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जैव विविधता और पर्यावरण

खनित क्षेत्रों का पुन: हरितकरण

  • 09 Jan 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

भारत में खनन क्षेत्र

मेन्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खनन क्षेत्र संबंधी निर्णय लेने का कारण एवं इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को खनन लाइसेंस धारकों द्वारा खनन क्षेत्रों की बंजर भूमि का पुन: हरितकरण (मुख्यतः घास- Regrassing) किये जाने संबंधी नए प्रावधान को लाने का आदेश दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया है कि प्रत्येक खनन लाइसेंस, पर्यावरण मंज़ूरी और खनन योजना के लिये विभिन्न खनन क्षेत्रों में पुन: हरितकरण (मुख्यतः घास) को एक अनिवार्य शर्त के रूप में शामिल किया जाए।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय ओडिशा की कुछ निजी खनन संस्थाओं एवं ओडिशा खनन निगम द्वारा दायर की गई लौह अयस्क खनन संबंधी अपील की सुनवाई करते हुए दिया।

क्या है सर्वोच्च न्यायालय का आदेश?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जिस क्षेत्र में खनन किया गया है, उस क्षेत्र में फिर से पर्यावरणीय बहाली की जानी चाहिये इससे इन खनन क्षेत्रों में पशुओं के लिये घास सहित अन्य वनस्पतियाँ विकसित हो सकेंगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, अगर भारत संघ खनन क्षेत्र को लाइसेंस एवं पर्यावरणीय मंज़ूरी प्रदान करने के लिये ‘बंद किये गए खनन क्षेत्रों’ तथा खनन क्रिया-कलापों के कारण पर्यावरणीय रूप से क्षतिग्रस्त क्षेत्रों का पुन: हरितकरण (मुख्यतः घास) करने की आवश्यक शर्त रख दे तो यह वनस्पति, प्राणीजात और चारे के विकास के लिये उपयुक्त होगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से तीन सप्ताह में कार्यवाही से संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत करने तथा खनन लाइसेंस-धारकों द्वारा इन मानकों का अनुपालन किये जाने हेतु आवश्यक प्रक्रिया सुनिश्चित करने को कहा है।
  • खनन किये गए क्षेत्र में पुन: हरितकरण (मुख्यतः घास) तथा खनन क्रिया-कलापों के कारण हुई पर्यावरणीय क्षति की पर्यावरणीय बहाली की लागत खनन लाइसेंसधारक द्वारा वहन की जाएगी।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा क्यों दिया गया है यह आदेश?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश इसलिये दिया है क्योंकि खनन प्रक्रियाओं में प्रयुक्त रसायनों द्वारा भूमि का क्षरण, सिंकहोल्स (Sinkholes) का निर्माण, जैव-विविधता का नुकसान और मिट्टी, भूजल एवं सतही जल प्रदूषित होता है।
  • एक ऐसा क्षेत्र जो खनन कार्य किये जाने के कारण पूरी तरह से घास-मुक्त हो गया हो, वहाँ शाकाहारियों के लिये भोजन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

खनन के कारण होने वाली पर्यावरणीय क्षति:

  • खदानों में बारूद के उपयोग, खानों से ढुलाई एवं परिवहन और कचरे के ढेरों के कारण वायु प्रदूषण होता है।
  • लौह अयस्क/खनिज खानों से निकलने वाले अपशिष्ट में उपस्थित आणविक अथवा अन्य हानिकारक तत्त्वों से जल प्रदूषित होता है।
  • खनन के कारण उपलब्ध जल क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन, जैसे कि सतही बहाव, भूमिगत जल की उपलब्धता में परिवर्तन और जल स्तर का और नीचे चला जाना।
  • भूमि कटाव, धूल और नमक से भूमि के स्वरूप में परिवर्तन होता है।
  • वनों के विनाश के कारण पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं को नुकसान होता है।
  • अनुपचारित कचरे के ढेर के कारण क्षेत्र की सुंदरता नष्ट होती है।

स्रोत- द हिंदू

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