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संसद टीवी संवाद

भारतीय अर्थव्यवस्था

‘ईज़ 3.0 (Ease 3.0) रिपोर्ट’

  • 03 Mar 2020
  • 15 min read

संदर्भ:

हाल ही में केंद्रीय वित्त एवं कार्पोरेट कार्य मंत्री द्वारा देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कार्यप्रणाली के संदर्भ में ‘ईज़ 3.0 रिपोर्ट (Ease 3.0) जारी की गई है। इस रिपोर्ट में सरकारी बैंकों पर कई सवाल उठाए गए हैं, जिनमें बैंकों के कर्ज़ वितरण में अपेक्षित वृद्धि का न होना और बैंक-ग्राहक संबंध जैसे विषय शामिल हैं। इस रिपोर्ट के जारी करने के मौके पर केंद्रीय वित्त एवं कार्पोरेट कार्य मंत्री ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में शाखा स्तर पर व्यावसायिक कर्ज़ वितरण की दर में कमी को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए बैंकिंग क्षेत्र में नवीन तकनीकी के प्रयोग के साथ बैंक-ग्राहक संबंधों में सुधार पर ज़ोर दिया।

ईज़ (Enhanced Access and Service Excellence-EASE) रिपोर्ट:

  • ईज़ रिपोर्ट भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks) के संदर्भ में वार्षिक रूप से जारी की जाने वाली एक आम सुधार रिपोर्ट है।
  • ईज़ रिपोर्ट को भारत सरकार व भारतीय बैंक संघ (Indian Banks’ Association-IBA) के सहयोग से तैयार किया जाता है।
  • ईज़ सुधारों (EASE Reforms) का उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks) में संस्थागत रूप से स्पष्ट एवं स्मार्ट बैंकिंग प्रणाली को लागू करना है।
  • पहली ईज़ रिपोर्ट (EASE1.0) जनवरी 2018 में जारी की गई थी।

मुख्य बिंदु:

  • ईज़ रिपोर्ट के अनुसार, 20 जनवरी को खत्म हुए वित्तीय पखवाड़े में बैंक ऋण/कर्ज़ वितरण में मात्र 7.10% की वृद्धि (100.44 लाख करोड़ रुपए) दर्ज की गई।
  • जबकि एक वर्ष पूर्व समान अवधि में ही यह दर लगभग 9% और उससे पहले नवंबर 2018 में ऋण वितरण की दर लगभग 15% थी।
  • केंद्रीय वित्त एवं कार्पोरेट कार्य मंत्री ने सार्वजनिक बैंकों में कर्ज़ वितरण की दर में कमी के संदर्भ में बैंकिग प्रणाली में व्याप्त कमियों को दूर करने के लिये सुझाव भी दिये जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
    • शाखा स्तर पर बैंक-ग्राहक संबंध में सुधार।
    • ऋण वितरण के लिये क्रेडिट रेटिंग एजेंसी पर निर्भरता को कम करना।
    • ऋण प्रदान करने वाली विभिन्न सरकारी योजनाओं (जैसे-मुद्रा लोन आदि) के प्रति जन-जागरूकता को बढ़ाना।
  • केंद्रीय वित्त एवं कार्पोरेट कार्य मंत्री ने ईज़ (EASE) 3.0 में प्रस्तावित सुधारों के तहत विभिन्न क्षेत्रों (कृषि, व्यवसाय आदि) में ऋण वितरण के लिये तकनीकी के प्रयोग जैसे नए प्रयोगों को बढ़ावा देने पर भी बल दिया।

वर्तमान समय में ऋण वितरण में चुनौतियाँ:

  • आर्थिक क्षेत्र में तनाव: हाल के कुछ वर्षों में निजी क्षेत्र में कई व्यावसायिक संस्थाओं की असफलता और उनकी वित्तीय गड़बड़ियों के कारण आर्थिक क्षेत्र में तनाव की स्थिति देखने को मिली है। इसके साथ ही ज़्यादातर बैंकों ने सुरक्षात्मक रवैया अपनाते हुए ऋण वितरण में कमी की है।
  • मांग में कमी: परिवहन और कई व्यावसायिक क्षेत्रों में दबाव तथा बाजार में मंदी जैसी स्थितियों का प्रभाव अन्य क्षेत्रों जैसे-घर,कार आदि की खरीद पर भी देखने को मिला है। ऐसे में मांग (Demand) में गिरावट भी ऋण वितरण की कमी का एक कारण बना है।
  • शाखा स्तर पर बैंक-ग्राहक संबंध: हाल के वर्षों में सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के बैंकों में काम का भार और ग्राहकों की बढ़ती संख्या के अनुपात में कर्मचारियों की कमी का प्रभाव बैंक-ग्राहक संबंधों पर भी देखने को मिला है। इसके साथ ही पिछले कुछ वर्षों में बैंकिंग प्रणाली और आर्थिक क्षेत्र में कई परिवर्तनों (आधार, नोटबंदी आदि) के दबाव के कारण भी बैंक-ग्राहक संबंधों में तनाव की वृद्धि हुई है।
  • ऋण और अनुदान से संबंधित सरकारी योजनाओं के प्रति जन-जागरूकता की कमी तथा ऐसी योजनाओं के क्रियान्वयन में अनदेखी ऋण वितरण की दर में कमी के कुछ कारणों में से एक है।

ईज़ (EASE) 3.0 के तहत प्रस्तावित सुधार:

बैंकिंग क्षेत्र में व्याप्त कमियों को दूर करने और बैंकिंग प्रणाली को डिजिटल तथा डेटा आधारित (Data-Driven) बनाने के लिये ईज़ 3.0 के तहत कुछ परिवर्तनों एवं नए प्रयोगों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • डायल-ए-लोन (Dial-a-loan): इस योजना का उद्देश्य बैंकिंग प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के साथ ही व्यापार और सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यमों आदि के लिये ऋण उपलब्धता को सुगम बनाना है। डायल-ए-लोन के तहत ग्राहकों को डिजिटल माध्यम से लोन/ऋण के लिये आवेदन की सुविधा प्रदान की जाएगी।
  • ग्राहकों की ज़रूरत के अनुरूप ऋण योजना: ईज़ 3.0 में बैंक-ग्राहक संबंधों में सुधार के साथ ही ग्राहकों की ज़रूरतों के अनुरूप ऋण वितरण की प्रक्रिया और कर-शर्तों में अपेक्षित बदलाव करने पर ज़ोर दिया गया है। उदाहरण- विदेश यात्रा, आभूषण, स्कूल-फीस आदि के लिये किस्त (EMI) आधारित ऋण।
  • ई-व्यापार कंपनियों से साझेदारी: ईज़ 3.0 में प्रस्तावित सुधारों के तहत ग्राहकों की ज़रूरतों के आधार पर आर्थिक क्षेत्र की तकनीकी कंपनियों (Fintech) और ई-व्यापार कंपनियों से साझेदारी जैसी पहलों में बढ़ोतरी को शामिल किया गया है।
  • ऑनलाइन कर वितरण: बैंकिंग प्रणाली के हर पहलू को डिजिटल तकनीकी से जोड़ते हुए विभिन्न क्षेत्रों में ऋण वितरण के लिये क्रेडिट@क्लिक (Credit@Click) योजना का सुझाव दिया गया।
  • कृषि-ऋण में तकनीकी का प्रयोग: ईज़ 3.0 के अंतर्गत कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिये कृषि संबंधी ऋण के मूल्यांकन और वितरण में डेटा (Data)तथा तकनीकी को बढ़ावा देना।
  • पाम बैंकिंग (Palm Banking): बैंकिंग प्रणाली में सरलता तथा स्थानीय भाषा में वित्तीय सेवाओं की शीघ्र पहुँच के लिये।
  • ईज़ बैंकिंग केंद्र: बैंकिंग सुविधा की पहुँच बढ़ाने और इसे कागज रहित (Paperless) बनाने के लिये विभिन्न सार्वजनिक स्थलों जैसे-ट्रेन या बस स्टेशन,अस्पताल आदि स्थानों पर डिजिटल बैंकिंग केंद्र (Outlets or Kiosks) स्थापित करना।

ईज़ (Ease) के तहत पूर्व में प्रस्तावित बैंकिंग सुधारों के प्रभाव:

बैंकिंग प्रणाली में सुधारों के उद्देश्य से जारी पहली ईज़ (EASE 1.0) रिपोर्ट के साथ ही इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखने को मिली है।

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में ईज़ सुधारों द्वारा गैर-निष्पादित संपत्तियों (Non-Performing Assets-NPA) के दबाव को कम करने तथा पूर्व की संस्थागत कमियों को दूर करने में सहायता मिली है।
  • इन सुधारों के माध्यम से दिसंबर 2019 में कुल NPA को 7.17 लाख करोड़ रुपए (11.3%) तक किया जा सका, जो मार्च 2018 में 8.96 लाख करोड़ रुपए (14.6%) था।
  • ईज़ सुधारों के माध्यम से आर्थिक गड़बड़ी (Fraud) के मामलों में भारी कमी हुई है। वित्तीय वर्ष 2018 से वित्तीय वर्ष 2020 के बीच आर्थिक गड़बड़ी के मामलों की संख्या घटकर 0.20% रह गई, जो वित्तीय वर्ष 2010 और वित्तीय वर्ष 2014 के बीच 0.65% थी।
  • ईज़ सुधारों के तहत ऋण उगाही (Debt Recovery) प्रक्रिया द्वारा वित्तीय वर्ष19- 9MFY20 (वित्तीय वर्ष 2020 का 9वाँ माह) में 2.04 लाख करोड़ रुपए की उगाही की गई।
  • पिछले 8 वर्षों में अधिकतम प्रावधान कवरेज अनुपात (Provision Coverage Ratio) 77.5% है।
  • ईज़ 2.0 सूचकांक (EASE 2.0 Index): ईज़ 2.0 सुधारों के लागू होने के बाद मार्च 2019 से दिसंबर 2019 के बीच सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रदर्शन में 35% की वृद्धि देखी गई है। इस सूचकांक में ईज़ सुधारों की 6 श्रेणियों में सकारात्मक सुधार देखने को मिला है, जिनमें अधिकतम सुधार ‘जिम्मेदार बैंकिंग’ (Responsible Banking) और सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यमों के लिये उद्यम-मित्र के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कार्य शामिल हैं।
  • ईज़ 2.0 सूचकांक में भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और ओरिएण्टल बैंक ऑफ कॉमर्स सर्वश्रेष्ठ बैंकों की सूची में सबसे आगे हैं। ईज़ 2.0 सूचकांक की अंतिम रिपोर्ट वर्तमान वित्तीय वर्ष में बैंकों के प्रदर्शन के परिणाम आने के बाद जारी की जाएगी।

मार्च 2018 से दिसंबर 2019 के बीच महत्त्वपूर्ण सुधार:

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में ऋण-मंजूरी की अवधि में 67% की कटौती करते हुए इस समय को 30 दिन की अपेक्षा 10 दिन किया गया।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 80% ग्राहकों को मोबाइल/इंटरनेट के माध्यम से 35 से अधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराने के साथ पिछले 18 महीनों में सुविधाओं की उपलब्धता को दोगुना किया गया।
  • कॉल-सेंटरों के माध्यम से स्थानीय भाषा में सुविधाओं की पहुँच में चार गुना वृद्धि।
  • समस्या निवारण की समयसीमा को 9 दिनों से घटाकर 6 दिन किया गया।
  • इसके साथ ही बैंकों के नेतृत्व में अपेक्षित परिवर्तनों के साथ ही वर्तमान आवश्यकताओं को देखते हुए सलाहकारों की नियुक्ति और कार्यकारी निदेशक की शक्ति में वृद्धि जैसे परिवर्तन किये गए हैं।

आगे की राह:

  • कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि: अनुमान के अनुसार, वर्तमान समय में लगभग सभी बैंकों की एक शाखा में कर्मचारियों की औसतन संख्या 7 है। ऐसे में सामान्य दैनिक कार्य के अलावा सरकारी योजनाओं (मुद्रा योजना, जनधन योजना आदि) के सफल कार्यान्वयन के साथ ऋण वितरण करना बैंकों के लिये एक चुनौती है। अतः बैंकों को आवश्यकता के अनुसार कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिये, जिससे बैंकों के दैनिक कार्यों के साथ-साथ बैंक-ग्राहक संबंधों को भी बेहतर बनाया जा सके।
  • स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता देना: शाखा स्तर पर बैंक-ग्राहक संबंधों को बेहतर बनाने में स्थानीय भाषा का बड़ा योगदान हो सकता है। बैंकिंग सेवाओं के माध्यम से निवेश अथवा ऋण द्वारा आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि करने के लिये शाखा स्तर पर स्थानीय भाषा के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • तकनीकी का बेहतर प्रयोग: बैंकिंग सेवाओं की पहुँच को बढ़ाने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीकी के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। इसके साथ ही ग्राहकों की ज़रूरतों के अनुरूप ऋण या बैंकिंग से संबंधित अन्य योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये विभिन्न क्षेत्रों (कृषि, ई-व्यापार, शिक्षा व उद्यम के नए क्षेत्रों) के बीच समन्वय बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिये।
  • सरकार की योजनाओं के संदर्भ में बैंक और ग्राहक के बीच समन्वय में वृद्धि की जानी चाहिये।

निष्कर्ष: वर्तमान समय में देशों की अर्थव्यवस्था के तहत आर्थिक तंत्र के अनेक महत्त्वपूर्ण अंग/घटक एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। ऐसे में अर्थव्यवस्था के किसी एक क्षेत्र के परिवर्तनों का प्रभाव अन्य क्षेत्रों पर भी देखने को मिलता है। हाल के वर्षों में भारतीय व्यावसायिक क्षेत्र में हुए कई बदलावों का प्रभाव बैंकिंग व्यवस्था पर भी देखने को मिला है। अतः आवश्यक है कि वर्तमान बैंकिंग प्रणाली को भविष्य की ज़रूरतों के अनुरूप बनाने के लिये तकनीकी के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए तथा सभी हितधारकों के बीच समन्वय बढ़ाने हेतु विभिन्न स्तरों पर प्रयासों में वृद्धि की जाए।

अभ्यास प्रश्न: ईज़ रिपोर्ट क्या है? बैंकिंग क्षेत्र में व्याप्त तनाव के संदर्भ में ईज़ सुधारों के महत्त्व और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।

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