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जैव विविधता और पर्यावरण

स्काईग्लो

  • 25 Jan 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आकाश-प्रदीप्ति/स्काईग्लो, लाइट पॉल्यूशन, सर्केडियन क्लॉक, डार्क स्काई।

मेन्स के लिये:

स्काईग्लो और इसके निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अध्ययन में पता चला है कि वर्ष 2011 और 2022 के बीच गैर-प्राकृतिक प्रकाश ने पारिस्थितिक, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक प्रभाव के साथ स्काईग्लो की चमक में प्रतिवर्ष 9.2-10% की वृद्धि की है।

  • शोधकर्त्ताओं ने वैश्विक डेटाबेस का विश्लेषण किया कि किसी विशेष स्थान से दिखाई देने वाला सबसे धुँधला तारा क्या है, विदित हो कि डेटाबेस में वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत 51,000 से अधिक प्रविष्टियाँ थीं।  

स्काईग्लो/आकाश-प्रदीप्ति  

  • स्काईग्लो शहरों में और उनके आस-पास रात के समय आकाश में प्रकाश की एक सर्वव्यापी चादर है जो सबसे चमकीले सितारों को छोड़कर सभी को अवरुद्ध कर सकती है।
  • रात के समय रिहायशी इलाकों में आसमान का चमकना स्ट्रीट लाइट, सुरक्षित फ्लडलाइट और बाहरी सजावटी रोशनी स्काईग्लो का कारण बनता है।
  • यह प्रकाश सीधे रात्रिचर (रात में सक्रिय)  जीवों की आँखों पर पड़ता है तथा उन्हें मार्ग से भटकाने का कार्य करता है।
  • स्काईग्लो' प्रकाश प्रदूषण के घटकों में से एक है।

Energy-Waste

स्काईग्लो परिदृश्य:

  • वैश्विक: 
    • यूरोप में लगभग 6.5%, उत्तरी अमेरिका में 10.4% और शेष विश्व में 7.7% स्काईग्लो परिदृश्य देखा गया है।
    • यह खोज महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह उपग्रह आधारित आँकड़ों का खंडन करती है, जिसमें वृद्धि की वार्षिक दर लगभग 2% बताई गई थी। 
      • यह अंतर संभवतः उपग्रहों द्वारा पृथ्वी के समानांतर उत्सर्जित प्रकाश संबंधी करने और LED द्वारा उत्सर्जित नीली रोशनी का "पता लगाने" में असमर्थता के कारण है।
  • भारत: 
    • वर्ष 2016 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत की 19.5% आबादी, जो कि G20 देशों में सबसे कम है, स्काईग्लो के उस स्तर का अनुभव करती है, जो कम-से-कम मिल्की वे आकाशगंगा को अदृश्य रखेगा तथा अधिकांश "मानव आँखों के लिये अँधेरे संबंधी अनुकूलन" को असंभव बना देगा
    • इसके अंतर्गत मानव आँखों में कोन सेल्स (Cone Cells) को उत्तेजित करना शामिल है, जो केवल अच्छी तरह से प्रकाशित वातावरण में ही संभव है। 
    • वर्ष 2017 के एक अध्ययन से पता लगाया गया था कि वर्ष 2012 और 2016 के बीच भारत के प्रकाशित क्षेत्र (Lit Area ) में 1.07-1.09% की वृद्धि हुई थी और "स्थिर रूप से प्रकाशित क्षेत्रों" के औसत प्रकाश में 1.05-1.07% की वृद्धि हुई (दावानल की घटनाओं को इससे अलग रखते हुए)। 

स्काईग्लो के निहितार्थ:

  • ऊर्जा और धन की बर्बादी: 
    • ऐसे स्रोत जिनसे प्रकाश ऐसी जगह भी पहुँच रहा हो, जहाँ समय या स्थान तथा आवश्यकता का ध्यान नहीं रखा जा रहा हो, तब भी यह व्यर्थ ही है। ऊर्जा नष्ट करने के हानिकारक आर्थिक और पर्यावरणीय परिणाम होते हैं। 
  • वन्यजीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करना:
    • प्रजनन, पोषण, नींद और शिकारियों से सुरक्षा जैसे जीवन-निर्वाह व्यवहारों को नियंत्रित करने हेतु पौधे व जानवर पृथ्वी पर दिन एवं रात के प्रकाश के दैनिक चक्र पर निर्भर करते हैं। 
    • वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि रात में कृत्रिम प्रकाश उभयचरों, पक्षियों, स्तनधारियों, कीड़ों और पौधों सहित कई जीवों पर नकारात्मक एवं घातक प्रभाव डालता है।
      • उदाहरण: प्रकाशित समुद्र तट समुद्री कछुओं को घोसले से बाहर आने से रोकते हैं। कृत्रिम प्रकाश पौधों को मौसमी विविधताओं को महसूस करने से रोकता है।     
      • रात में कृत्रिम प्रकाश के संपर्क में आने पर क्लाउनफिश के अंडे परिपक्व नहीं हो पाते हैं, जिससे इनके बच्चे मर जाते हैं।   
  • मानव स्वास्थ्य को नुकसान:
    • पृथ्वी पर अधिकांश जीवों की तरह मनुष्य एक सर्केडियन विधि का पालन करते हैं जिसे हम जैविक घड़ी या दिन-रात चक्र द्वारा शासित नींद-जागने के एक पैटर्न के रूप में उपयोग करते हैं। रात में कृत्रिम प्रकाश इस चक्र को बाधित कर सकता है।
    • वर्ष 2009 की एक छोटी सी समीक्षा ने निष्कर्ष निकाला कि सर्केडियन व्यवधान, जिसने मेलाटोनिन के स्तर को बदल दिया, नाइट-शिफ्ट श्रमिकों के बीच स्तन कैंसर के जोखिम को 40% तक बढ़ा दिया।
    • रात्रिकालीन आकाश का विलोपन तारों के स्थानीय संबंध को नष्ट करने का कार्य करता है, जो सांस्कृतिक और पारिस्थितिक ह्रास के रूप में कार्य करता है। 

समाधान:

  • शोधकर्त्ता प्रकाश स्रोतों को क्षितिज के तल के नीचे एक कोण पर प्रकाश डालने की सलाह देते हैं, ये स्रोतों के उत्सर्जन को कैप करते हैं और उनके आउटपुट को उस स्थान पर कुल चमक के अनुसार कैलिब्रेट करते हैं।
  • जहाँ रोशनी बंद नहीं की जा सकती है, वहाँ ढाल का निर्माण किया जा सकता है ताकि वे आसपास के वातावरण और आकाश में प्रकाश न फैला सकें। 
  • इंटरनेशनल डार्क-स्काइज़ एसोसिएशन ने 130 से अधिक 'इंटरनेशनल डार्क स्काई प्लेसेस' को प्रमाणित किया है, जहाँ स्काईग्लो और प्रकाश के अतिचार को कम करने के लिये कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था को समायोजित किया गया है। हालाँकि लगभग सभी विकसित देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित हैं।
  • कम विकसित क्षेत्रों में अक्सर पर्याप्त प्रजातियों पाई जाती हैं और कम प्रकाश-प्रदूषित होते हैं, जो जानवरों के गंभीर रूप से प्रभावित होने से पूर्व प्रकाश समाधान हेतु निवेश करने का अवसर प्रदान करते हैं। 

स्रोत: द हिंदू

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