। फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के धीमे विकास के कारण त्रिस्तरीय कार्यक्रम में थोरियम का प्रयोग कर सकने में बहुत देरी हो रही है। भारत अब क्रमबद्ध त्रिस्तरीय कार्यक्रम के समानांतर अलग से उन रिएक्टरों के प्रारूप पर विचार कर रहा है जो थोरियम के प्रत्यक्ष उपयोग को संभव बनाते हैं।

    भारत में थोरियम के भंडार:

    परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) की एक इकाई, परमाणु खनिज अन्वेषण और अनुसंधान निदेशालय (एएमडी) के अनुसार, भारत के पास 10.70 मिलियन टन मोनाजाइट है जिसमें 9,63,000 टन थोरियम ऑक्साइड (टीएचओ 2) शामिल है। देश के थोरियम भंडार वैश्विक भंडार का 25 प्रतिशत हैं। इसे विभिन्न देशों से यूरेनियम के आयात में कटौती करने के लिये ईंधन के रूप में आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।

    परमाणु ऊर्जा उत्पादन में भारत की क्षमता

    • भारत में लगभग 65 प्रतिशत बिजली थर्मल पावर प्लांटों में उत्पन्न होती है। भारत पनबिजली संयंत्रों से 22 प्रतिशत बिजली का उत्पादन करता है और केवल 3 प्रतिशत बिजली परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से आती है।
    • थोरियम के विशाल भंडार के बावजूद, भारत के पास थोरियम का उपयोग करने की तकनीक नहीं है। परमाणु संलयन शक्ति को भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा आपूर्ति के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के रूप में देखा जाता है। परमाणु संलयन स्वच्छ, असीमित बिजली प्रदान करता है, लेकिन यह अभी तक ऊर्जा की इतनी चरम मात्रा का उपयोग करने की तकनीकी चुनौतियों को दूर नहीं कर पाया है।
    • भारत परमाणु ऊर्जा के विकास के लिये विभिन्न अग्रिम देशों से मदद ले सकता है जैसे कि फ्राँस से जो अपनी परियोजना ITER के लिये प्रसिद्ध है। अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा परमाणु संलयन रिएक्टर है। आईटीईआर एक प्रकार का चुंबकीय संलयन रिएक्टर है जिसे टोकामाक कहा जाता है, जिसे बिना किसी कार्बन उत्सर्जन के बड़े पैमाने पर ऊर्जा स्रोत के रूप में संलयन की व्यवहार्यता को प्रदर्शित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। यह वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन के लिये अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

    इस प्रकार, भारत में अपने ईंधन के लिये अन्य देशों पर निर्भरता के बिना स्वच्छ परमाणु ऊर्जा विकसित करने की क्षमता है क्योंकि यह थोरियम के अपने विशाल भंडार का उपयोग कर सकता है तथा परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी बन सकता है। भारत अब लगभग 2027 तक एसएसटी -2 नामक एक बड़े टोकामक आधारित संलयन रिएक्टर के निर्माण की उम्मीद कर रहा है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2