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सामाजिक न्याय

महिला उद्यमियों के लिये अवसर

  • 02 Apr 2022
  • 14 min read

यह एडिटोरियल 30/03/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Women Entrepreneurs must Join the Startup Utsav” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में महिला उद्यमियों के लिये की गई पहलों और उनके समक्ष विद्यमान चुनौतियों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

लाखों संभावनाओं और विशाल प्रतिभाओं वाले इस देश में नौकरी पाने की आकांक्षा के बजाय अब स्टार्ट-अप और रोज़गार सृजन की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। युवा उद्यमियों के नेतृत्व में भारत में यूनिकॉर्न की अभूतपूर्व वृद्धि देश में हज़ारों महत्त्वाकांक्षी स्टार्टअप्स को प्रेरित कर रही है।

हालाँकि उद्यमिता को प्रायः पुरुष प्रधान कार्यक्षेत्र के रूप में देखा जाता है और महिलाओं की अनदेखी की जाती है।

भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में परिणत करने के लिये महिला उद्यमिता को इसके आर्थिक विकास में एक बड़ी भूमिका निभानी होगी। भारत का लैंगिक संतुलन विश्व में न्यूनतम संतुलनों में से एक है और इसमें सुधार करना न केवल लैंगिक समानता के लिये बल्कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।

भारत में स्टार्टअप्स का परिदृश्य 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत विश्व के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप पारितंत्र के रूप में उभरा है।
  • वर्ष 2021 में भारत में प्रति माह 3 यूनिकॉर्न (1 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य वाले स्टार्ट-अप फर्म) के योग के साथ इनकी संख्या 51 हो गई है जो यूनाइटेड किंगडम (32) और जर्मनी (32) से अधिक है।
    • भारत के इन 51 यूनिकॉर्न में से पाँच का नेतृत्व महिलाएँ कर रही हैं।
  • MSME के तहत उपलब्ध आँकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं ने फैशन, टेक्सटाइल और होममेड एक्सेसरीज जैसे क्षेत्रों के स्टार्टअप्स में वृद्धि दिखाई है

स्टार्टअप की दौड़ में अधिकाधिक महिला उद्यमियों के शामिल होने का महत्त्व

  • बाज़ार पूंजीकरण में वृद्धि: अनुमान है कि भारत आने वाले वर्षों में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा और भारत का बाज़ार पूंजीकरण इसके नॉमिनल जीडीपी से भी अधिक तेज़ी से बढ़ रहा है
    • आर्थिक सुधार के गति पकड़ने के साथ कंज्यूमर ड्यूरेबल्स से लेकर टेक्सटाइल, फूड से लेकर फुटवियर, एग्रो-प्रोडक्ट्स से लेकर ऑटोमोबाइल तक सभी बाज़ार खंडों में दोहरे अंकों के विकास की उम्मीद है।
  • ‘आइडिया’ और ‘मेंटरशिप’ की उपलब्धता में वृद्धि: बाज़ार की मांग को देखते हुए स्टार्टअप्स को तीन बुनियादी अवयवों की आवश्यकता होती है: आइडिया, मेंटरशिप और फाइनेंस। ये तीनों ही तत्त्व आज भारत में महत्त्वाकांक्षी महिला उद्यमियों के लिये इस तरह उपलब्ध हैं जैसे अतीत में कभी नहीं रहे थे।
    • महिला स्नातकों के स्टार्टअप विचारों को प्रोत्साहित करने के लिये अधिकांश कॉलेजों द्वारा महिलाओं को मेंटरशिप कार्यक्रमों की पेशकश की जा रही है।
    • नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित महिला उद्यमिता कार्यक्रम (Women Entrepreneurship Programme- WEP) के माध्यम से उनके लिये ‘इनक्यूबेशन’ और ‘एक्सिलेरेशन’ सहायता उपलब्ध कराई जा रही है।
    • लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) के प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन (PMEG) कार्यक्रम के तहत उनके लिये विशेष श्रेणी के लाभ उपलब्ध हैं।
  • वित्तीय समावेशिता के अवसर: भारत सरकार और कई राज्य सरकारें महिलाओं के वित्तीय समावेशन में सुधार के लिये योजनाएँ चला रही हैं। ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’ महिलाओं के लिये ऐसी ही एक उच्च-क्षमता योजना है जो संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्रदान करती है।
    • ‘देना शक्ति योजना’ कृषि, विनिर्माण, माइक्रो-क्रेडिट, रिटेल स्टोर या छोटे उद्यम क्षेत्रों में महिला उद्यमियों के लिये 20 लाख रुपए तक का ऋण प्रदान करती है।
      • यह योजना ब्याज दर पर 0.25% की रियायत भी प्रदान करती है।
    • भारत सरकार ने SCs, STs और महिला उद्यमियों जैसे अपर्याप्त रूप से सेवा प्राप्त समूहों की ओर हाथ बढ़ाते हुए ‘स्टैंड अप इंडिया’ योजना भी शुरू की है ताकि वे संस्थागत ऋण संरचना का लाभ उठा सकें।
    • स्त्री शक्ति योजना’ और ‘ओरिएंट महिला विकास योजना’ उन महिलाओं का समर्थन करती है जो अपने कारोबार का अधिकांश स्वामित्व रखती हैं।
    • जो महिलाएँ खानपान/कैटरिंग क्षेत्र में अपना नामांकन कराना चाहती हैं, वे ‘अन्नपूर्णा योजना’ के माध्यम से ऋण प्राप्त कर सकती हैं।

महिला उद्यमियों के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • महिला सलाहकारों की कमी: व्यवसाय संस्थापकों के रूप में कुछ ही महिलाओं की उपस्थिति के कारण साथी उद्यमियों को सलाह और प्रेरणा देने के लिये उनकी कमी रह जाती है।
    • महिला-स्वामित्व वाले स्टार्टअप्स के लिये एक प्रमुख बाधा यह है कि महिलाओं के लिये रोल मॉडल की कमी है जो उद्यमी महिलाओं के लिये अपने अग्रणी साथियों से सीखना और उनकी सहायता लेना कठिन बना देती है।
    • महिलाओं के लिये एक बिज़नेस नेटवर्क के मूल्य को अधिकतम करना भी कठिन है, क्योंकि नेटवर्किंग पारंपरिक रूप से पुरुष-केंद्रित समूहों और संगठनों में ही की जाती रही है।
  • बुद्धिमत्ता क्षमताओं का आकलन करने वाले जैविक पहलू: एक लंबे समय से चली आ रही धारणा यह रही है कि पुरुष नैसर्गिक रूप से अधिक तार्किक होते हैं (इस प्रकार जोखिम-युक्त उपक्रमों के लिये अधिक उपयुक्त होते हैं), जबकि महिलाओं के सहानुभूतिपूर्ण होने की संभावना अधिक होती है (इसलिये वे केवल कुछ निश्चित व्यवसायों के लिये उपयुक्त होती हैं)।
    • मनोवैज्ञानिक अवलोकनों से ग्रहण किये गए औसत अनुमानों के आधार पर महिलाओं के कुछ क्षेत्रों में प्रवेश को बाधित करने के लिये ऐसा दृष्टिकोण सर्वथा अतार्किक है।
  • पितृसत्तात्मक संरचना और पारिवारिक बाधाएँ: जबकि बहुत सी महिलाओं में ऐसे क्षेत्रों में शीर्ष तक पहुँचने की क्षमता और महत्त्वाकांक्षा होती है जो आम तौर पर पूर्णरूपेण पुरुष उपस्थिति से निर्देशित होते रहे हैं, लेकिन समाज की पितृसत्तात्मक संरचना द्वारा प्रायः उन्हें उनके सपनों को साकार करने से वंचित कर दिया जाता है।
    • जब एक महिला व्यवसाय करने की इच्छा जताती है तो आम लोग, रिश्तेदार और यहाँ तक कि माता-पिता भी तुरंत ही कह देते हैं कि यह उसका क्षेत्र नहीं है। अगर वह कुछ करने की इच्छा रखती है तो नौकरी तो कर सकती है लेकिन व्यवसाय करना उसके लिये अनुपयुक्त बताया जाता है।
  • वित्त और प्रबंधन जुटाना: वित्त जुटाना और उसका प्रबंधन एक अन्य कठिन विषय है, क्योंकि अधिकांश मामलों में महिलाओं को क्रेडिट-योग्य नहीं माना जाता है।
    • वेंचर कैपिटलिस्ट, एंजेल निवेशक और बैंकर आम तौर पर ऋण चुका सकने की उनकी क्षमता पर भरोसा नहीं करते हैं।
      • उन्हें वित्त मिल भी जाता है तो मध्यम वर्ग पृष्ठभूमि की महिलाओं को इसके प्रबंधन के कुछ ही अवसर प्राप्त होते हैं, जबकि वे वर्षों से अपने दम पर बिना इसे जाने ही अपने वित्त का प्रबंधन अच्छी तरह से कर रही होती हैं।
    • जब भी उनके व्यवसायों के लिये वित्त प्रबंधन की बात आती है तो उनका आत्मविश्वास कम पड़ने लगता है और अधिकांश समय वे दूसरों पर निर्भर बनी रहती हैं।

स्टार्टअप्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उपाय

  • जोखिम लेने की क्षमता को बढ़ाना: चूँकि महिलाओं के पास कई वित्तीय विकल्प मौजूद हैं, सर्वप्रथम उनके जोखिम लेने की क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत है, फिर वे स्टार्टअप की दौड़ में पुरुषों को पीछे छोड़ने को तैयार होंगी।
    • भारतीय महिलाओं को अपना स्वयं का कारोबार शुरू करने के लिये देश में जारी यूनिकॉर्न ‘उत्सव’ से उत्पन्न हो रहे सुनहरे अवसरों का लाभ उठाना चाहिये और आत्मनिर्भर भारत की यात्रा का नेतृत्व करना चाहिये।
    • यह समाज, वित्तीय संस्थानों, एंजेल निवेशकों और सरकार के लिये यह समझने का समय है कि देश महिलाओं की भागीदारी के बिना स्थायी प्रगति को बढ़ावा नहीं दे सकता और महिलाएँ आर्थिक विकास को उत्प्रेरित कर सकती हैं।
  • महिलाओं को नेतृत्वकारी भूमिका में लाना: महिला उद्यमिता के प्रमुख चालक अवसंरचना और शिक्षा में निवेश होंगे जो भारत में महिलाओं द्वारा शुरू किये गए व्यवसायों के उच्च अनुपात का निर्माण करेंगे।
    • बेहतर शिक्षा एवं स्वास्थ्य, वेतन अंतराल में कमी लाने जैसे प्रयास और अधिक प्रयास को प्रोत्साहित करते हैं और बेहतर कैरियर-उन्नति अभ्यासों के रूप में परिणाम देते हैं; इस प्रकार प्रतिभाशाली महिलाओं को नेतृत्व और प्रबंधकीय भूमिकाओं में बढ़ावा मिलता है।
  • महिलाओं के लिये महिला रोल मॉडल: संबंधित उद्योगों में स्थानीय व्यवसायों का उच्च महिला स्वामित्व अधिक सापेक्षिक महिला प्रवेश दर की संभावना रखता है।
    • मौजूदा महिला उद्यमी सक्रिय रूप से अन्य इच्छुक महिला उद्यमियों की ओर हाथ बढ़ा सकती हैं। यदि अधिक नहीं तो कम से कम वे अपने उद्योगों या कार्यक्षेत्र में उन्हें मार्गदर्शन प्रदान कर सकती हैं।
    • स्थानीय व्यवसायों का संचालन करने की इच्छुक महिलाओं के लिये विशेष रूप से संगोष्ठियों या कार्यशालाओं का आयोजन करना एक और सार्थक कदम हो सकता है।
  • महिला निवेशकों को प्रोत्साहित करना: अधिकांश निवेशक समूहों में पुरुषों का वर्चस्व है और उनके नेतृत्व में संचालित हैं, जबकि निवेश समितियाँ भी प्रायः पुरुष-प्रधान होती हैं। एंजल इनवेस्टर्स में महिलाओं की उपस्थिति मात्र 2% है।
    • ऐसे अचेतन पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिये कम से कम एक या अधिक महिला निवेशकों को निवेश समूह में शामिल किया जाना चाहिये।
    • यदि निर्णय लेने वाले समूह में लैंगिक विविधता होगी तो इस बात की संभावना बनेगी कि निधि की मांग रखने वाली महिलाओं पर अधिक निष्पक्ष तरीके से विचार किया जाएगा और संभवतः वे अधिक अनुकूल निर्णय प्राप्त करने में सफल होंगी।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘महिला उद्यमिता केवल लैंगिक समानता के लिये ही नहीं, बल्कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।’’ टिप्पणी कीजिये।

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