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जैव विविधता और पर्यावरण

फार्मास्युटिकल प्रदूषण

  • 10 Dec 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

फार्मास्युटिकल प्रदूषण, अपशिष्ट जल, जैव संचय, मल्टी-ड्रग प्रतिरोध, मल्टीड्रग प्रतिरोध के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना 2017।

मेन्स के लिये:

फार्मास्युटिकल प्रदूषण, संबद्ध चिंताएंँ, संभावित समाधान और संबंधित पहल।

चर्चा में क्यों?

एक शोध पत्र के अनुसार, लगातार नज़रंदाज किये जाने वाले फार्मास्युटिकल प्रदूषण पर ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है जिसके तहत औषधि, स्वास्थ्य सेवा और पर्यावरण क्षेत्रों से समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता है।

विश्व की लगभग आधी या 43% नदियाँ सांद्रता में सक्रिय औषधि सामग्री से दूषित हैं जो स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकती हैं।

फार्मास्युटिकल प्रदूषण:

  • परिचय:
    • फार्मास्युटिकल संयंत्र अक्सर अपनी विनिर्माण प्रक्रिया में उपयोग किये जाने वाले सभी रासायनिक यौगिकों को फिल्टर करने में असमर्थ होते हैं और इस तरह, रसायन आसपास के ताज़े/स्वच्छ जल प्रणालियों में और अंततः महासागरों, झीलों, धाराओं और नदियों को प्रदूषित करते हैं।
    • औषधि निर्माताओं से अपशिष्ट जल को कभी-कभी खुले मैदानों और आस-पास के जल निकायों में भी छोड़ दिया जाता है, जिससे पर्यावरण, लैंडफिल या डंपिंग क्षेत्रों में औषधि अपशिष्ट या उनके उप-उत्पादों में वृद्धि होती है। यह सब मूल रूप से औषधि/फार्मास्युटिकल प्रदूषण के रूप में जाना जाता है।
  • प्रभाव:
    • मछली और जलीय जीवन पर प्रभाव:
      • कई अध्ययनों ने संकेत दिया है कि जन्म नियंत्रण की गोलियों और पोस्टमेनोपॉज़ल हार्मोन उपचार में पाए जाने वाले एस्ट्रोजन का नर मछली पर कुप्रभाव पड़ता है और महिला-से-पुरुष अनुपात प्रभावित हो सकता है।
    • सीवेज उपचार प्रक्रिया में व्यवधान:
      • सीवेज उपचार प्रणालियों में मौजूद एंटीबायोटिक्स सीवेज बैक्टीरिया की गतिविधियों को रोक सकते हैं और कार्बनिक पदार्थ अपघटन को गंभीरता से प्रभावित करते हैं।
    • पीने के जल पर प्रभाव:
      • इन फार्मास्यूटिकल्स में मौजूद रसायन, शरीर से उत्सर्जित होने के बाद जल को प्रदूषित करता हैं।
      • अधिकांश नगरपालिका सीवेज उपचार सुविधाएंँ इन औषधि यौगिकों को पीने के जल से नहीं हटा सकती हैं और लोग समान यौगिकों का उपभोग करते हैं।
      • इन यौगिकों के संपर्क में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएंँ हो सकती हैं।
    • पर्यावरण पर दीर्घकालिक प्रभाव:
      • कुछ औषधि यौगिक पर्यावरण और जल की आपूर्ति में लंबे समय तक बने रह सकते हैं।
      • ये जैवसंचय की प्रक्रिया में एक कोशिका में प्रवेश करते हैं और खाद्य शृंखलाओं को आगे बढ़ाते हैं, प्रक्रिया में अधिक केंद्रित हो जाते हैं। यह लंबे समय में जीवन और पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है।
  • समाधान:
    • औषधिओं के उचित निपटान पर सार्वजनिक शिक्षा में निवेश ड्रग टेक-बैक कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में किया जाना चाहिये।
    • अस्पतालों, नर्सिंग होम और अन्य स्वास्थ्य संस्थानों में बड़े पैमाने पर औषधि फ्लशिंग को सीमित करने के लिये कड़े नियम।
    • औषधि प्रदूषण के संभावित मानव प्रभावों का आकलन करने के लिये अतिरिक्त शोध की सख्त आवश्यकता है।
    • थोक खरीद को सीमित करने से यह सुनिश्चित होगा कि केवल आवश्यक राशि की आपूर्ति की जाए और जिससे कम प्रदूषण हो।
    • फ्लशिंग की तुलना में उचित कचरा समाधान का चुनाव करना चाहिये क्योंकि इससे उन्हें जलाया जाता है या लैंडफिल कर दिया जाता है।

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भारत में फार्मास्यूटिकल्स प्रदूषण की स्थिति:

  • विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक:
    • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा फार्मास्यूटिकल्स उत्पादक है, जिसमें लगभग 3000 औषधि कंपनियांँ और लगभग 10500 विनिर्माण इकाइयांँ शामिल हैं।
    • फार्मास्यूटिकल्स उत्पादन को भारत के विभिन्न हिस्सों में सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में से एक माना जाता है।
  • भारत, थोक औषधि की राजधानी:
    • 'भारत को थोक औषधि राजधानी' के रूप में जाना जाता है।
      • इसमें लगभग 800 से अधिक फार्मा/बायोटेक इकाइयांँ हैं।
    • सर्वेक्षण के अनुसार, स्थानीय लोगों का तर्क है कि जिन क्षेत्रों में उद्योग स्थित हैं, वहांँ भूजल अत्यधिक दूषित है।
  • मल्टीड्रग-प्रतिरोध संक्रमण:
    • यह अनुमान लगाया गया है कि मल्टीड्रग-प्रतिरोध संक्रमण के कारण भारत में वार्षिक लगभग 60000 नवजात शिशुओं की मृत्यु हो जाती है, जहाँ रोगाणुरोधी औषधिओं के साथ औषधि जल प्रदूषण इसके लिये उत्तरदायी है।

संबंधित सरकारी पहल:

  • एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना 2017: औद्योगिक कचरे में एंटीबायोटिक औषधिओं पर सीमा से संबंधित समस्या से निपटने के लिये प्रस्तावित किया गया था।
  • शून्य तरल निर्वहन नीति: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने शून्य तरल निर्वहन प्राप्त करने के लिये विभिन्न फार्मा उद्योगों को दिशानिर्देश पेश किये हैं।
    • हैदराबाद में 220 थोक औषधि निर्माताओं में से लगभग 86 के पास शून्य तरल निर्वहन सुविधाएंँ हैं, जिससे पता चला है कि वे लगभग सभी तरल अपशिष्ट को रिसायकल कर सकते हैं।
  • बहिःस्राव की निरंतर निगरानी: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने यह भी घोषणा की है कि उद्योगों को लगातार बहिःस्राव की निगरानी के लिये उपकरण स्थापित करने चाहिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन भारत में माइक्रोबियल रोगजनकों में मल्टीड्रग प्रतिरोध की घटना के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ लोगों की आनुवंशिक प्रवृत्ति
  2. बीमारियों को ठीक करने के लिये एंटीबायोटिक औषधिओं की गलत खुराक लेना
  3. पशुपालन में एंटीबायोटिक का प्रयोग
  4. कुछ लोगों में कई पुरानी बीमारियाँ

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (b)

  • मल्टीड्रग प्रतिरोध (AMR) एक सूक्ष्मजीव (जैसे बैक्टीरिया, वायरस और कुछ परजीवी) की एक रोगाणुरोधी (जैसे एंटीबायोटिक, एंटीवायरल और एंटीमाइलेरियल) को इसके खिलाफ काम करने से रोकने की क्षमता है। नतीजतन, मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण बना रहता है और दूसरों में फैल सकता है।
  • एक आनुवंशिक प्रवृत्ति (कभी-कभी आनुवंशिक संवेदनशीलता भी कहा जाता है) किसी व्यक्ति के आनुवंशिक मेकअप के आधार पर किसी विशेष बीमारी के विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। विशिष्ट आनुवंशिक विविधताओं से एक आनुवंशिक प्रवृत्ति का परिणाम होता है जो अक्सर माता-पिता से मिलता है। इसका मल्टीड्रग प्रतिरोध से कोई सीधा संबंध नहीं है। अतः 1 सही नहीं है।
  • AMR स्वाभाविक रूप से समय के साथ होता है। कई जगहों पर, लोगों और जानवरों में एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग किया जाता है, और अक्सर पेशेवर निरीक्षण के बिना दिया जाता है। दुरुपयोग के उदाहरणों में शामिल हैं जब उन्हें सर्दी और फ्लू जैसे वायरल संक्रमण वाले लोगों द्वारा लिया जाता है, और जब उन्हें जानवरों में ग्रोथ प्रमोटर के रूप में दिया जाता है या स्वस्थ जानवरों में बीमारियों को रोकने के लिये उपयोग किया जाता है। अतः 2 और 3 सही हैं।
  • एकाधिक पुरानी बीमारियाँ दो या दो से अधिक पुरानी बीमारियाँ हैं जो एक ही समय में एक व्यक्ति को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिये, या तो गठिया और उच्च रक्तचाप वाले व्यक्ति या हृदय रोग और अवसाद वाले व्यक्ति, दोनों को कई पुरानी बीमारियां हैं। इसलिये यह जरूरी नहीं है कि मल्टीपल क्रॉनिक डिजीज वाले व्यक्ति में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस होगा, क्योंकि क्रॉनिक डिज़ीज़ ऐसी हो सकती है, जिसमें एंटीबायोटिक्स देने की ज़रूरत न हो। अतः 4 सही नहीं है।
  • अतः विकल्प (B) सही उत्तर है।

प्रश्न: क्या डॉक्टर के निर्देश के बिना एंटीबायोटिक औषधिओं का अति प्रयोग और मुफ्त उपलब्धता भारत में औषधि प्रतिरोधी रोगों के उद्भव में योगदान कर सकते हैं? निगरानी एवं नियंत्रण के लिये उपलब्ध तंत्र क्या हैं? इसमें शामिल विभिन्न मुद्दों पर आलोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014)

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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