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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का इस्पात क्षेत्र

  • 10 Nov 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का इस्पात क्षेत्र, ISA इस्पात कॉन्क्लेव 2023, स्टील शेपिंग द सस्टेनेबल फ्यूचर, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, लौह

मेन्स के लिये:

भारत का इस्पात क्षेत्र, संभावनाएं और चुनौतियाँ, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधन जुटाना, वृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'ISA इस्पात कॉन्क्लेव 2023' का चौथा संस्करण आयोजित किया गया था, यह भारत के प्रमुख बुनियादी ढाँचा इनपुट का उत्पादन वर्ष 2030 तक दोगुना कर 300 मिलियन टन प्रति वर्ष करने पर केंद्रित था, इसमें इस्पात कंपनियों को अपनी क्षमता बढ़ाने के लिये प्रेरित किया गया।

  • इस कार्यक्रम में भारत की वृद्धि और विकास में इस्पात उद्योग की बहुमुखी भूमिका को रेखांकित करते हुए 'स्टील शेपिंग द सस्टेनेबल फ्यूचर' विषय पर चर्चा की गई।

भारत में इस्पात क्षेत्र की स्थिति क्या है?

  • वर्तमान परिदृश्य:
    • वित्त वर्ष 2023 में 125.32 मिलियन टन (MT) कच्चे इस्पात का उत्पादन और 121.29 मीट्रिक टन उपयोग के लिये तैयार इस्पात उत्पादन के साथ भारत कच्चे इस्पात के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
    • भारत में इस्पात उद्योग में पिछले दशक में पर्याप्त वृद्धि हुई है, वर्ष 2008 के बाद से इसके उत्पादन में 75% की वृद्धि हुई है।
    • वित्त वर्ष 2023 में भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत 86.7 किलोग्राम थी।
    • लौह अयस्क जैसे कच्चे माल की उपलब्धता और लागत प्रभावी श्रमबल की भारत के इस्पात उद्योग में अहम भूमिका रही है।
    • वर्ष 2017 में शुरू की गई राष्ट्रीय इस्पात नीति के अनुसार, भारत का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक कच्चे इस्पात की क्षमता को 300 मिलियन टन तथा उत्पादन क्षमता को 255 मीट्रिक टन एवं प्रति व्यक्ति तैयार मज़बूत इस्पात की खपत को 158 किलोग्राम तक पहुँचाना है।
  • महत्त्व:
    • इस्पात विश्व भर में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली सामग्रियों में से एक है। लौह और इस्पात उद्योग सर्वाधिक मुनाफे का उद्योग है।
      • इस्पात उद्योग की निर्माण कार्य, बुनियादी ढाँचे, ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग तथा रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अहम भूमिका है।
    • भारतीय अर्थव्यवस्था में इस्पात सबसे प्रमुख क्षेत्रों में से एक है (वित्त वर्ष 21-22 में देश की GDP में 2% भागीदारी)।
  • इस्पात क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ:
    • आधुनिक इस्पात संयंत्र स्थापित करने में बाधाएँ:
      • आधुनिक इस्पात निर्माण संयंत्रों की स्थापना के लिये अत्यधिक निवेश एक बड़ी बाधा है।
        • 1 टन क्षमता वाले संयंत्र की स्थापना में लगभग 7000.00 करोड़ रुपए की लागत विभिन्न भारतीय संस्थाओं के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
      • अन्य देशों की तुलना में भारत में महँगे वित्तीयन एवं ऋण वित्तपोषण पर निर्भरता के कारण उत्पाद की लागत में वृद्धि होती है, जिससे वैश्विक स्तर पर अंततः तैयार इस्पात उत्पाद को लेकर प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है।
    • चक्रीय मांग और मानसून संबंधी चुनौतियाँ:
      • भारत में इस्पात की चक्रीय मांग के परिणामस्वरूप इस्पात कंपनियों को वित्तीय कठिनाइयाँ का सामना करना पड़ता है, मानसून जैसे तत्त्वों के कारण निर्माण कार्य की गति प्रभावित होती है।
      • कम मांग की अवधि के दौरान इस्पात संयंत्रों की आय व लाभ न्यूनतम हो जाते हैं, जिससे वित्तीय दबाव बढ़ता है, कई मामलों में विनिर्माण कार्य को बंद और स्थगित भी करना पड़ता है।
    • प्रति व्यक्ति कम खपत:
      • विश्व के औसत 233 किलोग्राम की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत 86.7 किलोग्राम है, यह आर्थिक असमानताओं को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
      • प्रति व्यक्ति कम आय और खपत वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिये बड़े पैमाने पर इस्पात संयंत्र की स्थापना करना कम लाभदायक होता है।
      • प्रति व्यक्ति आय काफी अधिक होने के कारण चीन में इस्पात की अधिक मांग वहाँ की अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता को दर्शाती है।
    • प्रौद्योगिकी और अनुसंधान में कम निवेश:
      • भारत ऐतिहासिक रूप से इस्पात क्षेत्र के लिये प्रौद्योगिकी, अनुसंधान और विकास में निवेश करने में पीछे रहा है।
      • इससे अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रौद्योगिकी पर निर्भरता बढ़ती है, जिससे अतिरिक्त लागत में वृद्धि होती है। पुरानी तथा प्रदूषणकारी प्रौद्योगिकियाँ इस क्षेत्र को कम आकर्षक बनाती हैं।
    • निर्माण कार्यों में इस्पात का कम उपयोग:
      • भारत में इस्पात के उपयोग के बजाय पारंपरिक कंक्रीट-आधारित निर्माण विधियों का पालन, इस्पात उद्योग के विकास में बाधक है।
      • पश्चिमी देशों, जहाँ निर्माणी कार्य में दक्षता, मज़बूती और गति प्रदान करने के लिये इस्पात का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है, के विपरीत भारत में अभी भी अपनी निर्माण प्रथाओं में इस्पात का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जाता है।
    • पर्यावरणीय चिंताएँ: 
      • कार्बन डाइऑक्साइड के उत्पादन में इस्पात उद्योग तीन सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। नतीजतन, दुनिया भर में स्टील व्यापारियों को पर्यावरण तथा आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये डीकार्बनाइज़ेशन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • यूरोपीय संघ के CBAM का प्रभाव: 
      • यूरोपीय संघ 1 जनवरी 2026 से इस्पात, एल्यूमीनियम, सीमेंट, उर्वरक, हाइड्रोजन और विद्युत की प्रत्येक खेप पर कार्बन टैक्स (कार्बन सीमा समायोजन तंत्र) एकत्र करना शुरू कर देगा। यह भारत द्वारा यूरोपीय संघ को लौह, इस्पात तथा एल्युमीनियम उत्पादों जैसे धातुओं के निर्यात को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा, क्योंकि इन्हें इन उत्पादों को यूरोपीय संघ के CBAM तंत्र के तहत अतिरिक्त जाँच प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ेगा।
      • CBAM "फिट फॉर 55 इन 2030 पैकेज" का हिस्सा है, यह यूरोपीय संघ की एक योजना है जिसका उद्देश्य यूरोपीय जलवायु कानून के अनुरूप वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को लगभग 55% तक कम करना है।

इस्पात उद्योग के लिये सरकारी पहलें:

आगे  की राह

  • पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और सतत् उत्पादन प्रथाओं को प्रोत्साहित करने के लिये हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश करना तथा उन्हें अपनाना।
    • ग्रीन स्टील/हरित इस्पात के उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और इसे पारंपरिक, कार्बन-सघन कोयला-आधारित संयंत्र निर्माण प्रक्रिया के लिये विद्युत, हाइड्रोजन तथा कोयला गैसीकरण जैसे कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों को प्रतिस्थापित करके प्राप्त किया जा सकता है।
  • इस्पात उत्पादन में कार्बन दक्षता बढ़ाने के उपायों को लागू करने से CBAM के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है। इस्पात उत्पादों के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने हेतु स्वच्छ तथा अधिक सतत् प्रौद्योगिकियों को अपनाना व उन्हें बढ़ावा देना बेहद प्रभावी कदम हो सकता है।
  • उचित और न्यायसंगत CBAM नियमों को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं नीति निर्माताओं के साथ संवाद स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है। अन्य उद्योगों तथा देशों के साथ सहयोगात्मक प्रयासों से ऐसे समाधान विकसित किये जा सकते है जो भारतीय इस्पात क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से कुछ महत्त्वपूर्ण प्रदूषक हैं, भारत में इस्पात उद्योग द्वारा मुक्त किये जाते हैं? (2014)

  1. सल्फर के आक्साइड
  2.  नाइट्रोजन के आक्साइड
  3.  कार्बन मोनोआक्साइड
  4.  कार्बन डाइऑक्साइड

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 3 और 4
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • इस्पात उद्योग प्रदूषण उत्पन्न करता है क्योंकि यह कोयला और लौह अयस्क का उपयोग करता है जिनके दहन से विभिन्न पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) यौगिक तथा ऑक्साइड हवा में उत्सर्जित होते हैं।
  • स्टील भट्ठी में लौह अयस्क के साथ कोक प्रतिक्रिया करता है, जिससे लौह का निर्माण होता है और प्रमुख पर्यावरण प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं
  • इस्पात उत्पादक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषक हैं:
    • कार्बन मोनोऑक्साइड (CO); अतः 3 सही है।
    • कार्बन डाइऑक्साइड (CO2); अत 4 सही है।
    • सल्फर के ऑक्साइड (SOx); अत: 1 सही है।
    • नाइट्रोजन के आक्साइड (NOx); अत: 2 सही है।
    • PM 2.5;
    • अपशिष्ट जल;
    • खतरनाक अपशिष्ट;
    • ठोस अपशिष्ट।
  • हालांँकि एयर फिल्टर, वॉटर फिल्टर और अन्य प्रकार से पानी की बचत, बिजली की बचत तथा बंद कंटेनर के रूप तकनीकी हस्तक्षेप उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।
  • अतः विकल्प (D) सही है।

मेन्स:

प्रश्न. वर्तमान में लौह एवं इस्पात उद्योगों की कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थिति का उदाहरणों सहित कारण बताइये। (2020)

प्रश्न. विश्व में लौह एवं इस्पात उद्योग के स्थानिक प्रतिरूप में परिवर्तन का विवरण प्रस्तुत कीजिये। (2014)

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