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सामाजिक न्याय

वन हेल्थ मॉडल

  • 05 May 2021
  • 9 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 04/05/2021 को 'द हिंदू' में प्रकाशित लेख “A ‘One Health’ approach that targets people, animals” पर आधारित है। इसमें कोविड-19 की दूसरी लहर को देखते हुए 'वन हेल्थ' (One Health) मॉडल की प्रासंगिकता पर चर्चा की गई है।

आधुनिक पैथोलॉजी के जनक रुडोल्फ विर्को (Rudolf Virchow) ने वर्ष 1856 में इस बात पर ज़ोर दिया था कि मनुष्य एवं पशुओं की चिकित्सा में कोई स्पष्ट विभाजन रेखा नही है।

इस दृष्टिकोण को वन हेल्थ कहा जाता है। इसके तहत पर्यावरण, पशु तथा मानव स्वास्थ्य के अंतर्संबंधों को शामिल किया जाता है। इसके अंतर्गत पर्यावरण, पशु तथा मानव स्वास्थ्य परिस्थितिकी तंत्र से उत्पन्न खतरों को संबोधित करने के लिये बहु आयामी उपाय शामिल किये जाते हैं।

वन हेल्थ के विज़न को प्राप्त करने के मार्ग में कई चुनौतियाॅं हैं, जैसे- पशु चिकित्सकों की कमी, मनुष्य एवं पशु चिकित्सा संस्थानों के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान में कमी, पशुगृह में पशुओं को प्रदान की जाने वाली खाद्य सामग्री में उनके स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही, खाद्य श्रृंखला में शामिल करते समय पशुओं के मांस के वितरण में असावधानी इत्यादि। 

वन हेल्थ मॉडल क्या है?

  • वन हेल्थ का सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization-FAO) विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (World Organisation for Animal Health- OIE) की पहल है।
  • इसका उद्देश्य मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, मिट्टी, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र जैसे विभिन्न विषयों के ज्ञान को कई स्तरों पर साझा करने के लिये प्रोत्साहित करना है, जो सभी प्रजातियों के स्वास्थ्य में सुधार, रक्षा और बचाव के लिये ज़रूरी है।
  • वर्ष 2007 में वन्यजीव संरक्षण सोसायटी (Wildlife Conservation Society- WCS) ने मैनहट्टन सिद्धांतों की 12 सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए 'एक विश्व-एक स्वास्थ्य' (One World-One Health) के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। यह महामारियों को रोकने एवं पारिस्थितिकी तंत्र की अक्षुण्णता को बनाए रखने के आदर्श दृष्टिकोण पर आधारित है।

विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन

  • OIE एक अंतर-सरकारी संगठन है जो विश्व में पशु स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाने हेतु उत्तरदायी है।
  • इसे विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) द्वारा एक संदर्भ संगठन (Reference Organisation) के रूप में मान्यता दी गई है।
  • वर्ष 2018 तक इस संगठन में कुल 182 सदस्य देश शामिल थे। भारत इसका सदस्य है।
  • इस संगठन का मुख्यालय पेरिस (फ्राँस) में स्थित है।

वन हेल्थ मॉडल की आवश्यकता

  • वैज्ञानिकों के अनुसार, वन्यजीवों में लगभग 1.7 मिलियन से अधिक वायरस पाए जाते हैं, जिनमें से अधिकतर के ज़ूनोटिक होने की संभावना है।
  • इसका तात्पर्य है कि समय रहते अगर इन वायरस का पता नहीं चलता है तो भारत को आने वाले समय में कई महामारियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • रोगों की एक अन्य श्रेणी "एंथ्रोपोज़ूनोटिक" है, जिसमें मनुष्यों से जानवरों में संक्रमण फैलता है।
  • हाल के वर्षों में वायरल के प्रकोपों ​​जैसे कि निपाह वायरस, इबोला, सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Severe Acute Respiratory Syndrome- SARS), मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome-MERS) और एवियन इन्फ्लुएंजा का संक्रमण यह अध्ययन करने पर मज़बूर करता है कि हम पर्यावरण, पशु एवं मानव स्वास्थ्य के अंतर्संबंधों की जाॅंच करें और समझें। 

भारत का वन हेल्थ फ्रेमवर्क

  • दीर्घकालिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए भारत ने 1980 के दशक के रूप में जूनोज़िस (Zoonoses) पर एक राष्ट्रीय स्थायी समिति की स्थापना की।
  • इसके अलावा, पशुपालन और डेयरी विभाग (Department of Animal Husbandry and Dairying- DAHD) ने पशु रोगों के प्रसार को कम करने के लिये कई योजनाएँ शुरू की हैं। इसके अलावा DAHD ज़ल्द ही अपने मंत्रालय के भीतर एक एक स्वास्थ्य इकाई स्थापित करेगा।
  • इसके अतिरिक्त, सरकार ऐसे कार्यक्रमों को पुनर्जीवित करने के लिये काम कर रही है जो पशु चिकित्सकों के लिये क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं एवं पशु स्वास्थ्य निदान प्रणाली जैसे कि, राज्यों को पशु रोग नियंत्रण हेतु सहायता प्रदान करना (Assistance to States for Control of Animal Diseases- ASCAD) हेतु उपयोगी है। हाल ही में नागपुर में 'वन हेल्थ केंद्र' स्थापित करने के लिये धनराशि स्वीकृत की गई थी।

आगे की राह

  • रोगों की निगरानी को समेकित करना: मौजूदा पशु स्वास्थ्य और रोग निगरानी प्रणाली, जैसे-पशु उत्पादकता और स्वास्थ्य के लिये सूचना नेटवर्क एवं राष्ट्रीय पशु रोग रिपोर्टिंग प्रणाली को समेकित करने की आवश्यकता है।
  • विकासशील दिशा-निर्देश: अनौपचारिक बाज़ार और स्लॉटरहाउस ऑपरेशन (जैसे, निरीक्षण, रोग प्रसार आकलन) के लिये सर्वोत्तम दिशा-निर्देशों का विकास करना और ग्रामीण स्तर पर प्रत्येक चरण में वन हेल्थ के संचालन के लिये तंत्र बनाना।
  • समग्र सहयोग: वन हेल्थ के अलग अलग आयामों को संबोधित करना, इसे लेकर मंत्रालयों से लेकर स्थानीय स्तर पर भूमिका को रेखांकित कर आपस में सहयोग करना, इससे जुड़ी सूचनाओं को प्रत्येक स्तर पर साझा करना इत्यादि पहल की आवश्यकता है।
  • वन हेल्थ के लिये राजनीतिक, वित्तीय और प्रशासनिक जवाबदेही के संदर्भ में नवाचार, अनुकूलन और लचीलेपन को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • संस्थागत तंत्र की स्थापना: भारत में पहले से ही कई प्रयास चल रहे हैं, जो कि ज़ूनोटिक रोगों में अनुसंधान के डेटाबेस के लिये प्रोटोकॉल विकसित करने से जुड़े हैं। हालाँकि, कोई एकल एजेंसी या ढाॅंचा नहीं है जो वन हेल्थ एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिये अंब्रेला कार्यक्रम की तरह कार्य कर सके। अतः वन हेल्थ अवधारणा को लागू करने के लिये एक उचित संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

भारत कोविड-19 जैसी पशुओं से फैलने वाली खतरनाक महामारी की दूसरी लहर से लड़ रहा है। इसे देखते हुए भारत को वन हेल्थ सिद्धांत के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिये तथा इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास हेतु निवेश करना चाहिये। 

अभ्यास प्रश्न: वन हेल्थ का सिद्धांत कोविड-19 महामारी के संदर्भ में अधिक प्रासंगिक हो गया है। चर्चा कीजिये।

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