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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

स्थायी सिंधु आयोग की बैठक

  • 04 Mar 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

स्थायी सिंधु आयोग, सिंधु जल संधि, सिंधु और इसकी सहायक नदियाँ।

मेन्स के लिये:

सिंधु जल संधि और संबंधित मुद्दे, सिंधु जल संधि का इतिहास और भारत-पाकिस्तान संबंधों पर इसका प्रभाव, भारत-पाकिस्तान संबंध।

चर्चा में क्यों?

भारत और पाकिस्तान के बीच ‘स्थायी सिंधु आयोग’ (PIC) की 117वीं बैठक आयोजित की गई।

  • इससे पहले केंद्र सरकार ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) के सदस्यों के चयन के लिये नए मानदंड अपनाने का फैसला किया था।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ:

  • दोनों पक्षों ने जल विज्ञान और बाढ़ के आँकड़ों के आदान-प्रदान पर चर्चा की, जिसके दौरान भारतीय पक्ष ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उसकी सभी परियोजनाएँ सिंधु जल संधि के प्रावधानों का पूरी तरह से अनुपालन करती हैं।
  • ‘फाजिल्का नाले’ के मुद्दे पर भी चर्चा हुई और पाकिस्तान ने आश्वासन दिया कि सतलुज नदी में फाजिल्का नाले के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिये सभी आवश्यक कार्रवाई जारी रहेगी।
    • ‘फाजिल्का नाला’ उन 22 नालों और जलाशयों में से एक है, जहाँ मालवा ज़िले (पंजाब, भारत) का अनुपचारित पानी छोड़ा जाता है।
    • देशों की सीमा रेखा पर नाला बंद है, जिससे तालाबों में ठहराव आ जाता है और सीमावर्ती क्षेत्र में भूजल की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
  • पाकल दुल, किरू और लोअर कलनई जैसी परियोजनाओं के संबंध में तकनीकी चर्चा भी की गई।
    • पाकल दुल हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (1000 मेगावाट) केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी की एक सहायक नदी ‘मरुसुदर’ पर प्रस्तावित है।
    • जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले में स्थित चिनाब नदी पर किरू जलविद्युत परियोजना (624 मेगावाट) प्रस्तावित है।
    • लोअर कलनई परियोजना ‘जम्मू-कश्मीर’ के डोडा और किश्तवाड़ ज़िलों में एक पनबिजली परियोजना है।
  • भारतीय पक्ष ने स्पष्ट रूप से बताया कि एक ऊपरी तटवर्ती राज्य के रूप में भारत संधि के तहत अनिवार्य रूप से प्रतिवर्ष जलाशयों से पानी के निर्वहन और बाढ़ प्रवाह के बारे में जानकारी प्रदान करता रहा है।

सिंधु जल संधि का इतिहास क्या है?

  • सिंधु नदी बेसिन में छह नदियाँ हैं- सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज; जो कि तिब्बत से निकलती है तथा हिमालय पर्वतमाला से बहती हुई पाकिस्तान में प्रवेश करती है और अंततः अरब सागर में मिल जाती है।
  • वर्ष 1947 में भारत और पाकिस्तान के लिये भौगोलिक सीमाओं को चित्रित करने के अलावा विभाजन की रेखा ने सिंधु नदी प्रणाली को भी दो भागों में बाँट दिया था।
    • चूँकि दोनों पक्ष अपने सिंचाई बुनियादी ढाँचे को क्रियाशील रखने के लिये सिंधु नदी बेसिन के पानी पर निर्भर थे, इसलिये इस नदी के जल को समान रूप से विभाजित किया गया।
  • प्रारंभ में मई, 1948 के अंतर-प्रभुत्व समझौते को अपनाया गया था, जिसमें दोनों देशों ने एक सम्मेलन के लिये सहमती व्यक्ति की जिसके बाद फैसला किया कि भारत पाकिस्तान द्वारा किये गए वार्षिक भुगतान के बदले में पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति करेगा।
    • हालाँकि यह समझौता जल्द ही विघटित हो गया क्योंकि दोनों देश इसकी सामान्य व्याख्याओं पर सहमत नहीं हो सके।
  • वर्ष 1951 में इस जल-बँटवारे के विवाद की पृष्ठभूमि में दोनों देशों ने सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर अपनी-अपनी सिंचाई परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये विश्व बैंक में आवेदन किया व विश्व बैंक ने संघर्ष में मध्यस्थता की पेशकश की।
  • अंततः 1960 में विश्व बैंक द्वारा लगभग एक दशक की तथ्य-खोज, बातचीत, प्रस्तावों और उनमें संशोधन के बाद दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ तथा सिंधु जल संधि (IWT) पर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एवं पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा हस्ताक्षर किये गए।

IWT

प्रमुख प्रावधान:

  • साझा जल:
    • संधि ने निर्धारित किया कि सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों के जल को भारत और पाकिस्तान के बीच कैसे साझा किया जाएगा।
    • इसके तहत तीन पश्चिमी नदियों- सिंधु, चिनाब और झेलम को अप्रतिबंधित जल उपयोग के लिये पाकिस्तान को आवंटित किया, भारत द्वारा कुछ गैर-उपभोग्य, कृषि और घरेलू उपयोगों को छोड़कर अन्य तीन पूर्वी नदियों- रावी, ब्यास एवं सतलज को अप्रतिबंधित जल उपयोग के लिये भारत को आवंटित किया गया था।
      • इसका मतलब है कि जल का 80% हिस्सा या लगभग 135 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पाकिस्तान में चला गया, जबकि शेष 33 MAF या 20% जल भारत के उपयोग के लिये छोड़ दिया गया।
  • स्थायी सिंधु आयोग:
    • इसके लिये दोनों देशों को दोनों पक्षों के स्थायी आयुक्तों द्वारा एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की भी आवश्यकता थी।
  • नदियों पर अधिकार:
    • जबकि झेलम, चिनाब और सिंधु के पानी पर पाकिस्तान का अधिकार है, IWT के अनुलग्नक C में भारत को कुछ कृषि उपयोग की अनुमति है, जबकि अनुलग्नक D इसे 'रन ऑफ द रिवर' जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण करने की अनुमति देता है, जिसका अर्थ है कि पानी के भंडारण की आवश्यकता नहीं है।
  • डिज़ाइन संबंधी विनिर्देश:
    • यह कुछ डिज़ाइन विनिर्देश भी प्रदान करता है जिनका भारत को ऐसी परियोजनाओं को विकसित करते समय पालन करना होता है।
  • आपत्तियाँ उठाना:
    • यह संधि पाकिस्तान को भारत द्वारा बनाई जा रही ऐसी परियोजनाओं पर आपत्ति उठाने की भी अनुमति देती है, अगर वह उन्हें विनिर्देशों के अनुरूप नहीं पाता है।
    • भारत को परियोजना के डिज़ाइन या उसमें किये गए परिवर्तनों के बारे में पाकिस्तान के साथ जानकारी साझा करनी है, जिसे प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर आपत्तियों, यदि कोई हो, के साथ जवाब देना आवश्यक है।
    • इसके अलावा भारत को पश्चिमी नदियों पर न्यूनतम भंडारण स्तर रखने की अनुमति है, जिसका अर्थ है कि यह संरक्षण और बाढ़ भंडारण उद्देश्यों के लिये 3.75 एमएएफ पानी तक स्टोर कर सकता है।
  • विवाद समाधान तंत्र:
    • IWT तीन चरणों वाला विवाद समाधान तंत्र भी प्रदान करता है, जिसके तहत दोनों पक्षों के "प्रश्नों" का समाधान स्थायी आयोग में किया जा सकता है या इन्हें अंतर-सरकारी स्तर पर भी उठाया जा सकता है।
    • जल-बँटवारे को लेकर देशों के बीच अनसुलझे प्रश्नों या "मतभेदों", जैसे- तकनीकी मतभेद के मामले में कोई भी पक्ष निर्णय लेने के लिये तटस्थ विशेषज्ञ (NE) की नियुक्ति हेतु विश्व बैंक से संपर्क कर सकता है।
      • और अंतत: यदि कोई भी पक्ष पूर्वोत्तर के निर्णय से संतुष्ट नहीं है तो संधि मामलों की व्याख्या और सीमा "विवाद" से संबंधित मामला मध्यस्थता न्यायालय को संदर्भित किया जा सकता है।

भू-राजनीतिक संघर्षों के बारे में:

  • हाल के वर्षों में भारत और पाकिस्तान के बीच भू-राजनीतिक तनाव के दौरान सिंधु जल संधि को कई बार चर्चा में लाया गया है।
  • वर्ष 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी सैन्य शिविर पर हमले के बाद भारत ने कहा कि "रक्त और पानी एक साथ नहीं बह सकते (“Blood and Water cannot flow simultaneously)" जिसके तुरंत बाद भारतीय पक्ष द्वारा स्थायी सिंधु आयोग की वार्ता उस वर्ष के लिये निलंबित कर दी गई, जिसने एक बिंदु पर संधि से बाहर निकलने की धमकी भी दी थी। ।
  • वर्ष 2019 में जब पुलवामा में आत्मघाती हमला हुआ और जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवानों की मौत हो गई, भारत ने पहली बार सिंधु नदी प्रणाली से पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति बंद करने की धमकी दी थी।
  • बाद में यह स्पष्ट किया गया कि पाकिस्तान की आपूर्ति को प्रतिबंधित करना आईडब्ल्यूटी (IWT) का उल्लंघन होगा तथा केंद्र के शीर्ष अधिकारियों के विचार की आवश्यकता होगी।
    • IWT के पास कोई एकतरफा निकास प्रावधान नहीं है और इसे तब तक लागू रहना चाहिये जब तक कि दोनों देश एक और पारस्परिक रूप से सहमत समझौते की पुष्टि नहीं करते।

स्थायी सिंधु आयोग:

  • यह भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों का एक द्विपक्षीय आयोग है, जिसे सिंधु जल संधि (वर्ष 1960 ) के कार्यान्वयन एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु बनाया गया था।
  •  सिंधु जल संधि के अनुसार, आयोग वर्ष में कम-से-कम एक बार नियमित तौर पर भारत और पाकिस्तान में बैठक करेगा। 
  • आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं:
    • नदियों के जल से संबंधित दोनों देशों की सरकारों की किसी भी समस्या का अध्ययन करना और दोनों सरकारों को रिपोर्ट देना। 
    • जल बँटवारे को लेकर उत्पन्न विवादों का समाधान करना।
    • प्रत्येक पाँच वर्षों में एक बार नदियों का निरीक्षण करने हेतु सामान्य दौरा करना।
    • संधि के प्रावधानों के कार्यान्वयन हेतु आवश्यक कदम उठाना।

स्रोत: द हिंदू

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