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कृषि

आलू की प्रजाति को पेटेंट कराने संबंधी पेप्सिको की अपील रद्द

  • 12 Jul 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पौधों की किस्मों और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, FL 2027 आलू का प्रकार

मेन्स के लिये:

PPVFRA की भूमिका और कार्य, बौद्धिक संपदा संरक्षण को नियंत्रित करने वाले विनियम

चर्चा में क्यों?  

  • पौधों की किस्मों और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (Protection of Plant Varieties and Farmers’ Rights Authority- PPVFRA) ने पेप्सिको इंडिया द्वारा FL 2027 आलू की एक किस्म को बौद्धिक संपदा संरक्षण की अपील को रद्द कर दिया, हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने PPVFRA के इस फैसले को बरकरार रखने का फैसला लिया है। 

आलू की FL 2027 किस्म का मामला: 

  • परिचय:  
    • FL 2027 फ्रिटो-ले कृषि अनुसंधान में रॉबर्ट डब्ल्यू हूप्स द्वारा विकसित आलू की एक किस्म है। इसे विशेष रूप से पेप्सिको के लेज़ ब्रांड द्वारा चिप्स के उत्पादन के लिये तैयार किया गया है।
    • FL 2027 उच्च शुष्कता, कम सुगर और कम नमी सामग्री के कारण चिप्स बनाने के लिये आलू की एक आदर्श किस्म है।
      • इन विशेषताओं के कारण इसके प्रसंस्करण के दौरान निर्जलीकरण और ऊर्जा लागत कम होती है, साथ ही तले जाने पर इनके काला पड़ने का जोखिम कम रहता है।
  • मामला: 
    • PPVFRA ने पेप्सिको इंडिया होल्डिंग्स को 1 फरवरी, 2016 को "मौजूदा किस्म" के रूप में FL 2027 के लिये पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदान किया था।
      • इसमें स्पष्ट है कि वैधता अवधि के दौरान कंपनी की अनुमति के बिना कोई भी इसका व्यावसायिक उत्पादन, बिक्री, विपणन, वितरण, आयात या निर्यात नहीं कर सकता है।
        • यह अवधि पंजीकरण की तिथि से 6 वर्ष थी तथा 15 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती थी।
    • हालाँकि पेप्सिको (PepsiCo) ने वर्ष 2012 के अपने आवेदन में FL 2027 को "नई किस्म" के रूप में पंजीकृत करने की मांग की थी जिसे कुछ मानदंडों को पूरा करने में विफल रहने के कारण अस्वीकार कर दिया गया था।
  • नोट: 
    • पौधे की "नई किस्म" के लिये मानदंड:
      • एक "नई किस्म" को नवीनता के मानदंड के अनुरूप होना चाहिये- इससे प्रचारित या उत्पादित सामग्री पंजीकरण के लिये आवेदन करने की तिथि से एक वर्ष पहले भारत में नहीं बेची जानी चाहिये।
      • FL 2027 किस्म केवल विशिष्टता, एकरूपता तथा स्थिरता के मानदंडों को पूरा कर सकती है लेकिन नवीनता को नहीं। 
  • पंजीकरण निरस्तीकरण का कारण:
    • पेप्सिको ने इस किस्म के व्यावसायीकरण की पहली तिथि (17 दिसंबर, 2009) भी गलत बताई थी, जबकि चिली में वर्ष 2002 में ही इसका व्यावसायीकरण हो चुका था।
    • इसलिये PPVFRA ने दिसंबर 2021 में सुरक्षा रद्द कर दी तथा फरवरी 2022 में नवीनीकरण के लिये पेप्सिको के आवेदन को खारिज कर दिया। इसने यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत के नियम बीज किस्मों पर पेटेंट की अनुमति नहीं देते हैं।
      • पेप्सिको ने PPVFRA के निर्णय को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय: 
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने पेप्सिको के आवेदन को गलत ठहराते हुए बौद्धिक संपदा संरक्षण को रद्द करने की पुष्टि की जिसमें कहा गया कि कंपनी ने "नई किस्म" के रूप में FL 2027 के पंजीकरण के लिये गलत तरीके से आवेदन किया था तथा इसकी पहली व्यावसायीकरण तिथि के बारे में गलत जानकारी प्रदान की थी।

पौधों की किस्मों और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPVFRA): 

  • PPVFRA भारत में पौधा प्रजनकों और किसानों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये ज़िम्मेदार संगठन है।
  • यह पौधों की किस्मों और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPVFRA) अधिनियम, 2001 के तहत स्थापित एक प्राधिकरण है।
  • PPVFRA पौधों की किस्मों को बौद्धिक संपदा संरक्षण प्रदान करने और प्रजनकों तथा किसानों के अधिकारों को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह पौधों की विविधता के पंजीकरण के लिये आवेदनों की समीक्षा करता है, परीक्षण करता है और पात्र आवेदकों को पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदान करता है।
  • यदि आवश्यक समझा जाए तो प्राधिकरण के पास पौधों की किस्मों के पंजीकरण को रद्द करने की भी शक्ति है।

भारत में पेटेंट उल्लंघन के मामले में शामिल विदेशी कंपनियाँ: 

  • मोनसेंटो बनाम नुज़िवीडु सीड्स: इस मामले में रॉयल्टी का भुगतान किये बिना अपनी पेटेंट Bt कपास तकनीक का उपयोग करने के लिये एक भारतीय बीज कंपनी नुज़िवीडु सीड्स के खिलाफ मोनसेंटो द्वारा पेटेंट उल्लंघन का मुकदमा शामिल था।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2016 में मोनसेंटो के पक्ष में एक अंतरिम निषेधाज्ञा के तहत नुज़िवीडु सीड्स को उसके सीड्स के शुद्ध बिक्री मूल्य के प्रतिशत के आधार पर रॉयल्टी का भुगतान करने का निर्देश दिया गया। 
    • बाद में पार्टियों ने वर्ष 2017 में मध्यस्थता के माध्यम से विवाद को सुलझा लिया।
  • नोवार्टिस बनाम भारत संघ:  इस मामले में नोवार्टिस द्वारा अपनी कैंसर-रोधी दवा ग्लिवेक के लिये एक पेटेंट आवेदन शामिल था, जिसे भारतीय पेटेंट कार्यालय और बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह कोई नया आविष्कार नहीं था, बल्कि मौजूदा यौगिक का एक संशोधित रूप था। 
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 में अस्वीकृति को बरकरार रखते हुए निर्णय दिया कि दवा नवीनता के मानदंडों को पूरा नहीं करती है।
  • एरिक्सन बनाम माइक्रोमैक्स: इस मामले में लाइसेंस प्राप्त किये बिना 2G, 3G और 4G प्रौद्योगिकियों से संबंधित अपने मानक आवश्यक पेटेंट (SEP) का उपयोग करने के लिये भारतीय मोबाइल फोन निर्माता माइक्रोमैक्स के खिलाफ एरिक्सन द्वारा पेटेंट उल्लंघन का मुकदमा शामिल था।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 में एरिक्सन के पक्ष में एक अंतरिम निषेधाज्ञा जारी की जिसमें माइक्रोमैक्स को अपने उपकरणों के शुद्ध बिक्री मूल्य के प्रतिशत के आधार पर रॉयल्टी का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।
    • बाद में दोनों पक्षों ने वर्ष 2014 में मध्यस्थता के माध्यम से विवाद को सुलझा लिया।

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस

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