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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

लक्षद्वीप में समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण संयंत्र

  • 09 Aug 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान, समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण संयंत्र, डीप सी माइनिंग, डीप ओशन मिशन, डीएनए बैंक।

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से निपटने में महासागरीय तापीय ऊर्जा के उपयोग का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के तहत स्वायत्त राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान, लक्षद्वीप के कवरत्ती में 65 किलोवाट (kW) की क्षमता वाला एक समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण संयंत्र स्थापित किया जा रहा है।

  • यह संयंत्र एक लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता के साथ कम तापमान वाले तापीय विलवणीकरण संयंत्र को बिजली की आपूर्ति करेगा, जो अनुपयोगी समुद्री जल को पीने योग्य जल में परिवर्तित करेगा।
  • यह दुनिया में अपनी तरह का पहला संयंत्र है क्योंकि यह स्वदेशी तकनीक, हरित ऊर्जा और पर्यावरण के अनुकूल प्रक्रियाओं का उपयोग करेगा।

समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण संयंत्र:

  • परिचय:
    • समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण (OTEC) समुद्र की सतह के जल और गहरे समुद्र के जल के बीच विद्यमान तापांतर का उपयोग कर ऊर्जा उत्पादन करने की एक प्रक्रिया है।
      • महासागर विशाल ऊष्मा भंडार हैं क्योंकि ये पृथ्वी की सतह का लगभग 70% भाग कवर करते हैं।
    • शोधकर्त्ता दो प्रकार की OTEC प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं:
      • बंद चक्र विधि: जहाँ एक तरल पदार्थ (अमोनिया) को वाष्पीकरण के लिये हीट एक्सचेंजर के माध्यम से पंप किया जाता है और उससे उत्पन्न वाष्प-शक्ति से टरबाइन चलती है।
        • समुद्र की गहराई में पाए जाने वाले ठंडे जल द्वारा वाष्प को वापस द्रव (संघनन) में बदल दिया जाता है, जहाँ यह हीट एक्सचेंजर में वापस आ जाता है।
      • खुला चक्र विधि जहाँ गर्म सतह के जल पर एक निर्वात कक्ष में दबाव डाला जाता है और उसे वाष्प में परिवर्तित किया जाता है जो टरबाइन को चलाता है, पुनः गहराई से ठंडे समुद्री जल का उपयोग करके भाप को संघनित किया जाता है।
  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
    • भारत ने वर्ष 1980 में तमिलनाडु तट पर एक OTEC संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई थी। हलाँकि विदेशी विक्रेता द्वारा संचालन बंद करने के साथ इसे रोकना पड़ा।
  • समुद्री तापीय ऊर्जा रूपांतरण के क्षेत्र में भारत की क्षमता:
    • चूँकि भारत भौगोलिक रूप से दक्षिणी तट जिसकी लंबाई लगभग 2000 किलोमीटर है, समुद्री तापीय ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये अच्छी अवस्थिति में है, जहाँ पूरे वर्ष 20 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान अंतर पाया जाता है।
    • सकल बिजली के 40% ऊर्जा क्षति को शामिल करते हुए भारत भर में कुल OTEC क्षमता 180,000 मेगावाट होने का अनुमान है।

OTEC संयंत्र की कार्यप्रणाली:

  • परिचय:
    • जैसे सूर्य की ऊर्जा समुद्र के सतही जल को गर्म करती है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सतही जल गहरे जल की तुलना में अधिक गर्म हो सकता है।
    • इस तापमान अंतर का उपयोग बिजली के उत्पादन और समुद्र के जल को विलवणीकृत करने के लिये किया जा सकता है।
      • OTEC प्रणाली बिजली उत्पादन के लिये टर्बाइन को बिजली देने हेतु तापमान अंतर (कम-से-कम 77 डिग्री फारेनहाइट) का उपयोग करती है
      • जब गर्म जल का प्रवाह OTEC गैस चेंबर में होता है तब गैस द्वारा समुद्री जल की ऊष्मा का अवशोषण किये जाने के कारण गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है, इस गतिज ऊर्जा के कारण टर्बाइन चलता है।
      • फिर वाष्पीकृत द्रव को कंडेनसर में वापस तरल में बदल दिया जाता है जिसे ठंडे समुद्र के जल से ठंडा करके समुद्र में गहराई से पंप किया जाता है।
      • OTEC प्रणाली में समुद्री जल को तरल पदार्थ के रूप में उपयोग किया जाता है और विलवणीकृत जल का उत्पादन करने के लिये संघनित जल का उपयोग कर सकते हैं।
  • महत्त्व:
    • OTEC के दो सबसे बड़े लाभ हैं- यह स्वच्छ पर्यावरण के अनुकूल अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करती है और सौर संयंत्रों के विपरीत जो रात में काम नहीं कर सकते हैं एवं पवन टर्बाइन जो केवल वायु में काम करते हैं, जबकि OTEC संयंत्र हर समय ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है।

सरकार की संबंधित हालिया पहलें:

  • डीप सी माइनिंग (Deep Sea Mining):
  • मौसम पूर्वानुमान:
    • मंत्रालय समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण जलवायु जोखिम मूल्यांकन के लिये समुद्री जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाएँ शुरू करने पर भी काम कर रहा है जैसे चक्रवात की तीव्रता और आवृत्ति, तूफानी लहरें तथा तीव्र पवन, जैव-भू-रसायन, भारत के तटीय जल में एल्गी ब्लूम को रोकना।
  • डीप ओशन मिशन:
    • MoES डीप ओशन मिशन के तहत 6,000 मीटर तक जल की गहराई के लिये रेटेड प्रोटोटाइप क्रू सबमर्सिबल को डिज़ाइन और विकसित करने का प्रयास कर रहा है।
    • इसमें जल के नीचे के वाहनों और जल के भीतर रोबोटिक्स के लिये प्रौद्योगिकियाँ शामिल होंगी।
  • डीएनए बैंक:
    • दूरस्थ संचालित वाहन का उपयोग करके व्यवस्थित नमूने के माध्यम से उत्तरी हिंद महासागर के बेंटिक जीवों का पता लगाने, नमूने लेने और डीएनए भंडारण में सुधार करने के प्रयास किये जा रहे हैं।

राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत NIOT की स्थापना नवंबर 1993 में तत्कालीन महासागर विकास विभाग (Department of Ocean Development) द्वारा एक स्वायत्त निकाय के रूप में की गई थी।
  • इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone-EEZ), जो भारत के भूमि क्षेत्र का लगभग दो-तिहाई हिस्सा है, के निर्जीव एवं सजीव संसाधन, के उपयोग से संबंधित विभिन्न प्रौद्योगिकी समस्याओं को सुलझाने के लिये विश्वसनीय देशी तकनीक विकसित करना है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न.  निम्न तापमान तापीय विलवणीकरण सिद्धांत के आधार पर प्रतििन एक लाख लीटर मीठे पानी का उत्पादन करने वाला भारत में पहला विलवणीकरण संयंत्र कहाँ स्थापित किया गया था? (2008)

(A) कवरत्ती
(B) पोर्ट ब्लेयर
(C) मैंगलोर
(D) वलसाड

उत्तर: A

व्याख्या:

  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT), चेन्नई ने कवरत्ती, मिनिकॉय और अगत्ती की स्थानीय आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ती में दुनिया का पहला निम्न तापमान तापीय विलवणीकरण (LTTD) संयंत्र विकसित किया है।
  • रिवर्स ऑस्मोसिस एक झिल्ली प्रक्रिया है तथा विश्व स्तर पर स्वीकृत तकनीक है जो खारे पानी के विलवणीकरण के लिये उपयुक्त है, यह LTTD तकनीक से काफी अलग है।
  • LTTD एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत समुद्र के गर्म पानी को कम दबाव पर वाष्पित किया जाता है और वाष्प को ठंडे गहरे समुद्र के पानी से संघनित किया जाता है।
  • इस खर्च को कम करने के लिये राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (National Institute of Ocean Technology-NIOT) ने डिसेलिनेशन प्रक्रिया के लिये कम तापमान वाली थर्मल विलवणीकरण (Low Temperature Thermal Desalination-LTTD) तकनीक का विकास किया है। इस प्रक्रिया के तहत दो अलग-अलग जल स्रोतों के बीच तापमान के उतार-चढाव से पहले गर्म पानी को कम दाब पर वाष्पीकृत किया जाता है तथा फिर निकले हुए भाप को ठंडे पानी से द्रवीकृत किया जाता है ताकि मीठा पानी प्राप्त किया जा सके। अतः विकल्प (A) सही उत्तर है।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत Earth System Science Organization-ESSO ने देश में कुछ LTTD संयंत्रों की स्थापना की है, जो कवरत्ती, मिनीकॉय, अगत्ती, लक्षद्वीप में स्थापित हैं। इनकी प्रौद्योगिकी पूरी तरह से घरेलू और पर्यावरण के अनुकूल है। प्रत्येक LTTD संयंत्र की क्षमता प्रतिदिन एक लाख लीटर समुद्री जल शुद्ध करने की है। इस तकनीक द्वारा खारे पानी से एक लीटर मीठा पानी बनाने में 19 पैसे का खर्च आता है।

स्रोत : डाउन टू अर्थ

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