इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Mains Marathon

  • 23 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    दिवस 44: इको सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) पर सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय क्या है? जैव विविधता के संरक्षण में इको सेंसिटिव ज़ोन की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • इको सेंसिटिव ज़ोन को परिभाषित करते हुए परिचय दीजिये तथा इको सेंसिटिव ज़ोन से संबंधित हालिया निर्णय की व्याख्या कीजिये।
    • जैव विविधता के संरक्षण में इको सेंसिटिव ज़ोन की भूमिका की व्याख्या कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष के साथ अपने उत्तर को समाप्त कीजिये।

    संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क की सीमाएँ अक्सर महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक गलियारे होते हैं जिन्हें जैव विविधता के अंशों के अलगाव को रोकने के लिये संरक्षित किया जाना चाहिये, जो लंबे समय तक जीवित नहीं रहेंगे। इसलिये संरक्षित क्षेत्रों और वन्यजीव गलियारों के आसपास के सभी चिंहित क्षेत्रों को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत पारिस्थितिक रूप से संरक्षित किया जाना है।

    केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016) के अनुसार राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं से कम-से-कम 10 किमी. का अनिवार्य इको सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) होना चाहिये।

    हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:

    • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में 2011 के दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे प्रत्येक संरक्षित वन भूमि, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य की सीमांकित सीमाओं से अनिवार्य रूप से 1 किलोमीटर की सीमा निर्धारित करें।
    • इसने यह भी कहा कि ESZ के भीतर किसी भी नए स्थायी ढाँचे या खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी।
    • यदि मौजूदा ESZ 1 किमी. बफर ज़ोन से अधिक होता है या यदि कोई वैधानिक संस्था उच्च सीमा निर्धारित कराती है, तो ऐसी विस्तारित सीमा मान्य होगी।

    जैव विविधता के संरक्षण में पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र की भूमिका:

    • उद्देश्य: इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों के निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।
    • निषिद्ध गतिविधियाँ:
      • वाणिज्यिक खनन, आरा मिलें, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग, प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं की स्थापना, लकड़ी का व्यावसायिक उपयोग।
      • पर्यटन गतिविधियाँ जैसे- राष्ट्रीय उद्यान के ऊपर गर्म हवा के गुब्बारे, अपशिष्टों का निर्वहन या कोई ठोस अपशिष्ट या खतरनाक पदार्थों का उत्पादन।
    • विनियमित गतिविधियाँ:
      • पेड़ों की कटाई, होटलों और रिसॉर्ट्स की स्थापना, प्राकृतिक जल का व्यावसायिक उपयोग, बिजली के तारों का निर्माण, कृषि प्रणाली में भारी परिवर्तन, जैसे- भारी प्रौद्योगिकी, कीटनाशकों आदि को अपनाना, सड़कों को चौड़ा करना।
    • अनुमति प्राप्त गतिविधियाँ:
      • संचालित कृषि या बागवानी प्रथाएँ, वर्षा जल संचयन, जैविक खेती, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग, सभी गतिविधियों के लिये हरित प्रौद्योगिकी को अपनाना।
    • विकास गतिविधियों के प्रभाव को कम करना:
      • शहरीकरण और अन्य विकासात्मक गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के लिये संरक्षित क्षेत्रों से सटे क्षेत्रों को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया गया है।
    • इन-सीटू संरक्षण:
      • ESZ इन-सीटू संरक्षण में मदद करते हैं, जो अपने प्राकृतिक आवास में लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण से संबंधित है, उदाहरण के लिये काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, असम में एक सींग वाले गैंडे का संरक्षण।
    • वन क्षरण और मानव-पशु संघर्ष को कम करना:
      • इको-सेंसिटिव ज़ोन वनों की कमी और मानव-पशु संघर्ष को कम करते हैं। संरक्षित क्षेत्र प्रबंधन के मूल और बफर मॉडल पर आधारित होते हैं, जिनके माध्यम से स्थानीय क्षेत्र के समुदायों को भी संरक्षित और लाभान्वित किया जाता है।

    राज्यों को प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में आम जनता के लाभ के लिये एक ट्रस्टी के रूप में कार्य करना चाहिये ताकि दीर्घकालिक विकास किया जा सके। सरकार को अपनी भूमिका को राज्य के तत्काल उत्थान के लिये आर्थिक गतिविधियों के सूत्रधार की भूमिका तक सीमित नहीं रखना चाहिये। वनीकरण और अवक्रमित वनों का पुनर्वनीकरण, खोए हुए आवासों का पुनर्जनन, कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ावा दिया जा सकता है।

    संरक्षण तकनीकों का प्रचार-प्रसार करना और संसाधनों के अत्यधिक दोहन व जनता के बीच इसके प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करना।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow