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  • 28 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    दिवस 18: क्या भारत एक ऐसी दुनिया के लिये तैयार है जहाँ परिवहन के क्षेत्र में इलेक्ट्रिक वाहनों का दबदबा होगा ? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • इलेक्ट्रिक वाहन नीलामियों को बढ़ावा देने के लिये इलेक्ट्रिक वाहन और भारतीय कार्यक्रमों को परिभाषित करके परिचय दीजिये।
    • इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण में भारत की चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन बढ़ाने के उपाय सुझाइये।
    • यदि भारत ने चुनौतियों पर विजय प्राप्त की, तो क्या भारत इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये तैयार है, निष्कर्ष दीजिये।

    इलेक्ट्रिक वाहन आंतरिक दहन इंजन के बजाय इलेक्ट्रिक मोटर से संचालित होते हैं और इनमें ईंधन टैंक के बजाय बैटरी लगी होती है। सामान्य तौर पर, इलेक्ट्रिक वाहनों की परिचालन लागत कम होती है, क्योंकि इनकी संचालन प्रक्रिया सरल होती है और ये पर्यावरण के लिये भी अनुकूल होते हैं। भारत में, इलेक्ट्रिक वाहन के लिये ईंधन की लागत लगभग 80 पैसे प्रति किलोमीटर है।

    वर्ष 2013 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना तैयार की जो यह सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्ध है कि वर्ष 2030 तक हमारी सड़कों पर कम-से-कम 30 प्रतिशत वाहन इलेक्ट्रिक होंगे। इस समय सीमा के पूरा होने की संभावना नहीं है। वर्ष 2019 में फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME) योजना, इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण और खरीद को प्रोत्साहित करने के लिये सब्सिडी और सहायक प्रौद्योगिकी के संदर्भ में प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध है। भारत में EV बााज़ार वर्ष 2025 में 700 मिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, वर्ष 2017 में 71 मिलियन डॉलर से एक नाटकीय उछाल एक दशक से भी कम समय में 10 गुना वृद्धि हुई है।

    EV विनिर्माण के लिये चुनौतियाँ

    • आपूर्ति शृंखला व्यवधान: कोविड-19 महामारी और अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के कारण पिछले दो वर्ष आपूर्ति शृंखला व्यवधान की स्थिति रही जिसने वैश्विक विनिर्माण रणनीतियों में मूलभूत परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया है। उच्च-तकनीकी उद्योगों के लिये विशेष रूप से इस परिदृश्य का उभार हुआ जो अभी भी सिलिकॉन चिप्स और बैटरी जैसे महत्त्वपूर्ण घटकों की कमी सहित विभिन्न लॉजिस्टिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। भारत की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों को भी चिप्स (जैसे वाहनों में नई मल्टीमीडिया सुविधाओं को संचालित करने वाले चिप्स) की कमी के कारण उत्पादन बंद करना पड़ा।
    • महँगी सामग्री: आपूर्ति शृंखला में व्यवधान और आपूर्ति शृंखला को लघु करने की दौड़ का परिणाम यह हुआ कि महत्त्वपूर्ण घटक निषेधात्मक रूप से महँगे होते जा रहे हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में भारतीय विनिर्माता लिथियम-आयन बैटरी पाने के लिये भी संघर्ष कर रहे हैं जो बड़े पैमाने पर चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान से आयात किये जाते हैं। बैटरी-ग्रेड लिथियम कार्बोनेट (एक प्रमुख इनपुट) के मूल्य नवंबर 2021 में पिछले वर्ष की तुलना में 400% तक बढ़ गए।
    • कच्चे माल के लिये आयात निर्भरता: भारत के पास लिथियम, कोबाल्ट और निकेल जैसे महत्त्वपूर्ण कच्चे माल का अभाव है जिनका उपयोग लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी सेल बनाने के लिये किया जाता है। नतीजतन भारतीय निर्माताओं को चीन, जापान, कोरिया और ताइवान से बैटरी सेल के आयात पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता है। हालाँकि भारत को PLI योजना के तहत घरेलू स्तर पर ACC बैटरी निर्माण के संबंध में निवेशकों से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली है, लेकिन अधिकांश बोलीदाताओं द्वारा वर्ष 2025 से ही विनिर्माण शुरू किये जाने की उम्मीद है।
    • चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी: इलेक्ट्रिक वाहनों से संबंधित सर्वाधिक गंभीर चुनौती भारत में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है। इलेक्ट्रिक वाहन आमतौर पर लिथियम-आधारित बैटरी द्वारा संचालित होते हैं। इन बैटरियों को आमतौर पर प्रत्येक 200-250 किलोमीटर पर चार्ज करने की आवश्यकता होती है। इसलिये चार्जिंग पॉइंट्स के सघन प्रसार की आवश्यकता है। निजी लाइट-ड्यूटी स्लो चार्जर का उपयोग कर घर पर EVs को फुल चार्ज करने में 12 घंटे तक का समय लगता है। घर पर धीमी चार्जिंग की इस तकनीकी समस्या के विकल्प के रूप में देश भर में चुनिंदा चार्जिंग स्टेशन ही उपलब्ध हैं। भारत जैसे बड़े और घनी आबादी वाले देश के लिये इन चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बेहद अपर्याप्त है।

    इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन बढ़ाने के उपाय:

    • प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना: ऑटोमोबाइल क्षेत्र की बड़ी कंपनियों को भविष्य में भारतीय EVs पारितंत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता सुनिश्चित करने के लिये त्वरित गति से कार्य करना चाहिये जो अब तक आयात पर बहुत अधिक निर्भर बना रहा है। भारत की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियाँ आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करने और विभिन्न विनिर्माण समूहों के भीतर एवं उनके मध्य क्षमताओं को उन्नत करने में महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं।
    • दुपहिया वाहनों पर आरंभिक ज़ोर: दुपहिया वाहन EVs घटक निर्माण को स्थानीयकृत करने का एक अच्छा अवसर प्रदान करते हैं। यह खंड पहले से ही सभी नए सवारी इलेक्ट्रिक वाहन पंजीकरणों में लगभग आधे भाग की हिस्सेदारी रखते हैं। भारत पहले से ही दुनिया का सबसे बड़ा दुपहिया विनिर्माता है और बैटरी गीगाफैक्ट्री स्थापित करने के लिये लगाई गई बोलियाँ नए युग की प्रौद्योगिकियों के लिये एक स्वस्थ इच्छा का संकेत देती हैं जो आपूर्ति शृंखला को लघु करने में मदद कर सकती हैं। यह उपयुक्त समय है कि बड़ी कंपनियाँ सक्रिय हों और अपनी EVs महत्त्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाना शुरू करें।
    • बैटरी विनिर्माण: भारत को मुख्य रूप से घरेलू स्तर पर बैटरी विनिर्माण कर और देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की लागत को कम कर एक आपूर्ति शृंखला का निर्माण करने पर अपना ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। हाल ही में टेस्ला इंक (Tesla, Inc.) ने भारत में एक विनिर्माण इकाई स्थापित करने के उद्देश्य से एक भारतीय सहायक कंपनी टेस्ला इंडिया मोटर्स एंड एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड को निगमित किया है जहाँ स्थानीय रूप से टेस्ला कारों का उत्पादन किया जाएगा। इसी तरह, भारत को स्थानीय उत्पादन सुविधाएँ स्थापित करने के लिये घरेलू खिलाड़ियों के साथ ही विदेशी बैटरी निर्माताओं को भी आकर्षित करने की आवश्यकता है। इस तरह के उपायों से बैटरी एवं EVs की लागत कम होगी और लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार होगा।
    • शहरी अपशिष्ट का उपयोग: विनिर्माताओं को बैटरियों के जीवन चक्र के बारे में विचार करने और शहरी अपशिष्ट का उपयोग कर सकने के संबंध में योजना तैयार करने की आवश्यकता है ताकि बैटरियों से उपयोगी सामग्री की पुनः प्राप्ति सुनिश्चित हो सके। इस रणनीति में नई बैटरियों के उत्पादन के लिये आवश्यक 50% सामग्री को बचा सकने की क्षमता है।
    • बेहतर चार्जिंग अवसंरचना, बैटरी निर्माण फैक्ट्रियों और कार कंपनियों एवं उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रिक अपनाने के लिये स्मार्ट प्रोत्साहन प्रदान करने के साथ भारत को इस नई व्यवस्था में अपना उपयुक्त स्थान प्राप्त करने के लिये योजना तैयार करनी होगी। तब भारत एक ऐसी दुनिया के लिए तैयार है जहाँ जहां परिवहन पर इलेक्ट्रिक वाहन हावी होंगे।
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