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शासन व्यवस्था

नर्मदा ज़िले में ESZ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

  • 31 Dec 2020
  • 9 min read

चर्चा में क्यों? 

गुजरात के जनजातीय समुदायों द्वारा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ( MoEFCC) के उस आदेश का विरोध किया जा रहा है, जिसमें नर्मदा ज़िले के शूलपनेश्वर वन्यजीव अभयारण्य के आसपास के 121 गाँवों को पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (Eco-Sensitive Zones) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

  • उन्होंने विरोध को शांत करने के लिये केंद्र सरकार से अपील की है कि इस अधिसूचना को वापस लिया जाए।
  • ताड़वी और वसावा जैसी जनजातियों के मन में चिंता तब से देखी जा रही है जब से नर्मदा ज़िले के केवडिया गांँव को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (Statue of Unity- SoU) के आसपास एक पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित किया गया था।

प्रमुख बिंदु 

विरोध के पीछे कारण:

  • पर्यावरण संवेदी क्षेत्र में शामिल होने वाली भूमि, जिसमें कृषि कार्य में उपयोग की जाने वाली भूमि तथा पार्क के लिये आरक्षित भूखंड शामिल हैं, को वाणिज्यिक, औद्योगिक या आवासीय प्रयोजनों तथा गैर-कृषि उपयोग हेतु स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।
    • किसी भी भूमि को सरकार के अनुमोदन के बाद ही हस्तांतरित किया जा सकता है।
  • राज्य सरकार को 121 गाँवों की भूमि में सह-स्वामित्व (Co-Owner) प्रदान करने हेतु एक प्रक्रिया शुरू की गई है।
    • जनजातीय समुदाय में इस आदेश को लेकर शंका है क्योंकि उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया था।
  • जारी अधिसूचना तथा एसओयू टूरिज़्म अथॉरिटी ( जिसे एसओयू एरिया डेवलपमेंट एंड टूरिज्म गवर्नेंस अथॉरिटी के नाम से भी जाना जाता है) के संयुक्त गठन ने तेज़ी से बढ़ते पर्यटन क्षेत्र हेतु प्रशासनिक ज़रूरतों को बढ़ाया है और आदिवासियों में अविश्वास और भय की स्थिति को बढ़ाया है।
    • जनजातीय समुदायों का मानना है कि दोनों सरकारी आदेशों को एक साथ लागू करने से संविधान की अनुसूची V के अंतर्गत अधिसूचित क्षेत्रों में लागू पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम (PESA अधिनियम), 1996 के तहत ग्रामीणों और ग्राम सभाओं में निहित 'शक्तियाँ' प्रभावित हो सकती हैं।
    • पाँचवीं और छठी अनुसूचियाँ कुछ क्षेत्रों के लिये वैकल्पिक या विशेष शासन तंत्र प्रदान करती हैं।

पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम (PESA), 1996

  • गुजरात ने जनवरी 2017 में राज्य PESA नियमों को अधिसूचित किया था, जो कि राज्य के आठ ज़िलों की 4,503 ग्राम सभाओं में लागू होते हैं।
  • इस अधिनियम के तहत ग्राम सभाओं को स्वयं से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने की पूरी शक्ति देने की बात कही गई है।
  • कानून के प्रावधानों के तहत ग्राम सभाओं को अपने क्षेत्रों, आदिवासियों और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संबंधित मामलों से निपटने में ‘सबसे सक्षम’ माना गया है।
  • हालाँकि कानूनी विशेषज्ञों की माने तो इस अधिनियम को सही ढंग से लागू नहीं किया गया है।

स्टेच्यू ऑफ यूनिटी पर्यटन प्राधिकरण (SoUTA):

  • सरकार ने वर्ष 2019 में SoU क्षेत्र विकास और पर्यटन प्रशासन प्राधिकरण या SoU पर्यटन प्राधिकरण (SoUTA) विधेयक पारित किया।
    • यह बिल SoUTA द्वारा कार्यों और कर्तव्यों के निर्वहन के लिये राज्य के समेकित कोष से 10 करोड़ रुपए निर्धारित करता है।
    • हालांँकि एक्टिविस्ट और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह अधिनियम पेसा (PESA) के प्रावधानों को खत्म कर देगा, अधिकारियों का कहना है कि SoUTA के नियमों को स्पष्ट किया जाना चाहिये।

कार्य (Functions):

  • यह मुख्य रूप से एक स्थानीय निकाय के रूप में कार्य करेगा जो एक विकास योजना या एक टाउन प्लानिंग योजना तैयार कर उसे क्रियान्वित करेगा, अतिक्रमणों को दूर करेगा तथा जल आपूर्ति, परिवहन, बिजली आपूर्ति, जल निकासी, अस्पतालों, चिकित्सा सेवाओं, स्कूलों, सार्वजनिक पार्कों, बाज़ारों, खरीदारी स्थलों और कचरे का निपटान जैसी नागरिक सुविधाएँ प्रदान करेगा।

शक्तियाँ (Powers):

  • भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे तथा पारदर्शिता के अधिकार के तहत अचल संपत्ति को प्राप्त करना।
  • इसका उल्लंघन करने वाले या अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करना।
  • पर्यटन विकास क्षेत्र की सीमाओं को परिभाषित करना।
  • अधिकृत व्यक्ति सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच किसी भी भूमि या भवन में निर्मित अपने अधिवास में कम-से-कम 24 घंटे का नोटिस देकर प्रवेश कर सकता है।
  • किसी भी कानूनी कार्यवाही या अभियोजन जो इस अधिनियम के प्रावधानों या इसके तहत किये गए किसी भी नियम या विनियम के अनुसरण में किया जा रहा है, से प्राधिकारी और उसके सदस्यों की रक्षा करता है।

सहायता (Assistance):

  • पुलिस किसी भी उपद्रव को रोकने या इस तरह की किसी भी गतिविधि, प्रक्रिया, कार्रवाई को रोकने के लिये प्राधिकरण की सहायता कर सकती है, जिससे इस क्षेत्र की "पर्यटन क्षमता" को नुकसान पहुँचाने की आशंका हो।
  • इस तरह के उपद्रव को हटाने या समाप्त करने में किया गया व्यय, ऐसे उपद्रव करने वाले व्यक्ति (यदि कोई हो) से भू-राजस्व की बकाया राशि के रूप में वसूल किया जाएगा।

दंड (Punishments):

  • प्राधिकरण द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों का पालन न करने वाले व्यक्तियों को एक माह का कारावास या 50,000 रुपए का जुर्माना या दोनों दंड दिया जाएगा। इस अपराध को "संज्ञेय और गैर-जमानती" भी माना जाएगा।

शूलपनेश्वर वन्यजीव अभयारण्य

  • इसे पहली बार वर्ष 1982 में संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था।
  • 150.87 वर्ग किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र को प्रारंभ में 'डमखल अभयारण्य’ कहा जाता था, जिसे विशेष तौर पर सुस्त भालू या स्लॉथ बीयर (Sloth Bear) के संरक्षण हेतु बनाया गया था।
  • वर्ष 1987 और वर्ष 1989 में इस अभ्यारण्य में और अधिक भूमि शामिल की गई तथा अभयारण्य क्षेत्र को 607.70 वर्ग किमी. तक बढ़ाया गया था। साथ ही इसका नाम बदलकर इसे ‘शूलपनेश्वर वन्यजीव अभयारण्य’ कर दिया गया।
  • वनस्पति: यह सागौन के वृक्ष, जलीय वनस्पति और पर्णपाती शुष्क वृक्षों का मिश्रित जंगल है। 
  • जीव-जगत: सुस्त भालू या स्लॉथ बीयर, तेंदुए, रीसस मकाक, चार सींग वाले मृग, भौंकने वाला हिरण (Barking Deer), पैंगोलिन, सरीसृप और अलेक्जेंड्रिन पैराकीट समेत कई अन्य पक्षी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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