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सामाजिक न्याय

वैश्विक पोषण रिपोर्ट- 2018

  • 30 Nov 2018
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?


हाल ही में पोषण पर विश्व की सबसे व्यापक रिपोर्ट ‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट’ (Global Nutrition Report- 2018) प्रस्तुत की गई, जो कुपोषण के सभी रूपों में प्रसार और उसकी सर्वव्यापकता को दर्शाती है।

  • अपने पाँचवें संस्करण में वैश्विक पोषण रिपोर्ट ने कुपोषण को दूर करने के मामले में देशों की प्रगति के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर कुपोषण रुपी समस्या का समाधान करने वाले उपायों को प्रमुखता से दर्शाया है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष


हालाँकि कुपोषण को कम करने के मामले में कुछ प्रगति हुई है लेकिन यह प्रगति काफी धीमी है और कुपोषण के सभी रूपों तक इसकी पहुँच नहीं है।

  • पाँच साल से कम आयु के बच्चों में स्टंटिंग के मामले में वैश्विक स्तर पर गिरावट दर्ज की गई है लेकिन अफ्रीका में इनकी संख्या बढ़ रही है और देशों के स्तर पर इस प्रगति में बहुत अधिक असमानताएँ हैं। वैश्विक स्तर पर पाँच साल से कम उम्र के बच्चों के बीच स्टंटिंग का स्तर वर्ष 2000 के 32.6% से घटकर 2017 में 22.2% पर पहुँच गया।
  • वैश्विक स्तर पर महिलाओं के बीच कम वजन और एनीमिया की समस्या को हल करने में प्रगति बहुत धीमी रही है, वयस्कों में अधिक वज़न और मोटापे की समस्या में वृद्धि हुई है तथा पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में मोटापे की उच्च दर पाई गई है। वर्ष 2000 से अब तक अंडरवेट महिलाओं की संख्या में मामूली कमी आई है, जो वर्ष 2016 में 11.6% से घटकर 9.7% तक पहुँच गई।
  • रिपोर्ट के अनुसार, प्रजनन योग्य आयु (Reproductive Age) की एक तिहाई महिलाएँ एनीमिक (Anemic) हैं, जबकि दुनिया के 39% वयस्क अत्यधिक वज़न या मोटापे से ग्रस्त हैं और हर साल करीब 20 मिलियन बच्चे अंडरवेट पैदा होते हैं।
  • 194 देशों में से केवल 94 देश 2025 के लिये निर्धारित वैश्विक पोषण लक्ष्यों में से कम से कम एक को पूरा करने के मार्ग पर निश्चित रूप से अग्रसत हैं लेकिन अधिकांश देश एक भी लक्ष्य प्राप्त करने से काफी पीछे हैं।
  • नए विश्लेषण से इस बात की पुष्टि होती है कि कुपोषण के विभिन्न रूप एक-दूसरे से संबद्ध होते जा रहे हैं।
  • दुनिया भर में तेज़ी से बढ़ते संकट (सामाजिक-आर्थिक) कुपोषण के सभी रूपों से निपटने में काफी बाधा उत्पन्न करते हैं।

कुपोषण को समाप्त करने के लिये प्रतिबद्धताओं में वृद्धि हुई है लेकिन इन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये एक लंबा रास्ता तय करना होगा।

  • राष्ट्रीय पोषण नीतियों और पोषण लक्ष्यों की संख्या और विस्तार में वृद्धि हुई है लेकिन, इन लक्ष्यों को पूरा करने में सबसे अहम चुनौती है वित्तपोषण और कार्रवाई।
  • ऋणदाताओं ने 2013 में Nutrition for Growth (N4G) शिखर सम्मेलन में किये गए वित्तपोषण प्रतिबद्धता को पूरा किया है, लेकिन विश्व स्तर पर अभी भी वित्तपोषण में भारी कमी है।
  • प्रारंभिक संकेतों से पता चलता है कि कम और मध्यम आय वाले देशों में सरकारें पोषण पर अधिक घरेलू व्यय कर रही हैं।

कुपोषण के सभी रूपों को समाप्त करने के लिये आहार में सुधार पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

  • अधिक से अधिक बेहतर डेटा से यह समझने में मदद मिलती है कि लोग क्या खा रहे हैं और यह क्यों मायने रखता है, लेकिन इस रिपोर्ट के आँकड़े दर्शाते हैं कि सभी देशों और संपत्ति समूहों में आहार, पोषण लक्ष्यों को प्राप्त करने के क्रम में एक महत्त्वपूर्ण खतरा पैदा करता है।
  • स्वस्थ आहार नीतियाँ और कार्यक्रम देश, शहरों और समुदायों में प्रभावी साबित हो रही हैं लेकिन व्यापक स्तर एक समग्र कार्यवाही वाली नीति की कमी है।

हालाँकि डेटा में भी सुधार हो रहा है लेकिन कुछ बुनियादी अंतराल ऐसे हैं जिन्हें भरना अभी शेष है तथा अधिक प्रभावी कार्रवाई को लागू करने के लिये और अधिक निवेश की आवश्यकता है।

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रिपोर्ट में सुझाए गए पाँच महत्त्वपूर्ण कदम

  1. कुपोषण के सभी रूपों में को समाप्त करने के लिये एकीकृत दृष्टिकोण और एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है।
  2. कार्रवाई के प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करें और आवश्यक डेटा को प्राथमिकता दें तथा निवेश में वृद्धि करें।
  3. पोषण कार्यक्रमों के लिये वित्त पोषण में वृद्धि करें और उसमें विविधता एवं नवीनता लाएँ।
  4. स्वस्थ आहार को बढ़ावा देने के लिये दुनिया भर में स्वस्थ खाद्य पदार्थों को सस्ता किया जाए और उनकी उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
  5. कुपोषण के सभी रूपों में समाप्त करने के लिये बेहतर प्रतिबद्धताओं को अपनाएँ और उन्हें पूरा करने का प्रयास करें - वैश्विक पोषण लक्ष्यों को पूरा करने के लिये एक महत्वाकांक्षी, परिवर्तनीय दृष्टिकोण को अपनाएँ।

वैश्विक पोषण रिपोर्ट और भारत

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  • वैश्विक पोषण रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुपोषण खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है। पूरी दुनिया में में स्टंटेड (कुपोषण के कारण अविकसित रह जाने वाले) बच्चों की कुल संख्या में लगभग 31 प्रतिशत बच्चे भारतीय हैं। कुपोषण पीड़ित बच्चों की संख्या के मामले में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है।
  • इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (International Food Policy Research Institute) के अध्ययन पर आधारित इस रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 5 साल से कम उम्र के 150.8 मिलियन बच्चे स्टंटिंग और 50.5 मिलियन बच्चे वेस्टिंग (उम्र के अनुसार वज़न में कमी) का शिकार हैं।
  • कुपोषण के कारण ओवरवेट होने वाले बच्चों की संख्या भारत में 10 लाख से अधिक है जिसके कारण भारत उन 7 देशों में शामिल है जहाँ कुपोषण के कारण ओवरवेट बच्चों की संख्या अधिक है। इस लिस्ट में शामिल अन्य देश हैं- अमेरिका, चीन, पाकिस्तान, मिस्र, ब्राजील और इंडोनेशिया। उल्लेखनीय है कि पूरी दुनिया में कुपोषण के कारण ओवरवेट का शिकार होने वाले बच्चों की संख्या 38.3 मिलियन है।

स्टंटिंग से पीड़ित बच्चों की संख्या के अनुसार शीर्ष 3 देश

  1. भारत- 46.6 मिलियन
  2. नाइजीरिया- 13.9 मिलियन
  3. पाकिस्तान- 10.7 मिलियन

वेस्टिंग से पीड़ित बच्चों की संख्या के अनुसार शीर्ष 3 देश

  1. भारत- 25.5 मिलियन
  2. नाइजीरिया- 3.4 मिलियन
  3. इंडोनेशिया- 3.3 मिलियन

वैश्विक पोषण रिपोर्ट के बारे में

  • वैश्विक पोषण रिपोर्ट दुनिया भर में कुपोषण की स्थिति पर दुनिया का सबसे प्रमुख प्रकाशन है।
  • वैश्विक पोषण रिपोर्ट की परिकल्पना वर्ष 2013 में न्यूट्रीशन फॉर ग्रोथ (Nutrition for Growth-N4G) शिखर सम्मेलन में की गई थी। वर्ष 2014 में इस रिपोर्ट का पहला संस्करण प्रकाशित किया गया था।
  • यह डेटा संचालित रिपोर्ट है तथा वार्षिक रूप से प्रकाशित की जाती है।
  • यह वैश्विक पोषण लक्ष्यों पर प्रगति को ट्रैक करता है, जिसमें आहार से संबंधित NCDs से लेकर मातृ, शिशु और युवा बाल पोषण शामिल होते हैं।
  • 2018 वैश्विक पोषण रिपोर्ट मौजूदा प्रक्रियाओं की समीक्षा करती है, कुपोषण का मुकाबला करने में हुई प्रगति पर प्रकाश डालती है, चुनौतियों की पहचान करती है और उन्हें हल करने के तरीकों का प्रस्ताव देती है।
  • यह दुनिया के अग्रणी शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और सरकारी प्रतिनिधियों के एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समूह (Independent Expert Group- IEG) द्वारा किये गए शोध और विश्लेषण के आधार पर तैयार की जाती है।
  • विश्व बैंक (World Bank) इस रिपोर्ट का वैश्विक भागीदार है।

स्रोत : यूनिसेफ वेबसाइट तथा इकोनॉमिक टाइम्स

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