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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पेट्रोलियम उत्पादन में कटौती

  • 11 Apr 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

G-20 या ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (Group of Twenty), OPEC

मेन्स के लिये:

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव, वैश्विक संगठन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सऊदी अरब में आयोजित G-20 देशों की वर्चुअल बैठक (Virtual Meeting) में प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक देशों ने खनिज तेल की गिरती कीमतों को नियंत्रित करने के लिये आपसी सहमति से अपने दैनिक तेल उत्पादन में कटौती करने का फैसला किया है।

मुख्य बिंदु:    

  • 10 अप्रैल, 2020 को आयोजित G-20 देशों की वर्चुअल बैठक में विश्व के प्रमुख तेल उत्पादक देशों सऊदी अरब, रूस, अमेरिका आदि ने खनिज तेल की घटती कीमतों में स्थिरता लाने के लिये वैश्विक तेल आपूर्ति में कटौती करने पर सहमति जाहिर की है।
  • इस बैठक में पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (OPEC) के देशों के साथ ही समूह के अन्य अनौपचारिक सदस्यों (OPEC+) के बीच हुए समझौते के तहत कच्चे तेल की वर्तमान वैश्विक आपूर्ति में 10% की कटौती की जाएगी। 
  • साथ ही OPEC संगठन ने विश्व के अन्य देशों से भी अपने तेल उत्पादन में 5% की कटौती करने की मांग की है।
  • अमेरिका के ऊर्जा सचिव के अनुसार, वर्ष 2020 के अंत तक अमेरिका के तेल उत्पादन में 2-3 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती की जा सकती है।
  • इस समझौते के तहत सऊदी अरब और रूस मई और जून के बीच अपने पेट्रोलियम उत्पादन में 2.5 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती करेंगे तथा इराक अपने पेट्रोलियम उत्पादन में 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती करेगा।
  • सऊदी अरब और रूस ने इस बात पर सहमति ज़ाहिर की कि तेल के उत्पादन में इस कटौती का आधार अक्तूबर 2018 के 11 मिलियन बैरल प्रतिदिन को माना जाएगा, हालाँकि अप्रैल 2020 में सऊदी अरब का तेल उत्पादन बढ़कर 12.3 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुँच गया था।

G-20 समूह: 

  • G-20 या ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (Group of Twenty) अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1999 में की गई थी।
  • G-20 का उद्देश्य साझा आर्थिक, राजनीतिक और स्वास्थ्य चुनौतियों के निपटने के लिये वैश्विक नेताओं को एकजुट करना है।  
  • G-20 समूह में कुल 20 सदस्य (19 देश+ यूरोपीय संघ) हैं।
  • G-20 नेताओं के पहले शिखर सम्मेलन का आयोजन वर्ष 2008 में वाशिंगटन डी.सी. (अमेरिका) में किया गया था।   
  • G-20 सदस्य देश सामूहिक रूप से विश्व के आर्थिक उत्पादन का लगभग 80%, वैश्विक जनसंख्या का दो-तिहाई (2/3) और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के तीन-चौथाई (3/4) भाग का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
  • प्रतिवर्ष G-20 के सदस्यों में से किसी एक देश को अगले एक वर्ष के लिये समूह का अध्यक्ष चुना जाता है, वर्तमान में G-20 की अध्यक्षता सऊदी अरब (1 दिसंबर 2019 से 30 नवंबर 2020 तक) के पास है।    
  • G-20 देशों के 15 वें शिखर सम्मेलन का आयोजन  21-22 नवंबर 2020 तक सऊदी अरब की राजधानी ‘रियाद’ में किया जाएगा। 

तेल की कीमतों में गिरावट के कारण: 

  • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की मांग में कमी के दौरान प्रमुख उत्पादक देशों के बीच तेल उत्पादन में कटौती को लेकर कोई सहमति न बन पाने के कारण तेल बाज़ार में भारी गिरावट देखने को मिली है।   
  • COVID-19 की महामारी ने पेट्रोलियम बाज़ार की समस्याओं को और अधिक बढ़ा दिया है, COVID-19 के संक्रमण को रोकने के लिये विश्व के अधिकांश देशों में उत्पादन और दैनिक गतिविधियों के प्रतिबंधित होने से कच्चे तेल की मांग में अतिरिक्त गिरावट देखने को मिली है।
  • पेट्रोलियम उत्पादकों के लिये सार्वजनिक हवाई यातायात क्षेत्र एक बड़ा बाज़ार रहा है, परंतु COVID-19 के कारण वैश्विक स्तर पर घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के स्थगित होने से विमानन ईंधन की मांग में अत्यधिक गिरावट आई है।

भारत पर प्रभाव:

  • भारत विश्व के सबसे बड़े तेल आयातक देशों में से एक है, ऐसे में तेल कीमतों में गिरावट से विदेशी मुद्रा में बचत की जा सकेगी।  
  • वर्तमान में COVID-19 की चुनौती के बीच तेल की कीमतों में गिरावट से सरकार के वित्तीय घाटे को कम करने में सहायता मिलेगी।
  • हालाँकि लंबे समय तक तेल की कीमतों में गिरावट से तेल के निर्यात पर आधारित देशों की अर्थव्यवस्थाओं को क्षति होगी, जिसका प्रभाव इन देशों को होने वाले भारतीय निर्यात पर पड़ सकता है।
  • तेल उत्पादक देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट से इन देशों में रह रहे ‘अनिवासी भारतीयों’ (Non Resident Indian- NRI) के माध्यम से प्राप्त होने वाले प्रेषित धन (Remittance) में कमी के साथ बेरोज़गारी में वृद्धि की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।      

चुनौतियाँ:

  • COVID-19
    • वर्तमान में अन्य उद्योगों के साथ ही पेट्रोलियम उत्पादकों के लिये भी COVID-19 की महामारी एक बड़ी समस्या बनी हुई है, वैश्विक स्तर पर तेल की मांग में वृद्धि के बगैर कीमतों को स्थिर करना उत्पादकों के लिये एक बड़ी चुनौती होगी।
  • आपसी सहमति का अभाव : 
    • मैक्सिको ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वह अपने तेल उत्पादन में OPEC+ द्वारा प्रस्तावित मात्रा (4,00,000 बैरल प्रतिदिन) की एक-चौथाई (1/4) कटौती ही करेगा। हालाँकि मैक्सिको के राष्ट्रपति के अनुसार, अमेरिका ने मैक्सिको की सहायता करने के लिये अमेरिकी तेल उत्पादन में मैक्सिको के हिस्से की कटौती करने का प्रस्ताव किया है।
    • नार्वे और कनाडा (गैर OPEC+ देश) ने इस समझौते के लागू होने की स्थिति में अपने उत्पादन में कटौती करने के संकेत दिये है।
    • रूस के अनुसार, कनाडा अपने पेट्रोलियम उत्पादन में 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती कर सकता है परंतु कनाडा के ‘प्राकृतिक संसाधन मंत्री’ (Natural Resources Minister) के अनुसार, G-20 बैठक में मंत्रियों के बीच तेल कीमतों में स्थिरता लाने हेतु उत्पादन में कटौती पर सहमति बनी थी परंतु इसकी मात्रा पर कोई चर्चा नहीं हुई थी।

निष्कर्ष:  यद्यपि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के तात्कालिक रूप में भारत के लिये कई सकारात्मक परिणाम दिखाई देते हैं परंतु यदि समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो तेल निर्यातक देशों के साथ ही भारत के लिये भी यह एक बड़ी चुनौती बन सकती है। वर्तमान में पेट्रोलियम उद्योग वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण अंग है, ऐसे में वैश्विक अर्थव्यवस्था की सतत् वृद्धि के लिये कच्चे तेल की कीमतों का स्थिर होना बहुत ही आवश्यक है।  

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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