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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में CBDC

  • 26 Apr 2022
  • 10 min read

यह एडिटोरियल 23/04/2022 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “CBDC in India — the Pros and the Cons” लेख पर आधारित है। इसमें वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में घोषित ‘सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी’ (CBDC) के गुण-दोषों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

पिछले दशक बाज़ार में कारोबार की जाने वाली कई प्रतिभूतियों के डिजिटलीकरण के बाद अब सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) लाने की तैयारी चल रही है ।

विश्व भर में CBDC की मांग बढ़ रही है। निजी डिजिटल मुद्राओं- क्रिप्टोकरेंसी के तेज़ प्रसार के साथ संभावित मनी लॉन्ड्रिंग और अवैध वित्तपोषण के रूप में वित्तीय प्रणाली की स्थिरता को होने वाले संभावित खतरों को देखते हुए सरकारों को अपने जोखिमों का प्रबंधन करने के लिये शीघ्रता से कार्य करने की आवश्यकता है।

CBDC का परिदृश्य 

  • CBDC कागज़ी मुद्रा का डिजिटल रूप है और किसी भी नियामक संस्था द्वारा संचालित नहीं होने वाली क्रिप्टोकरेंसी के विपरीत केंद्रीय बैंक द्वारा जारी और समर्थित वैध मुद्रा है।
  • कई देशों ने निजी डिजिटल मुद्राओं के विस्थापन को बढ़ावा देने के लिये वैध मुद्रा के रूप में कार्य करने के लिये अधिक विश्वसनीय डिजिटल मुद्राएँ प्रदान करने के उद्देश्य से अपना स्वयं का CBDC जारी करने का निर्णय लिया है।
    • बहामा विश्व की पहली अर्थव्यवस्था है जिसने अपनी राष्ट्रव्यापी CBDC जारी की है जिसे ‘सैंड डॉलर’ (Sand Dollar) नाम दिया गया है।
    • नाइजीरिया एक अन्य देश है जिसने वर्ष 2020 में ‘eNaira’ नामका CBDC जारी की है।
    • चीन विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पहला है जिसने अप्रैल 2020 में डिजिटल मुद्रा e-CNY का परिचालन शुरू किया।
      • कोरिया, स्वीडन, जमैका और यूक्रेन कुछ अन्य ऐसे देश हैं जिन्होंने अपनी डिजिटल मुद्रा का परीक्षण शुरू कर दिया है और कई अन्य देश भी जल्द ही इसके लिये आगे बढ़ सकते हैं।
  • हाल ही में बजट 2022-23 में भारत सरकार ने घोषणा की है कि RBI द्वारा वर्ष 2022-23 के आरंभ में एक डिजिटल मुद्रा जारी किया जाएगा।
  • इसका मुख्य उद्देश्य जोखिम का शमन और वास्तविक मुद्रा के प्रबंधन, गंदे नोटों को चरणबद्ध तरीके से हटाने, परिवहन, बीमा एवं रसद से जुड़े लागत को कम करना है।
  • यह धन हस्तांतरण के साधन के रूप क्रिप्टोकरेंसी से लोगों को दूर भी रखेगा।

CBDC के लाभ 

  • परंपरा और नवोन्मेष का संयोजन: CBDC मुद्रा प्रबंधन लागत को कम करके धीरे-धीरे आभासी मुद्रा की ओर एक सांस्कृतिक बदलाव ला सकता है।
    • CBDC की परिकल्पना दोनों पक्षों के सर्वश्रेष्ठ को साथ लाने के लिये की गई है जहाँ क्रिप्टोकरेंसी जैसे डिजिटल रूपों की सुविधा एवं सुरक्षा और पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली का विनियमित, आरक्षित-समर्थित धन परिसंचरण शामिल है।
  • सीमा-पार आसानी से भुगतान: CBDC एक विश्वसनीय संप्रभु समर्थित घरेलू भुगतान और निपटान प्रणाली को आंशिक रूप से कागजी मुद्रा को प्रतिस्थापित करने के लिये एक आसान साधन प्रदान कर सकता है।
    • इसका उपयोग सीमा-पार भुगतान (Cross-Border Payments) के लिये भी किया जा सकता है; यह सीमा-पार भुगतानों के निपटान के लिये कोरेस्पोंडेंट बैंकों के महंगे नेटवर्क की आवश्यकता को समाप्त कर सकता है।
  • वित्तीय समावेशन: बेहतर कर एवं नियामक अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को औपचारिक क्षेत्र की ओर आगे बढ़ाने के लिये कई अन्य वित्तीय गतिविधियों के संबंध में भी CBDC के बढ़ते उपयोग की तलाश की जा सकती है।
    • यह वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने का मार्ग भी प्रशस्त कर सकता है।
  • आतंक के वित्तपोषण या मनी लॉन्ड्रिंग हेतु मुद्रा के उपयोग को रोकने के लिये ‘अपने ग्राहक को जानिये’ (KYC) मानदंडों के सख्त अनुपालन को लागू करने की आवश्यकता है।

CBDC से जुड़े जोखिम 

  • गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: चूँकि केंद्रीय बैंक को उपयोगकर्त्ता लेनदेन के संबंध में भारी मात्रा में डेटा को संभालने की आवश्यकता होगी, पहली आवश्यकता उपयोगकर्त्ता की निजता के लिये बढ़ते जोखिम के प्रबंधन की होगी। इसके गंभीर निहितार्थ हैं क्योंकि डिजिटल मुद्राएँ उपयोगकर्त्ताओं को उस स्तर की गोपनीयता और नाम-गुप्तता प्रदान नहीं करेंगी जैसा नकदी लेनदेन के मामले में प्राप्त होती है।
    • साख से समझौता एक अन्य प्रमुख समस्या है।
  • बैंकों की गैर-मध्यस्थता: यदि CBDC की ओर संक्रमण पर्याप्त रूप से वृहत और व्यापक होगा, तो यह क्रेडिट मध्यस्थता (Credit Intermediation) में धन के पुनर्निवेश की बैंकों की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
    • यदि ई-कैश (e-cash) लोकप्रिय हो जाता है और भारतीय रिज़र्व बैंक मोबाइल वॉलेट में जमा की जा सकने वाली राशि पर कोई सीमा आरोपित नहीं करता है तो कमज़ोर बैंक निम्न-लागत जमा राशि को बनाए रखने हेतु संघर्ष कर सकते हैं।
  • इससे संबद्ध अन्य जोखिम हैं:
    • प्रौद्योगिकी का तीव्र अप्रचलन CBDC पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा पैदा कर सकता है और उन्नयन/अपग्रेडेशन की उच्च लागत की मांग कर सकता है ।
    • मध्यस्थों के परिचालनात्मक जोखिम के रूप में कर्मचारियों को CBDC वातावरण में काम कर सकने के लिये फिर से प्रशिक्षित और तैयार करना होगा।
    • उन्नत साइबर सुरक्षा जोखिम, भेद्यता परीक्षण और फायरवॉल सुरक्षा पर आने वाली लागत।
    • CBDC के प्रबंधन में केंद्रीय बैंक के लिये परिचालन बोझ और लागत।

CBDC के जोखिमों को कैसे दूर करें?

  • CBDC की कुछ कमज़ोरियों को दूर करने के लिये इसका उपयोग भुगतान-केंद्रित बनाया जाना चाहिये ताकि भुगतान एवं निपटान प्रणाली को बेहतर बनाया जा सके। इससे यह मध्यस्थता जोखिम और इसके प्रमुख मौद्रिक नीति प्रभावों से बचने के लिये मूल्य भंडार के रूप में सेवा देने से मुक्त रह सकता है।
  • एक केंद्रीकृत प्रणाली में केंद्रीय बैंक के पास संग्रहीत डेटा के साथ गंभीर सुरक्षा जोखिम जुड़े होंगे और डेटा उल्लंघनों को रोकने के लिये मज़बूत डेटा सुरक्षा प्रणालियाँ स्थापित करनी होंगी। इस प्रकार, उपयुक्त प्रौद्योगिकी का नियोजन महत्त्वपूर्ण है जो CBDC को सहयोग करे।
  • CBDC के लिये आवश्यक अवसंरचना का आकार दुरूह बना रहेगा यदि भुगतान लेनदेन उसी प्रणाली के उपयोग से संपन्न किया जाए। RBI को प्रौद्योगिकी परिदृश्य को अच्छी तरह से आकलित करना होगा और CBDC लॉन्च करने के लिये उपयुक्त प्रौद्योगिकी के चयन के साथ सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होगा।
  • डिजिटल मुद्रा लेनदेन के संबंध में एकत्रित वित्तीय डेटा अपनी प्रकृति में संवेदनशील होगा और सरकार को नियामक दृष्टिकोण से सावधानीपूर्वक विचार करना होगा। इसके लिये बैंकिंग और डेटा सुरक्षा नियामकों के बीच घनिष्ठ अंतःक्रिया/संपर्क की आवश्यकता होगी।
    • इसके अलावा, संस्थागत तंत्र को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी कि विभिन्न नियामकों के बीच कोई ‘ओवरलैप’ न हो और डिजिटल मुद्राओं के डेटा उल्लंघन के मामले में स्पष्ट कार्रवाई का चार्ट तैयार करना होगा।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘समस्त चुनौतियों के बावजूद विवेकपूर्ण होगा कि CBDC के विचार को सिरे से छोड़ नहीं दिया जाए। इसके बजाय विभिन्न जोखिमों को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है ताकि CBDC को इस तरह से पेश किया जा सके जो पूरी प्रणाली के लिये लाभप्रद हो।’’ चर्चा कीजिये।

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