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प्रीलिम्स फैक्ट्स : 30 अक्तूबर, 2018

  • 30 Oct 2018
  • 10 min read

गुजरात का पहला मेगा फूड पार्क

  • हाल ही में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा सूरत में गुजरात के पहले मेगा फूड पार्क का उद्धाटन किया गया।
  • यह मेगा फूड पार्क प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पाँच हजार लोगों को रोजगार देगा और इससे 25,000 हज़ार किसान लाभान्वित होंगे। गौरतलब है कि ऐसे ही दूसरे पार्क को मेहसाणा में खोलने की मंज़ूरी दी गई है।
  • सूरत ज़िले के मंगलौर तालुका में शाह और वसरावी गाँव में स्थित यह पार्क मेसर्स गुजरात एग्रो इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर मेगा फूड पार्क प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित किया गया है।
  • यह पार्क 15 एकड़ भूमि पर 117.87 करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया है।
  • इसमें पार्क में बनाए गए केंद्रीय प्रसंस्‍करण केंद्र में 3,500 मीट्रिक टन की भंडारण क्षमता से युक्‍त कई चैंबरों वाला कोल्‍ड स्‍टोर, 5,000 मीट्रिक टन क्षमता वाला वेयर हाउस, सब्जियों और फलों के गूदे निकालने के लिये बड़ी पाइपलाइन, क्‍यूसी प्रयोगशाला तथा खाद्य प्रसंस्‍करण से जुड़ी ऐसी ही कई अन्‍य सुविधाएँ भी उपलब्‍ध कराई गई हैं।
  • इसके अलावा भरूच, पाद्रा (वड़ोदरा), वलसाड़ और नवसारी में खेतों के पास ही प्राथमिक स्‍तर पर प्रसंस्‍करण और भंडारण के लिये 4 स्‍थानीय केंद्र भी बनाए गए हैं।
  • खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग मंत्रालय देश में खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग को प्रोत्‍साहित करने के लिये विशेष प्रयास कर रहा है ताकि इससे कृषि क्षेत्र को बढ़ावा मिले और यह किसानों की आय दोगुनी करने में अधिक योगदान कर सके।

मेगा फूड पार्क

  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के मूल्य संवर्द्धन और आपूर्ति श्रृंखला के प्रत्येक चरण में जल्‍दी नष्‍ट होने वाले खाद्य पदार्थों की बर्बादी को कम करने के उद्देश्य से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने देश में मेगा फूड पार्क योजना लागू की है।
  • मेगा फूड पार्क एक क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण के लिये आधुनिक आधारभूत सुविधाएँ प्रदान करता है।
  • केंद्रीय प्रसंस्करण केंद्र में सामान्य सुविधाएँ और सक्षम बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया जाता है तथा प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्रों (PPC) एवं संग्रह केंद्रों (CC) के रूप में कृषि के पास प्राथमिक प्रसंस्करण व भंडारण की सुविधा दी जाती है। मेगा फूड पार्क योजना के तहतभारत सरकार हर मेगा फूड पार्क के लिये 50 करोड़ रुपए की वित्तीय मदद देती है।

आपदा चेतावनी प्रणाली

  • हाल ही में ओडिशा सरकार ने पूर्व चेतावनी प्रसार प्रणाली की शुरुआत की है। जिसमें तटीय समुदायों और मछुआरों को आने वाले चक्रवात तथा सुनामी के बारे में सायरन टावरों के द्वारा चेतावनी दी जाएगी। भारत में इस तरह की यह पहली प्रणाली है।
  • भुवनेश्वर के राज्य आपातकालीन केंद्र में एक बटन दबाते ही तट पर स्थापित ये सायरन 122 टावरों से चेतावनी देना शुरू कर देंगे।
  • EWDS, केंद्र और राज्य सरकार का एक सहयोगी प्रयास है जिसे विश्व बैंक की सहायता से कार्यान्वित किया गया है।
  • छह तटीय ज़िलों- बालासोर, भद्रक, जगतसिंहपुर, केंद्रपड़ा, पुरी और गंजम को EWDS के तहत शामिल किया गया है।
  • यह राष्‍ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन योजना (National Cyclone Risk Mitigation Project) के तहत अंतिम-मील कनेक्टिविटी (last-mile connectivity) कार्यक्रम का हिस्सा है।

पूर्व चेतावनी प्रसार प्रणाली (Early Warning Dissemination System- EWDS) 

  • EWDS में डिजिटल मोबाइल रेडियो (Digital Mobile Radio-DMR), सैटेलाइट-आधारित मोबाइल डाटा वॉयस टर्मिनल (Satellite-Based Mobile Data Voice Terminals-SBMDVT), जन संदेश प्रणाली (Mass Messaging System-MMS) और यूनिवर्सल कम्युनिकेशन इंटरफेस (Universal Communication Interface-UCI) जैसी कुछ युक्तियाँ हैं जो विभिन्न संचार तकनीक के बीच अंतर-संचालन (inter-operability) को संभव बनाती हैं।
  • जन संदेश प्रणाली आपदा से प्रभावित किसी विशेष इलाके में सभी मोबाइल उपभोक्ताओं को SMS के माध्यम से चेतावनी संदेश भेजने की सुविधा प्रदान करती है।
  • सुनामी या चक्रवात या किसी अन्य प्राकृतिक आपदा के आने की आंशका होते ही भुवनेश्वर में स्थापित कंट्रोल रूम में बटन दबाने से पूरे राज्य में चेतावनी का प्रसार किया जा सकेगा।
  • इस पूर्व चेतावनी प्रणाली से लोगो को सुरक्षित स्थानों पर जाने में मदद मिलेगी।
  • आपदाओं के लिये एक स्वचालित तटीय चेतावनी प्रणाली ओडिशा के लोगों के लिये बहुत मददगार होगी क्योंकि यह राज्य प्राकृतिक आपदाओं के प्रति बहुत संवेदनशील है। अगर देश के सभी आपदा संभाव्य क्षेत्रों में ऐसी प्रणाली स्थापित की जा सके तो प्राकृतिक आपदाओं से जीवन और संपत्ति को होने वाले नुकसान में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है।

ट्रेन 18

  • हाल ही में बिना इंजन वाली ट्रेन, टी18 का अनावरण किया गया है। यह एक हाईटेक, ऊर्जा-कुशल, खुद से चलने वाली या बिना इंजन के चलने वाली ट्रेन है।
  • गौरतलब है कि कुछ सुरक्षा जाँचों के बाद ट्रेन18 को भारतीय रेलवे में शामिल कर लिया जाएगा।
  • 16 कोच वाली इस ट्रेन को चेन्नई के इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में महज़ 18 महीनों में ही विकसित किया गया है।
  • इसमें सभी डिब्बों में आपातकालीन टॉक-बैक यूनिट (जिसकी सहायता से यात्री आपातकाल की स्थिति में ट्रेन के क्रू से बात कर सकेंगे) स्थापित किये गए हैं। इसके साथ ही सीसीटीवी भी लगाए गए हैं ताकि सफर सुरक्षित हो सके।
  • सब-अर्बन ट्रेनों की तरह इस ट्रेन के दोनों छोरों पर भी मोटर कोच होंगे, यानी यह ट्रेन दोनों दिशाओं में ही चलने में सक्षम होगी। इस ट्रेन की अधिकतम स्पीड 160 किमी प्रतिघंटा के करीब होगी।
  • यह ट्रेन पूरी तरह से वातानुकूलित होगी तथा इसके सभी कोच एक-दूसरे से जुड़े होंगे। स्टेनलेस स्टील के ढाँचे वाली इस ट्रेन में वाई-फाई, एलईडी लाइट, पैसेंजर इनफॉर्मेशन सिस्टम और पूरे कोच में दोनों दिशाओं में एक बड़ी तथा एकलौती खिड़की होगी।
  • यह नई ट्रेन दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सुविधाओं से लैश होगी जिसमें वाई-फाई से लेकर जीपीएस आधारित यात्री सूचना प्रणाली, 'टच-फ्री' बायो-वैक्यूम शौचालय, एलईडी लाइटिंग, मोबाइल चार्जिंग पॉइंट और जलवायु नियंत्रण प्रणाली भी शामिल है जो मौसम के अनुसार तापमान को नियंत्रित करने की सुविधा प्रदान करेगी।

अमूर फाल्कन

  • अमूर फाल्कन, दुनिया में सबसे लंबी दूरी की यात्रा करने वाले पक्षियों ने सर्दियों के आगमन के साथ ही अपना प्रवास शुरू कर दिया है।
  • ये पक्षी दक्षिण-पूर्वी साइबेरिया और उत्तरी चीन में प्रजनन करते हैं तथा मंगोलिया एवं साइबेरिया में वापस लौटने से पहले लाखों की संख्या में भारत में व हिंद महासागर से होते हुए दक्षिण अफ्रीका में प्रवास करते हैं। इन पक्षियों का 22,000 किलोमीटर प्रवासी मार्ग एवियन प्रजातियों में सबसे लंबा है।
  • इन पक्षियों का नाम अमूर नदी से लिया गया है जो रूस और चीन के बीच की सीमा का निर्धारण करती है।

  • नगालैंड में दोयांग झील अमूर फाल्कन के वार्षिक प्रवासन के दौरान एक स्टॉपओवर के रूप में जाना जाता है।
  • ये पक्षी लुप्तप्राय नहीं हैं लेकिन फिर भी इन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 और प्रवासी प्रजातियों पर सम्मेलन के तहत संरक्षित किया गया है। भारत प्रवासी प्रजातियों पर सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
  • नगालैंड को 'फाल्कन कैपिटल ऑफ़ वर्ल्ड' नाम देते हुए पर्यटन विभाग एक फेस्टिवल आयोजित कर रहा है जो 2018 से वार्षिक तौर पर होगा।

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