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वर्ष 2017-18 की खरीफ फसल के लिये सरकार के प्रथम अग्रिम अनुमान

  • 26 Sep 2017
  • 5 min read

संदर्भ
हाल ही में कृषि मंत्रालय ने अपने प्रथम अग्रिम अनुमानों में यह कहा है कि इस वर्ष गन्ने को छोड़कर अन्य सभी खरीफ फसलों का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में कम होगा।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2017-18 में खाद्यानों जैसे-धान, दालों और मोटे अनाजों का उत्पादन 134.7 मिलियन टन होने की संभावना है जोकि पिछले वर्ष हुए 138.5 मिलियन टन उत्पादन की तुलना में 2.5% कम होगा|
  • इन अनुमानों के मुताबिक तिलहन के उत्पादन में 7.7% की दर से कमी आने की संभावना है और इसका उत्पादन वर्ष 2016-17 के 22.4 मिलियन टन की तुलना में वर्ष 2017-18 में 20.68 मिलियन टन होने का अनुमान है।
  • कपास के लिये किसानों द्वारा बुवाई में 19% की बढ़ोतरी करने के बावजूद भी इसका उत्पादन पिछले वर्ष के 33 मिलियन बेल्स (एक बेल 170 किलोग्राम के बराबर होता है) की तुलना में वर्ष 2017-18 में 32.3% मिलियन बेल्स की कमी आने की संभावना है।इसके उत्पादन में होने वाली कमी का एकमात्र कारण इसकी निम्न उत्पादकता होगी|
  • यदि वर्ष 2017-18 में होने वाली ग्रीष्मकालीन फसलों के निम्न उत्पादन की तुलना पिछले वर्ष के अधिकतम उत्पादन से की जाए तो उत्पादन में होने वाली कमी का एकमात्र कारण जून से सितम्बर में आने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून ही है जो केवल भारत के आधे फसली क्षेत्र में ही वर्षा करता है|
  • यदि मानसून की तुलना 50 वर्षों के औसत से की जाए तो इसमें मात्र 5% की कमी देखी गई है, परन्तु भारतीय मौसम विभाग के आँकड़े यह दर्शाते हैं कि भारत के 630 ज़िलों में से 212 ज़िलों में सामान्य से 20% कम वर्ष होने का अनुमान है, जबकि देश के 100 जिलों में सामान्य वर्षा की तुलना में 20% अधिक वर्षा होने की संभावना है।
  • भारत में ग्रीष्मकालीन फसलों के निम्न उत्पादन का तात्पर्य यह है कि जब तक ग्रीष्मकालीन फसलों में हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति शीतकालीन यानी रबी की फसल तथा गैर-फसल क्षेत्रों जैसे-वन, मत्स्य पालन और पशुधन से नहीं कर दी जाती तब तक कृषि विकास वर्ष 2016-17 के अपने 4.9% के उच्च स्तर से कम ही रहेगा|
  • दरअसल, गुजरात जैसे राज्य में बाढ़ विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करती है, जबकि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पड़ने वाले दीर्घकालीन सूखे के कारण फसल के उत्पादन में कमी आती है। इसके अतिरिक्त, इस वर्ष होने वाली खराब फसल के अनुमान कृषि क्षेत्र के लिये अच्छे संकेत नहीं है। ध्यातव्य है कि कृषि क्षेत्र में देश की कार्यशील जनसंख्या का लगभग आधा भाग संलग्न है|
  • यद्यपि अधिकांश फसलों के उत्पादन में प्रति वर्ष कमी आ रही है, तथापि इनका उत्पादन पांच वर्षों (वर्ष 2011-12 से 2015-16) के औसत उत्पादन से अधिक है। 
  • मंत्रालय द्वारा लगाए गए अग्रिम अनुमान यह दर्शाते हैं कि खरीफ दालों का उत्पादन वर्ष 2016-17 के 9.4 मिलियन टन की तुलना में कम होकर वर्ष 2017-18 में 8.7 मिलियन टन  होने का अनुमान है।इसके अतिरिक्त, विभिन्न प्रकार के तिलहनों में सोयाबीन के उत्पादन में भारी गिरावट आने की संभावना है|
  • विदित हो कि केवल गन्ना ही ऐसी खरीफ फसल है जिसका उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2017-18 में बढ़कर 338 मिलियन टन होने का अनुमान है, जोकि पिछले वर्ष से 10% अधिक है|

खरीफ फसलें क्या हैं?

  • वे फसलें जिन्हें वर्षाकाल के दौरान उगाया जाता है, खरीफ फसलें कहलाती हैं। 
  • इन फसलों के बीजों को वर्षाकाल के आरम्भ यानी जुलाई में बोया जाता है। फसल के पकने के बाद इसे पतझड़ के मौसन यानी अक्टूबर में काट लिया जाता है।
  • इन फसलों के लिये 25⁰C से 35⁰C के उच्च तापमान और उच्च वर्षा (150 सेमी. से 200 सेमी.) की आवश्यकता होती है। अतः इसे दक्षिण भारत जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ही उगाया जा सकता है।
  • खरीफ फसलों में धान, कॉटन, गन्ना, हल्दी, मूंग, मक्का आदि फसलों को शामिल किया जाता है|
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