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जैव विविधता और पर्यावरण

पराली की समस्या और स्वीडिश तकनीक

  • 04 Dec 2019
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

पराली जलाने से उत्पन्न समस्या को दूरकरने के लिये स्वीडिश तकनीक

मेन्स के लिये:

पराली जलाने से उत्पन्न समस्या और उसके हानिकारक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने पराली (फसल अवशेष) जलाए जाने से उत्पन्न समस्या दूर करने के लिये एक स्वीडिश (Swedish) तकनीक का परीक्षण किया है।

मुख्य बिंदु:

  • दिल्ली में सर्दियों के दौरान वायु की गुणवत्ता में आने वाली तीव्र गिरावट का मुख्य कारण पराली का जलना है परंतु पराली जलाने का सिलसिला अभी भी जारी है।
  • इस मुद्दे का हल खोजने के लिये भारत एक स्वीडिश तकनीक का परीक्षण कर रहा है जो धान के फसल अवशेष को ‘जैव-कोयला’ (Bio-coal) में परिवर्तित कर सकती है।
  • स्वीडन की कंपनी बायोएंडेव (Bioendev) ने पंजाब में अपनी पहली पायलट परियोजना प्रारंभ कर दी है।
  • सतत विकास और साझेदारी के लिये नवाचारों पर भारत-स्वीडन वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्वीडन के राजा कार्ल गुस्ताफ ने इस पायलट परियोजना के क्रियान्वयन पर हस्ताक्षर किये।
  • भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार (Principal Scientific Advisor- PSA) के कार्यालय द्वारा इस प्रौद्योगिकी की व्यवहार्यता का मूल्यांकन करने के लिये इस परियोजना का वित्तपोषण किया गया है।
  • बायोएंडेव ने अपना पहला संयंत्र पंजाब के मोहाली में राष्ट्रीय कृषि खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (National Agri-Food Biotechnology Institute) के परिसर में स्थापित किया है।

फसल अवशेष को जैव-कोयला में बदलने की तकनीक:

  • बायोएंडेव के अनुसार, इस तकनीक से फसल अवशेष के लगभग 65% बायोमास (Biomass) को उर्जा में बदला जा सकता है।
  • मोहाली स्थित संयंत्र हर घंटे में लगभग 150-200 किलोग्राम धान के पुआल को जैव-कोयला में परिवर्तित कर सकता है और CO2 के उत्सर्जन में 95 प्रतिशत तक की कमी ला सकता है।
  • इस प्रौद्योगिकी में पुआल, घास, मिलों से निकलने वाले अवशेषों तथा लकड़ी के अवशेषों को 250°C-350°C पर गर्म किया जाता है। इससे बायोमास के तत्त्व कोयले के समान छर्रेनुमा आकार में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • इस छर्रेनुमा आकार के पदार्थ को स्टील और सीमेंट उद्योगों में कोयले के साथ दहन के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
  • अभी तक इस तकनीक का परीक्षण स्कैंडिविया (Scandivia) स्थित एक 16000 टन/वर्ष की क्षमता वाले संयंत्र में किया गया है।
  • मोहाली स्थित इस संयंत्र की उर्जा क्षमता 1500 मेगावाट है।

क्या है पराली?

  • पराली धान की फसल कटने के बाद बचा बाकी हिस्सा होता है, जिसकी जड़ें ज़मीन में होती हैं।
  • किसान धान पकने के बाद फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं क्योंकि वही काम का होता है बाकी किसान के लिये बेकार होता है। उन्हें अगली फसल बोने के लिये खेत खाली करने होते हैं जिस वजह से पराली को आग के हवाले कर दिया जाता है।
  • आजकल पराली इसलिये भी अधिक होती है क्योंकि किसान अपना समय बचाने के लिये मशीनों से धान की कटाई करवाते हैं। मशीनें धान का केवल ऊपरी हिस्सा काटती हैं और नीचे का हिस्सा अब पहले से ज़्यादा बचता है। इसे हरियाणा तथा पंजाब में पराली कहा जाता है।
  • यदि किसान हाथों से धान की कटाई करें तो खेतों में पराली नहीं के बराबर बचती है। बाद में किसान इस पराली को पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

स्रोत- द हिंदू, टाइम्स ऑफ़ इंडिया

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