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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नाविकों पर भारत-ईरान समझौता

  • 23 Aug 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नाविकों पर भारत-ईरान समझौता, नाविकों के लिये प्रशिक्षण, प्रमाणन और निगरानी के मानकों पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (1978), अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन, तेहरान घोषणा, ईरान का महत्त्व, कैस्पियन सागर

मेन्स के लिये:

भारत-ईरान संबंधों का महत्त्व।

चर्चा में क्यों

भारत और ईरान ने नाविकों (1978) के लिये प्रशिक्षण, प्रमाणन और निगरानी मानकों (STCW) पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय के प्रावधानों के अनुसार दोनों देशों के नाविकों की आवाजाही को सुगम बनाने के लिये एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किया है।

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नाविकों के लिये STCW पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन

  • यह समुद्र में जाने वाले व्यापारी जहाज़ों पर स्वामी, अधिकारियों और निगरानी कर्मियों के लिये योग्यता मानक निर्धारित करता है।
  • STCW को वर्ष 1978 में लंदन में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) में एक अभिसमय द्वारा अपनाया गया था और यह वर्ष 1984 में लागू हुआ था। वर्ष 1995 मेंं अभिसमय में व्यापक स्तर पर संशोधन किया गया था।
  • वर्ष 1978 का STCW अभिसमय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाविकों के लिये प्रशिक्षण, प्रमाणन और निगरानी पर बुनियादी आवश्यकताओं को स्थापित करने वाला पहला था।
  • यह नाविकों के लिये प्रशिक्षण, प्रमाणन और निगरानी से संबंधित न्यूनतम मानकों को निर्धारित करता है जिन्हें पूरा करने या उससे अधिक करने के लिये देश बाध्य हैं।
  • अभिसमय की एक विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह गैर-पार्टी राज्यों के जहाज़ों पर लागू होता है, जब वे उन राज्यों के बंदरगाहों पर जाते हैं जोअभिसमय के पक्षकार हैं।

भारत-ईरान संबंध

  • भारत एवं ईरान फारसी साम्राज्य और भारतीय साम्राज्यों के युग से ही घनिष्ठ सभ्यतागत संबंध रखते हैं।
  • भारत के पड़ोस में ईरान एक महत्त्वपूर्ण देश है। वस्तुतः वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता तथा विभाजन से पहले तक दोनों देश सीमा भी साझा करते थे।
  • प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ईरान यात्रा के दौरान हस्ताक्षरित ‘तेहरान घोषणापत्र’ ने ‘‘समान, बहुलवादी और सहकारी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था’’ के लिये दोनों देशों के साझा दृष्टिकोण की पुष्टि की थी।
  • इसने तत्कालीन ईरानी राष्ट्रपति मोहम्मद खतामी के ‘‘सभ्यताओं के बीच संवाद’’ के दृष्टिकोण को सहिष्णुता, बहुलवाद और विविधता के सम्मान के सिद्धांतों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रतिमान के रूप में चिह्नित किया था।

भारत-ईरान संबंधों का महत्त्व:

  • अवस्थिति एवं संपर्क:
    • ईरान, फारस की खाड़ी और कैस्पियन सागर के बीच एक रणनीतिक तथा महत्त्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति रखता है।
    • ईरान फारस की खाड़ी और कैस्पियन सागर के बीच रणनीतिक तथा महत्त्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति में अवस्थित है।
    • ईरान भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत को (पाकिस्तान के माध्यम से स्थल मार्ग का उपयोग करने की अनुमति के अभाव में) अफगानिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्यों तक संपर्क हेतु एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।
  • कच्चे तेल की सस्ती आपूर्ति:
    • भारत ईरान से तेल आयात को फिर से शुरू करने पर विचार कर सकता है।
    • भारत द्वारा नीति परिवर्तन और ईरानी तेल आयात की पुनर्बहाली संभावित रूप से अन्य देशों को भी इस राह पर आगे बढ़ने और बाज़ार में अतिरिक्त तेल की उपलब्धता के लिये (जो अंततः कच्चे तेल मूल्यों को नीचे ला सकता है) प्रोत्साहित कर सकती है।
  • यूरेशिया के साथ संपर्क निर्माण:
    • इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) इस सदी की शुरुआत में लॉन्च की गई एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारत, ईरान, अफगानिस्तान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप को मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट के माध्यम से जोड़ना है ताकि मालों के पारगमन समय में पर्याप्त कमी लाई जा सके।
    • यद्यपि इसका कुछ भाग कार्यान्वित किया गया है, लेकिन ईरान पर प्रतिबंधों के कारण इसकी पूरी क्षमता साकार नहीं हो सकी है। भारत और ईरान परिणामी व्यापार के लाभों को प्राप्त करने हेतु INSTC को आवश्यक प्रोत्साहन देने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा:
    • ईरान-ओमान-भारत गैस पाइपलाइन (IOI) भी एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है जो लंबे समय से अटकी हुई है। आशाजनक है कि नये ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हालिया यात्रा के दौरान ईरान और ओमान ने अपनी समुद्री सीमाओं के साथ दो गैस पाइपलाइन तथा एक तेल क्षेत्र विकसित करने के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • यदि यह परियोजना आगे बढ़ती है तो भविष्य में पाइपलाइन को भारत तक भी विस्तारित किया जा सकता है। यह विफल रहे ईरान-पाकिस्तान-भारत (IPI) पाइपलाइन का एक विकल्प प्रदान करते हुए भारत को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की सुविधा प्रदान करेगी।

आगे की राह

  • दोनों देशों को अभिसरण के उन क्षेत्रों की ओर देखने की आवश्यकता है जहाँ दोनों देश एक-दूसरे के साझा हितों की परस्पर समझ रखते हैं और इसकी प्राप्ति के लिये मिलकर कार्य कर सकते हैं।
  • भारत और ईरान परस्पर सहयोग से बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं। भारत द्वारा अपनाई जा रही मुखर कूटनीति एक ताज़ा और स्वागतयोग्य बदलाव है जहाँ अपने पड़ोसी एवं मित्र देशों के साथ खड़े रहने पर बल दिया गया है और अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति को सर्वोपरि माना गया है।
    • यदि भारत ईरान के साथ अपने संबंधों की दिशा में इसी दृष्टिकोण का विस्तार कर सके तो यह इन दो महान राष्ट्रों और सभ्यताओं के बीच सहयोग के लिये एक व्यापक संभावना का द्वार खोल सकता है। संबंध पुनर्बहाली के लिये यही उपयुक्त समय भी है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

Q. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह को विकसित करने का क्या महत्त्व है? (2017)

(a) अफ्रीकी देशों के साथ भारत के व्यापार में अत्यधिक वृद्धि होगी।
(b) तेल उत्पादक अरब देशों के साथ भारत के संबंध मज़बूत होंगे।
(c) भारत अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुँच के लिये पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रहेगा।
(d) पाकिस्तान इराक और भारत के बीच एक गैस पाइपलाइन की स्थापना की सुविधा और सुरक्षा प्रदान करेगा।

उत्तर: (c)


मेन्स:

Q. कई बाहरी शक्तियों ने मध्य एशिया में अपनी जड़ें जमा ली हैं, जो भारत के लिये रुचि का क्षेत्र है। इस संदर्भ में भारत के अश्गाबात समझौते, 2018 में शामिल होने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। (2018)

Q. अमेरिकी ईरान परमाणु समझौते के विवाद से भारत के राष्ट्रीय हित किस तरह प्रभावित होंगे? भारत को इस स्थिति पर कैसे प्रतिक्रिया देनी चाहिये? (2018)

Q. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017)

स्रोत:पी.आई.बी

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