लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



संसद टीवी संवाद

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

पब्लिक फोरम : अंतर-कोरियाई शिखर सम्मेलन (Inter-Korean Summit)

  • 27 Sep 2018
  • 26 min read

प्रसारण तिथि 19.09.2018

चर्चा में शामिल मेहमान
डॉ. राहुल राज प्रोफेसर (सेंटर फॉर द कोरियन स्टडी, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय)

एंकर- अनुराग पुनेठा 

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतरराष्ट्रीय संबंध
(खंड-18 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि 

हाल ही में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन ने उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयोंग में आयोजित तीन दिवसीय अंतर-कोरिया सम्मेलन में भाग लिया तथा सम्मेलन की समाप्ति पर दोनों देशों द्वारा साझा प्योंगयोंग घोषणापत्र जारी किया गया। पहला अंतर-कोरियाई सम्मेलन फरवरी 2018 में हुआ था। इसमें कोरियाई प्रायद्वीप में युद्ध की आशंका को खत्म करने, तनाव को कम करने, सैन्य प्रदर्शन को धीरे-धीरे घटाने, सहभागिता से संपन्नता पर ध्यान केंद्रित करने के मुद्दों पर पनमुंजोम घोषणा पत्र स्वीकार किया गया। दशकों पुरानी दुश्मनी भुलाकर शांति की राह पर आए उत्तर और दक्षिण कोरिया अब संबंधों को मज़बूत बनाने में जुट गए हैं। दोनों देशों के बीच तकनीकी रूप से युद्ध की स्थिति अक्सर बनी रहती है क्योंकि 1950-53 के दौरान कोरियाई युद्ध की समाप्ति पर शांति संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये गए थे। लेकिन इस शिखर सम्मेलन से दोनों देशों के बीच एकजुटता के साथ-साथ एकीकरण का आधार बनता दिख रहा है। उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग-उन तथा मून जे-इन ने दोनों देशों के एकीकरण के लिये पर्याप्त एकजुटता दिखाई है जो कि 1940 से एक-दूसरे से अलग हैं।

साझा प्योंगयोंग घोषणा-पत्र

  • कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु शस्‍त्र  विहीन बनाने की दिशा में आगे बढ़ते हुए उत्तर कोरिया ने अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की मौजूदगी में अपना परीक्षण केंद्र और मिसाइल लॉन्च पैड डोंगचंग-री को बंद करने का फैसला लिया।
  • दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून ने कहा कि अमेरिका द्वारा किये गए आह्वान के क्रम में उत्तर कोरिया के अध्यक्ष किम जोंग-उन निरस्त्रीकरण की दिशा में आगे बढ़ते हुए अस्त्र केंद्र योंगब्योन को हमेशा के लिये बंद कर देंगे। 
  • सम्मेलन के दौरान उत्तर कोरिया के नेता किम ने अपने सियोल दौरे पर सहमति जताई। अगर किम की यह यात्रा होती है तो इसे ऐतिहासिक घटना माना जाएगा और यह अंतर-कोरियाई संबंधों के लिये वास्तव में मील का पत्थर साबित होगी। 
  • दोनों देशों ने एक साझा कोरियाई सैन्य समिति के गठन पर सहमति जताई है, जो सैन्य कार्रवाई से संबंधित समझौतों पर नियमित बातचीत करेगी।
  • दोनों कोरियाई देश बुनियादी ढाँचे, पर्यटन, स्वास्थ्य, संस्कृति और खेल जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं। दोनों नेताओं ने गैसोंग औद्योगिक परिसर फिर से शुरू करने पर सहमति जताई।
  • परिवारों को मिलाने के लिये स्थायी केंद्र शुरू करने के साथ-साथ गुएमगैंगसान पर्वत को पर्यटन के लिये शुरू करने और 2023 में प्रस्तावित ओलंपिक ग्रीष्म ऋतु के खेलों की संयुक्त मेज़बानी करने पर भी सहमति जताई।
  • दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून ने प्रतिबद्धता जताई कि आने वाले दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और कोरियाई नेता किम के बीच वार्ता हेतु दूसरे शिखर सम्मेलन के लिये वह प्रयास करेंगे।
  • इससे पहले दोनों नेताओं के बीच सिंगापुर में हुई शिखर वार्ता के बाद भी कई चुनौतियाँ उभरकर सामने आईं और अमेरिका ने निरस्त्रीकरण की प्रक्रिया पर असंतोष जाहिर किया।
  • इसके चलते अमेरिकी विदेश मंत्री पोंपियो की अगस्त में नॉर्थ कोरिया की यात्रा को रद्द करना पड़ा था। राष्ट्रपति मून ने अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच बातचीत में मध्यस्थता के प्रयास तेज़ कर दिये हैं।

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति के इस रुख का क्या कारण है?

  • किम का मानना है कि उन्होंने अपने परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों को पर्याप्त मात्रा में विकसित किया है जिससे कि वह किसी भी हमले से बचाव कर सकते हैं और उत्तरी कोरिया को महत्त्वपूर्ण वार्ता के लिये बल मिल सकता है।
  • किम जोंग-उन उन संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं जो पिछले कुछ सालों में परमाणु हथियार विकसित करने के कारण वास्तव में बिगड़ गए थे।
  • यही कारण है कि दोनों कोरियन देशों को समीप आने का अवसर फरवरी 2018 में प्योंगचांग में आयोजित शीतकालीन ओलंपिक खेलों में मिला। 
  • 8 फरवरी को आयोजित शीतकालीन ओलंपिक गेम्स के उद्घाटन समारोह में उत्तर एवं दक्षिण कोरिया की टीमें कोरिया के एकीकरण का संदेश देते हुए संयुक्त झंडे तले परेड में शामिल हुईं।
  • एकीकरण को लेकर सकारात्मक पक्ष यह है कि दक्षिण कोरिया के पास एक प्रगतिशील नेतृत्व है, जबकि इससे पूर्व जिसने भी दक्षिण कोरिया का नेतृत्व किया है वे रुढ़िवादी विचारधारा के रहे हैं। इसलिये अमेरिका तथा दक्षिण कोरिया के साथ बातचीत का यह बेहतर समय है।
  • दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति को ऐसा महसूस हो रहा है कि यदि दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया के साथ नहीं होगा तो उसका लाभ अमेरिका के साथ-साथ दूसरे देश भी उठा सकते हैं। 

दोनों देशों के एकीकरण की संभावना को किस प्रकार से देखा जा सकता है?

दोनों कोरियाई देशों के लिये एकीकरण एक जज्बाती मुद्दा है। कुछ विचारधाराओं के कारण इन दोनों शक्तियों का आपस में विभाजन हुआ और एकीकरण होना दोनों ही कोरियाई देशों का सपना है।

  • दोनों देशों के नेता एकीकरण की बात करते हैं किंतु दक्षिण कोरिया के अपने आर्थिक निहितार्थ हैं।
  • पुरानी पीढ़ी में एकीकरण की भावना मज़बूत है लेकिन उसमें इच्छाशक्ति नहीं है क्योंकि आर्थिक प्रभाव वहाँ स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। अर्थव्यवस्था के लिहाज से किस प्रकार संपूर्ण उत्तर कोरिया समाहित हो पाएगी, यह एक बड़ी समस्या है।
  • दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था पर्याप्त रूप से मज़बूत है वहाँ बेरोज़गारी की समस्या नहीं है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वह एकीकरण नहीं चाहता।
  • दक्षिण कोरिया की कुछ आबादी एकीकरण के बारे में आशावादी नहीं हैं। 2017 की एकीकरण धारणा (perception) सर्वेक्षण के अनुसार, दक्षिण कोरिया के 24.7 प्रतिशत लोगों को नहीं लगता कि एकीकरण संभव है।
  • दक्षिण कोरिया की केवल 2.3 प्रतिशत जनसंख्या का मानना है कि एकीकरण पाँच साल के भीतर संभव है जबकि 13.6 प्रतिशत जनता का मानना है कि इसे होने में 10 साल का समय लगेगा।
  • हालाँकि, सर्वेक्षण से मिले संकेतों के अनुसार दक्षिण कोरिया की 53.8 प्रतिशत जनसंख्या का मानना ​​है कि एकीकरण आवश्यक है।
  • दक्षिण कोरिया की लगभग आधी जनसंख्या दक्षिण कोरिया की लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था को बनाए रखना चाहती है।
  • दक्षिण कोरिया की 13.5 प्रतिशत जनसंख्या एक देश के भीतर दो प्रणालियों के निरंतर अस्तित्व को प्राथमिकता देती है।
  • एकीकरण की प्रक्रिया में कुल खर्च लगभग 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने की संभावना है। इस विशाल खर्च को देखते हुए दोनों देशों की जनता एकीकरण के पक्ष को लेकर आशावादी नहीं है।
  • हालाँकि अमेरिका तथा जापान ने एकीकरण का समर्थन किया है। यदि वे समर्थन करते हैं या नहीं भी करते हैं तो भी इसका 70-80 प्रतिशत भार दक्षिण कोरिया पर ही आएगा।
  • 1994 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन तथा दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति किम जुंग यील ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। समझौते में कोरियन इकोनॉमिक डेवलपमेंट के तहत दो न्यूक्लियर रिएक्टर आपूर्ति किये जाने पर सहमति जताई गई थी। इसकी लागत का 70 प्रतिशत से अधिक दक्षिण कोरिया के द्वारा, 20 प्रतिशत जापान द्वारा, 5 प्रतिशत यूरोप द्वारा तथा 5 प्रतिशत अमेरिका द्वारा वहन किया जाएगा। तो ऐसे में आर्थिक रूप से विकसित होने के नाते एकीकरण के आर्थिक बोझ के मुद्दे की समस्या का हल भी दक्षिण कोरिया को निकलना चाहिये। 
  • इस प्रकार एकीकरण के परिप्रेक्ष्य में धन एक बड़ा मुद्दा होगा। यह एक आसान प्रक्रिया नहीं होगी।

एक देश दो व्यवस्थाओं की अवधारणा क्या व्यवहार्य है?

वर्ष 2000 में दोनों कोरियाई देशों के नेताओं ने एक देश दो व्यवस्थाओं की अवधारणा पर सहमति व्यक्त की। लेकिन यह विचारणीय प्रश्न है कि यदि एकीकरण की प्रक्रिया सफल नहीं होती है तो एक देश दो व्यवस्थाएँ किस प्रकार काम करेगी और यह कितनी व्यावहारिक होंगी?

  • दोनों देशों द्वारा एकीकरण की प्रक्रिया का विचार काफी पुराना है। यह इतना आसान नहीं है क्योंकि इसके लिये एक लंबी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। जर्मनी का एकीकरण इसका उदहारण है।
  • जर्मनी में एकीकरण की प्रक्रिया 1960 में शुरू हुई तथा यह 1990 में पूरी हुई। अर्थात् इस प्रक्रिया में 30 साल का लंबा वक्त लगा। जबकि जर्मनी में एकीकरण की प्रक्रिया कोरिया में एकीकरण की प्रक्रिया से आसान थी क्योंकि जर्मनी के देशों के बीच आपसी मतभेद नहीं थे और न ही उनके बीच कोई संघर्ष की ही स्थिति थी।
  • दूसरी तरफ, कोरिया में जर्मनी जैसी अनुकूल स्थिति नहीं है। उत्तर तथा दक्षिण कोरिया काफी लंबे समय से आपस में लड़ते रहे हैं, उनकी विचारधारा अलग-अलग रही है।
  • दोनों देशों में राजनीतिक, आर्थिक तथा भू-राजनीतिक मतभेद दिखाई देते रहे हैं। बड़े पैमाने पर कृषि पर आश्रित उत्तरी कोरिया, दक्षिण कोरिया से जीडीपी में 1% से कम है, जो दुनिया की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो की कुछ शीर्ष तकनीकी और इंजीनियरिंग फर्मों का दावा करती है।
  • इस प्रकार, दोनों अर्थव्यवस्थाओं के विलय से मुश्किलें और भी बढ़ेंगी। यह इतना आसान नहीं होगा जितनी आसानी से पूर्व और पश्चिम जर्मनी का 1990 में एकीकरण हुआ था।
  • इसलिये किसी तरह की बड़ी आर्थिक हलचल से बचने के लिये कोरियाई प्रायद्वीप के एकीकरण के लिये सबसे अच्छा विकल्प चीन-हॉन्गकॉन्ग मॉडल को अपनाना हो सकता है। इस मॉडल के तहत दो भिन्न तरह की व्यवस्थाएँ एक ही देश के भीतर कार्यशील रहती हैं। 
  • ऐसे में यह ज़रूरी है कि दोनों देशों में दोस्ती और हिस्सेदारी बनी रहे; यही यथार्थवादी सोच है। 

आसान नहीं है एकीकरण 

  • दोनों देश तकनीकी रूप से अभी भी युद्ध की स्थिति में हैं और 1953 में कोरियाई युद्ध समाप्त होने के बाद भी दोनों ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। 
  • दोनों देशों के बीच बचाव का सबसे अहम हिस्सा असैन्य क्षेत्र वाली 250 किलोमीटर लंबी सीमा है। दोनों देशों की यह सीमा 4 किलोमीटर चौड़ी है, जो दोनों को अलग करती है।  
  • भाषा, संस्कृति और इतिहास में साझेदारी करने के बाद भी दोनों देशों के लिये 'बॉर्डर लाइन' को मिटाना आसान नहीं है।  
  • दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच आर्थिक खाई बहुत चौड़ी हो गई है। वर्तमान में दक्षिण कोरिया आर्थिक और तकनीकी तौर पर काफी उन्नत देश है, जबकि उत्तर कोरिया आज भी पुराने मॉडल पर काम करता है। दक्षिण कोरिया की नई पीढ़ी उत्तर कोरिया के स्टाइल से खुद को जोड़ नहीं पाती।
  • ऐसे में दक्षिण कोरिया के शीर्ष वित्तीय नियामक के अनुसार, यदि अनिवार्य रूप से एकीकरण किया जाता है तो उस स्थिति में उत्तर कोरिया की लगभग ध्वस्त हो चुकी अर्थव्यवस्था के विकास की लागत करीब 500 अरब डॉलर होगी।  
  • दक्षिण कोरिया के वित्तीय सेवा आयोग का यह आकलन 20 साल की अवधि के लिये है और यह उत्तर कोरिया की जीडीपी को बढ़ाकर 10,000 डॉलर करने के लिये ज़रूरी है, जो फिलहाल 1,251 डॉलर है।  
  • 2014 में दक्षिण कोरिया के एकीकरण मंत्रालय द्वारा जारी एक सर्वेक्षण के मुताबिक 70 प्रतिशत लोग कोरियाई प्रायद्वीप के एकीकरण के पक्ष में हैं और लगभग आधी आबादी की इस विशाल वित्तीय लागत में मदद करने में कोई रुचि नहीं है।  
  • दक्षिण कोरिया का सकल घरेलू उत्पाद 2013 में उत्तर कोरिया के मुकाबले 40 गुना अधिक था, जबकि 1990 में जर्मनी के एकीकरण के दौरान पश्चिम एवं पूर्वी जर्मनी के बीच सकल घरेलू उत्पाद के मामले में 10 गुना का अंतर था।  
  • उपरोक्त अनुमानित 500 अरब डॉलर में से लगभग आधी राशि की ज़रूरत कोरिया विकास बैंक और कोरियाई आयात-निर्यात बैंक जैसे सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों को पटरी पर लाने के लिये होगी।

टीम दृष्टि इनपुट

चीन की भूमिका 

दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया तथा संयुक्त राष्ट्र के त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन में चीन पर विचार न करना ठीक नहीं होगा। चीन इसमें बेहद महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी है।

  • एक क्षेत्रीय शक्ति और उत्तर कोरिया के एकमात्र सहयोगी तथा प्रमुख व्यापार शक्ति के रूप में चीन उत्तर कोरिया में एक अहम राजनीतिक प्रभाव रखता है।
  • यह रिश्ता इस तरह का है कि एक बार माओत्से तुंग ने इसे 'दाँत और होठ' जितने क़रीब बताया था। यह दोनों की निकटता और परस्पर निर्भरता को दर्शाता है।
  • चीन के कुछ ख़ास आयोजनों के दौरान 2016 और 2017 में भी उत्तर कोरिया ने बैलिस्टिक मिसाइलों के परीक्षण किये। यह परीक्षण तब किये गए जब चीन में 2016 के जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा था और 2017 में ब्रिक्स सम्मेलन का उद्घाटन हुआ था।
  • इस बीच 2017 में चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उत्तर कोरिया पर कठोर प्रतिबंधों के लिये मतदान किया। उत्तर कोरिया ने इन प्रतिबंधों को अनुचित मानते हुए तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी
  • किम को दक्षिण कोरिया और चीन के अधिकारियों दोनों ने परमाणु निरशस्त्रीकरण पर बातचीत करने के लिये तैयार किया है। लेकिन हमेशा की तरह इसके मायने अमेरिका की तुलना में उत्तर कोरिया के लिये अलग हैं।
  • चीन चाहता है कि कोरियाई प्रायद्वीप में शांति स्‍थापित हो। हालाँकि चीन यह कभी नहीं चाहेगा कि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया एक देश के रूप में सामने आएँ। इसमें उसका हित नहीं है। लिहाजा वह चाहता है कि कोरियाई प्रायद्वीप के ये दो देश कभी एक न हों। इनके एक होने में चीन का नुकसान है। 
  • ऐसा इसलिये है क्‍योंकि दक्षिण कोरिया अमेरिका का समर्थक देश है और अन्‍य देशों की तुलना में काफी विकसित है। ऐसे में यदि ये दोनों देश एक होते हैं तो इनकी ताकत भी बढ़ जाएगी और चीन का सिरदर्द भी बढ़ेगा। 
  • यहाँ पर इस बात को भी नहीं भूलना चाहिये कि चीन और उत्तर कोरिया दोनों ही एक-दूसरे को समर्थन देते हैं। ऐसे में यदि ये दोनों देश एक होते हैं तो चीन अपने समर्थक देशों में से एक को खो देगा। लिहाज़ा वह इनको एक नहीं होने देने की पुरजोर कोशिश करेगा।

क्यों अलग हुए दोनों देश?

क्या ये दोनों देश उसी तरह एक हो सकेंगे, जैसे 1990 में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को बाँटने वाली बर्लिन की दीवार तोड़ दी गई थी और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दो देशों में बंटा जर्मनी पुनः एक हो गया था। 

  • दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध के बाद दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया दो अलग देश बने। इस विभाजन के बाद से दोनों देशों ने अपनी अलग-अलग राह चुनी।  
  • एकीकृत कोरिया पर 1910 से जापान का तब तक शासन रहा जब तक कि 1945 के दूसरे विश्व युद्ध में जापानियों ने हथियार नहीं डाल दिये।  
  • इसके बाद सोवियत संघ की सेना ने कोरिया के उत्तरी भाग को अपने कब्ज़े में ले लिया और दक्षिणी हिस्से पर अमेरिका काबिज़ हो गया।  
  • इसके बाद उत्तर और दक्षिण कोरिया में साम्यवाद और 'लोकतंत्र' को लेकर संघर्ष शुरू हुआ।  
  • जापानी शासन से मुक्ति के बाद 1947 में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के ज़रिये कोरिया को एक राष्ट्र बनाने की पहल की।  
  • संयुक्त राष्ट्र के आयोग की निगरानी में चुनाव कराने का फ़ैसला लिया गया और मई 1948 में कोरिया प्रायद्वीप के दक्षिणी हिस्से में चुनाव हुआ।  
  • इस चुनाव के बाद 15 अगस्त को रिपब्लिक ऑफ कोरिया (दक्षिण कोरिया) बनाने की घोषणा की गई।  
  • इस बीच, सोवियत संघ के नियंत्रण वाले उत्तरी हिस्से में सुप्रीम पीपल्स असेंबली का चुनाव हुआ, जिसके बाद डेमोक्रेटिक रिपब्लिक पीपल्स ऑफ कोरिया (उत्तर कोरिया) बनाने की सितंबर 1948 में घोषणा की गई। 
  • अलग देश बन जाने के बाद दोनों के बीच सैन्य और राजनीतिक विरोधाभास बना रहा, जो पूंजीवाद बनाम साम्यवाद के रूप में सामने आया।

टीम दृष्टि इनपुट

उत्तर-दक्षिण कोरिया के संबंधों में रूस, चीन, अमेरिका तथा जापान क्यों लेते हैं रुचि?

  • 1910 से लेकर 1945 तक उत्तर और दक्षिण कोरिया एक देश थे  और इस पर जापान का कब्जा था। 1945 में जब दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार हुई तो सोवियत रूस ने कोरिया के उत्तरी भाग पर और अमेरिका ने दक्षिणी भाग पर कब्जा कर लिया।
  • 1945 से 1948 तक आते-आते उत्तर और दक्षिण कोरिया में सोवियत और अमेरिकी कब्जे के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होने लगे। अंततः 1948 में उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया अलग-अलग देश बनाए गए। 
  • उत्तर कोरिया में रूस और चीन समर्थित सरकार बनी, जबकि दक्षिण कोरिया में अमेरिका समर्थित सरकार गठित हुई।
  • 1950 में उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर हमला कर दिया और उसके बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया। 
  • दक्षिण कोरिया की मदद के लिये अमेरिका ने सेना भेजी जिससे उत्तर कोरिया को अपने पैर पीछे खींचने पड़े। चीन ने इस युद्ध में उत्तर कोरिया का साथ दिया। एक लाख से अधिक चीनी सैनिक उत्तर कोरिया में भेजे गए।
  • लंबे समय तक चीन, उत्तर कोरिया और अमेरिका की सेनाएँ आमने-सामने रहीं। अंत में भारत ने ब्रिटेन की मदद से चीन को युद्ध विराम के लिये राजी किया। 
  • 1953 में उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में युद्ध विराम हुआ। इसमें भी भारत ने बेहद अहम भूमिका निभाई। युद्धबंदियों की अदला-बदली में भारतीय सेना ने मदद की। 

निष्कर्ष

20वीं सदी का कोरिया विभाजन आज भी दुनिया के लिये बड़े विवाद के रूप में कायम है। अंतर-कोरियाई शिखर सम्मेलन के तहत उत्तर एवं दक्षिण कोरियाई शासकों द्वारा मतभेद भुलाकर एक मंच को साझा करना दोनों देशों के एकीकरण की उम्मीदों को जीवंत बनाता है। लेकिन विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अगर उत्तर और दक्षिण कोरिया का एकीकरण होता है तो उत्तर कोरिया की अकालग्रस्त जनता को राहत मिलेगी, लेकिन दक्षिण कोरिया की विकास दर एक दशक के लिये पीछे जा सकती है। हालाँकि 2009 में प्रकाशित एक शोध में यह संभावना जताई गई थी कि एकीकृत कोरिया में अगले 30 वर्षों में फ्राँस, जर्मनी और जापान को भी पीछे छोड़ देने की क्षमता है। लेकिन कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि दोनों देशों का जर्मनी की तर्ज पर एकीकरण हुआ तो इससे दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था डगमगा सकती है। यदि भविष्य में यह दोस्ती बनी रहती है तो दोनों देश एक होने के बारे में भी सोच सकते हैं, लेकिन उसके अच्छे-बुरे परिणाम नज़र में रखने होंगे।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2