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  • 23 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 13: पिछले वर्ष संसद द्वारा जन प्रतिनिधि अधिनियमों में बदलाव करने के लिये चुनाव कानून (संशोधन) अधिनियम पारित किया गया। इस संशोधन अधिनियम के परिणामस्वरूप क्या परिवर्तन किये जाएँगे? साथ ही संशोधन अधिनियम में निहित समस्याओं की पहचान भी कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • चुनाव कानून संशोधन अधिनियम के बारे परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • चुनाव कानून संशोधन अधिनियम द्वारा किये गए परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये।
    • अधिनियम से संबद्ध विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह का सुझाव देते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।

    20 दिसंबर, 2021 को चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 लोकसभा में पेश किया गया था। यह विधेयक कुछ चुनाव सुधारों को लागू करने के लिये जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन करता है।

    वर्ष 1950 के अधिनियम में सीटों के आवंटन और चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन, मतदाताओं की योग्यता और मतदाता सूचियों को तैयार करने का प्रावधान है।

    वर्ष 1951 के अधिनियम में चुनाव के संचालन और चुनावों से संबंधित अपराधों और विवादों का प्रावधान है।

    चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक द्वारा किये गए सुधार:

    मतदाता सूची के आँकड़ों को आधार से जोड़ना:

    • अधिनियम में कहा गया है कि चुनावी पंजीकरण अधिकारी को अपनी पहचान स्थापित करने के लिये किसी व्यक्ति को अपना आधार नंबर प्रस्तुत करने की आवश्यकता हो सकती है, यदि उनका नाम पहले से ही मतदाता सूची में है, तो सूची में प्रविष्टियों के प्रमाणीकरण के लिये आधार संख्या की आवश्यकता हो सकती है। यदि व्यक्तियों का नाम सूची से हटा दिया जाता है और वे प्रक्रिया द्वारा निर्धारित पर्याप्त कारण के साथ आधार संख्या प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं तो व्यक्तियों को मतदाता सूची में शामिल करने से वंचित नहीं किया जाएगा।ऐसे व्यक्तियों को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित वैकल्पिक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की अनुमति दी जा सकती है।

    मतदाता सूची में नामांकन के लिये अर्हता तिथि:

    • वर्ष 1950 के अधिनियम के तहत, मतदाता सूची में नामांकन के लिये अर्हता तिथि उस वर्ष की 1 जनवरी है जिसमें ऐसी सूची तैयार की जा रही है या संशोधित की जा रही है। इसका तात्पर्य यह है कि एक व्यक्ति जो 1 जनवरी के बाद 18 वर्ष का हो जाता है (यानी, मतदान करने के लिये पात्र) मतदाता सूची में केवल तभी नामांकन कर सकता है जब अगले वर्ष सूची तैयार/संशोधित की जाती है।
    • अधिनियम एक कैलेंडर वर्ष में चार क्वालीफाइंग तिथियाँ प्रदान करने के लिये इसमें संशोधन करता है, जो 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्तूबर होंगी।

    चुनाव उद्देश्यों के लिये परिसर की मांग:

    • वर्ष 1951 का अधिनियम राज्य सरकार को मतदान केंद्रों के रूप में उपयोग किये जाने हेतु आवश्यक या संभावित परिसरों की मांग करने की अनुमति प्रदान करता है जो मतदान के बाद मतपेटियों को संग्रहीत करने के लिये आवश्यक है।
    • अधिनियम उन उद्देश्यों का विस्तार करता है जिनके लिये ऐसे परिसरों की मांग की जा सकती है जिनमे मतगणना के लिये परिसर का उपयोग करना, मतदान मशीनों और मतदान से संबंधित सामग्री का भंडारण और सुरक्षा बलों एवं मतदान कर्मियों के आवास शामिल हैं।

    लिंग-तटस्थ प्रावधान:

    • वर्ष 1950 का अधिनियम कुछ ऐसे व्यक्तियों को निर्वाचक नामावली में पंजीकरण करने की अनुमति देता है जो किसी निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य रूप से निवास करते हैं। ऐसे व्यक्तियों में सेवा योग्यता रखने वाले लोग शामिल हैं, जैसे कि सशस्त्र बलों के सदस्य या भारत के बाहर तैनात केंद्र सरकार के कर्मचारी। ऐसे व्यक्तियों की पत्नियों को भी सामान्य रूप से उसी निर्वाचन क्षेत्र में निवास करने वाला माना जाता है यदि वे उनके साथ रहती हैं। वर्ष 1951 का अधिनियम सेवा योग्यता रखने वाले व्यक्ति की पत्नी को या तो व्यक्तिगत रूप से या डाक मतपत्र द्वारा मतदान करने में सक्षम बनाता है।
    • अधिनियम दोनों अधिनियमों में 'पत्नी' शब्द को 'पति/पत्नी' से बदल देता है।

    संबद्ध चिंताएँ:

    • आधार अपने आप में अनिवार्य नहीं है: वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने के कदम को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।
      • उस समय यह माना गया कि "आधार कार्ड योजना विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक है"।
      • इसके अलावा आधार का मतलब केवल यही था कि यह निवास का प्रमाण है नागरिकता का नहीं।
    • बड़े पैमाने पर मताधिकार से वंचित होने का भय: विधेयक मतदाता पंजीकरण अधिकारियों को आवेदक की पहचान स्थापित करने हेतु मतदाता के रूप में पंजीकरण करने के इच्छुक आवेदकों के आधार नंबर मांगने की अनुमति देता है।
      • आधार के अभाव में सरकार कुछ लोगों को मताधिकार से वंचित करने और नागरिकों की प्रोफाइल बनाने के लिये मतदाता पहचान विवरण का उपयोग करने में सक्षम होगी।
    • डेटा संरक्षण कानून का अभाव: विशेषज्ञों का मानना है कि एक मज़बूत व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून (इस संबंध में एक विधेयक को संसद द्वारा अभी तक मंज़ूरी नहीं दी गई है) के अभाव में डेटा साझा करने की अनुमति देने का कोई भी कदम समस्या उत्पन्न कर सकता है।
    • निजता संबंधी चिंताएँ: वर्तमान में चुनावी डेटा को भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा अपने डेटाबेस में रखा जाता है, जिसकी अपनी सत्यापन प्रक्रिया होती है और यह अन्य सरकारी डेटाबेस से अलग होती है।
      • आधार और चुनाव संबंधी डेटाबेस के बीच प्रस्तावित लिंकेज ECI और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) को डेटा उपलब्ध कराएगा।
      • इससे नागरिकों की निजता का हनन हो सकता है।

    आगे की राह

    • व्यापक कानून की आवश्यकता: एक त्रुटि मुक्त मतदाता सूची स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिये अनिवार्य है। यद्यपि सरकार को चाहिये कि वह इसके लिये व्यापक विधेयक प्रस्तुत करे ताकि संसद में इस मुद्दे पर उचित चर्चा हो सके।
    • अधिक स्पष्टीकरण की आवश्यकता: विधेयक में दो डेटाबेस के बीच डेटा साझाकरण की सीमा, ऐसे तरीके जिनके माध्यम से सहमति प्राप्त की जाएगी और क्या डेटाबेस को जोड़ने के लिये सहमति रद्द की जा सकती है, जैसी बातों को निर्दिष्ट किया जाना चाहिये।
    • बड़े पैमाने पर बेदखली की संभावनाओं को कम करना: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि फर्जी मतदाताओं के बहिष्करण के मामले में वास्तविक मतदाताओं को मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाना चाहिये।
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