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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन की अंतर्राष्ट्रीय विकास परियोजनाएँ

  • 26 Nov 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

चीन-पाक आर्थिक गलियारा, पेरिस क्लब, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स के लिये:

अमेरिका द्वारा चीन की विकास परियोजनाओं पर लगाए गए प्रश्नचिह्न

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका के एक शीर्ष राजनयिक द्वारा चीन की अंतर्राष्ट्रीय विकास परियोजनाओं पर सवाल उठाए गए हैं।

मुख्य बिंदु:

  • अमेरिकी राजनयिक ने चीन की अंतर्राष्ट्रीय विकास परियोजनाओं तथा ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (Belt and Road Initiative- BRI) के तहत ऋण देने की प्रथाओं की कड़ी आलोचना की है।
  • अमेरिकी राजनयिक ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (China Pakistan Economic Corridor- CPEC) की व्यावसायिक व्यवहार्यता (commercial Viability) पर भी सवाल उठाया है।

आलोचना के प्रमुख बिंदु:

  • अमेरिकी राजनयिक ने कहा कि चीन अमेरिकी नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय नियमों और मानदंडों से संबंधित प्रणाली के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक है।
  • अमेरिकी राजनयिक के अनुसार, जब ‘देंग शियाओपिंग’ (Deng Xiaoping) ने वर्ष 1978 में चीन में ‘ओपन डोर पॉलिसी’ (Open Door Policy) की घोषणा की थी तब यूरोप और जापान की कंपनियों ने चीन में निवेश किया जिससे चीन को लाभ हुआ पर चीन ने यह नीति पाकिस्तान में नहीं अपनाई तथा चीन द्वारा पाकिस्तान में किया गया निवेश केवल चीन के लिये ही लाभप्रद रहा।
  • चीन की CPEC परियोजना पाकिस्तान के युवाओं और वहाँ की कंपनियों को वह अवसर प्रदान नहीं करती है जो अवसर दशकों पहले चीन को विभिन्न देशों द्वारा चीन में निवेश करने के कारण प्राप्त हुए थे और यही कारण है कि चीन एवं पाकिस्तान के बीच एकतरफा व्यापारिक संबंध हैं।
  • अमेरिकी राजनयिक ने CPEC की आलोचना ऋण, लागत, पारदर्शिता में कमी और नौकरियाँ प्रदान न करने के संबंध में की।
  • हालाँकि अमेरिकी राजनयिक ने चीन की बुनियादी ढाँचे संबंधी परियोजनाओं तथा ऋण प्रदान करने की प्रथाओं की आलोचना की परंतु चीन के लोगों तथा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए चीनी और अमेरिकी नागरिकों के बीच मित्रता को परंपरागत बताया।
  • अमेरिकी राजनयिक ने BRI परियोजना के तहत चीन की ऋण प्रदान करने की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि चीन आमतौर पर विभिन्न देशों को ऋण प्रदान करता है पर ‘पेरिस क्लब’ (Paris Club) का सदस्य नहीं है।

पेरिस क्लब

(Paris Club):

  • पेरिस क्लब की स्थापना वर्ष 1956 में विकासशील और उभरते (Emerging) देशों की ऋण समस्याओं के समाधान के लिये की गई थी।
  • इसकी स्थापना के समय विश्व शीत युद्ध, अंतरराष्ट्रीय पूंजी प्रवाह की जटिलता, वैश्विक स्तर पर विनिमय दर के मानकों का अभाव और अफ्रीका के कुछ देशों द्वारा औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता की प्राप्ति जैसी परिस्थितियाँ विद्यमान थीं।
  • अर्जेंटीना ने एक बड़ी ऋण धोखाधड़ी के लिये वैश्विक समुदाय से सहायता की अपील की जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1956 में फ्राँस द्वारा पेरिस में एक सम्मेलन आयोजित किया गया जिसे पेरिस क्लब कहा गया।
  • इसका सचिवालय पेरिस में स्थित है।
  • चीन विश्व स्तर पर सबसे बड़ा ऋणदाता होने के बावजूद अपने समग्र ऋण की जानकारी नहीं देता है अतः न तो पेरिस क्लब, न IMF और न ही क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ (Credit Rating Agencies) इन वित्तीय लेन-देनों की निगरानी कर पाती हैं।
  • चीन से ऋण लेने वाले देशों द्वारा इतने बढ़े ऋण चुकाने में विफल होने पर ऋण प्राप्तकर्त्ता देशों की विकास परियोजनाएँ बाधित होती हैं तथा उन देशों की संप्रभुता में कमी आती है।
  • श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह तथा मालदीव में रनवे का निर्माण चीन की संदिग्ध वाणिज्यिक व्यवहार्यता वाली परियोजनाओं के वित्तपोषण के उदाहरण हैं।
  • 2017 में श्रीलंका ने बकाया ऋण नहीं चुका पाने के कारण चीन को हंबनटोटा बंदरगाह का परिचालन पट्टा 99 साल के लिये सौंप दिया।
  • अमेरिकी राजनयिक ने ‘क्वाड’ (Quadrilateral Strategic Dialogue- QUAD) की भूमिका स्पष्ट करते हुए कहा कि इस समूह में शामिल ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका और भारत बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये निवेश की तलाश कर रहे देशों को यथार्थवादी विकल्प प्रदान कर सकते हैं।
  • QUAD देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक सितंबर के अंत में संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के दौरान न्यूयॉर्क में हुई थी।

स्रोत- द हिंदू

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