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बदलते पश्चिमी विक्षोभ

  • 27 Mar 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पश्चिमी विक्षोभ, आकस्मिक बाढ़, भूमध्य क्षेत्र, कैस्पियन सागर, हिमालयी हिमनद, रबी फसल।

मेन्स के लिये:

पश्चिमी विक्षोभ, भारत के लिये पश्चिमी विक्षोभ का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हालिया अध्ययनों के अनुसार, पश्चिमी विक्षोभ की बदलती प्रकृति भारत में सर्दियों के असामान्य मौसम का प्राथमिक कारण हो सकती है।

  • भारत में पिछले तीन वर्षों में सामान्य सर्दी का मौसम नहीं रहा है। देश में मानसून के बाद दूसरा सबसे नम रहने वाला मौसम असामान्य रूप से शुष्क और गर्म रहा है।

पश्चिमी विक्षोभ का भारत में सर्दी के मौसम पर हालिया प्रभाव:

  • क्रमशः दिसंबर 2022 और फरवरी 2023 में भारत के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र, जहाँ वर्ष भर में होने वाली वर्षा में से 30% सर्दियों के दौरान होती है, में 83% और 76% की कमी देखी गई है।
  • पश्चिमी विक्षोभ की अनुपस्थिति के कारण उत्तर भारतीय मैदानी इलाकों में दिसंबर 2022 और अधिकांश जनवरी 2023 में हिमालय से बहने वाली ठंडी उत्तरी हवाओं के कारण शीत लहर और ठंडे दिनों का अनुभव किया गया।
  • पश्चिमी विक्षोभ ओलावृष्टि के लिये भी उत्तरदायी है जो खड़ी फसलों को नुकसान पहुँचाती है, जो कोहरे के कारण वायु, रेल और सड़क सेवाओं को बाधित करता है और बादल फटने से आकस्मिक बाढ़ (Flash Floods) की समस्या उत्पन्न करता है।

पश्चिमी विक्षोभ:

  • परिचय:
    • पश्चिमी विक्षोभ चक्रवाती तूफानों की एक शृंखला है जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं, ये 9,000 किमी. से अधिक की दूरी तय करके भारत में पहुँचते हैं। यह उत्तर-पश्चिम भारत में शीत ऋतु में वर्षा के लिये उत्तरदायी है।
      • पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर, काला सागर और कैस्पियन सागर से आर्द्रता एकत्र करता है और पश्चिमी हिमालय पर्वत से टकराने से पहले ईरान और अफगानिस्तान के ऊपर से गुज़रता है।
    • जबकि तूफान प्रणाली पूरे वर्ष में मौजूद होती है, वे मुख्य रूप से दिसंबर और अप्रैल के बीच भारत को प्रभावित करते हैं क्योंकि उपोष्णकटिबंधीय पछुआ जेट स्ट्रीम का प्रक्षेपवक्र शीत ऋतु के महीनों के दौरान हिमालय क्षेत्र में स्थानांतरित हो जाता है।
      • जेट स्ट्रीम हिमालय के ऊपर से पूरे वर्ष तिब्बत के पठार और चीन की ओर प्रवाहित होती है। इसका प्रक्षेपवक्र सूर्य की स्थिति से प्रभावित होता है।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • पश्चिमी विक्षोभ हिमपात का प्राथमिक स्रोत है जो शीत ऋतु के दौरान हिमालय के ग्लेशियरों में वृद्धि करता है।
      • ये ग्लेशियर गंगा, सिंधु और यमुना जैसी प्रमुख हिमालयी नदियों के साथ-साथ असंख्य पर्वतीय झरनों और नदियों का पोषण करते हैं।
    • ये कम दबाव वाली तूफान प्रणालियाँ भारत में किसानों को रबी फसल उगाने में मदद करती हैं।
  • समस्याएँ:
    • पश्चिमी विक्षोभ हमेशा अच्छे मौसम के अग्रदूत नहीं होते हैं। कभी-कभी पश्चिमी विक्षोभ बाढ़, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन, धूल भरी आँधी, ओलावृष्टि और शीतलहर जैसी चरम मौसम की घटनाओं का कारण बन सकते हैं, बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर सकते हैं साथ ही जीवन तथा आजीविका को प्रभावित कर सकते हैं।

अन्य जलवायु परिघटनाओं का पश्चिमी विक्षोभ पर प्रभाव:

  • ला नीना घटना:
    • पिछले तीन वर्षों से दुनिया ला नीना के प्रभाव में है, जो प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान के ठंडा होने को संदर्भित करता है।
      • यह पश्चिमी विक्षोभ के निर्माण के लिये तापमान प्रवणता को कमज़ोर करता है क्योंकि यह गर्म उष्णकटिबंधीय वायु के तापमान को कम करता है।
  • उत्तरी अटलांटिक दोलन:
    • पश्चिमी विक्षोभ उत्तरी अटलांटिक दोलन से भी प्रभावित होते हैं, मध्य उत्तरी अटलांटिक में अज़ोरेस द्वीप समूह के ऊपर एक उच्च दाब क्षेत्र और आइसलैंड पर निम्न दाब वाले क्षेत्र के कारण उत्तरी अटलांटिक महासागर पर वायु के दाब में एक यादृच्छिक परिवर्तन होता है।
    • इसके कारण वर्तमान में मौसम प्रणाली एक ऋणात्मक चरण में है, क्योंकि निम्न और उच्च दाब दोनों प्रणालियाँ कमज़ोर हैं तथा यह पश्चिमी विक्षोभ को धनात्मक चरण की तुलना में 20% कम निरंतर और 7% कम तीव्र बनाता है।
  • उपोष्णकटिबंधीय जेट प्रवाह:
    • उपोष्णकटिबंधीय पछुआ जेट प्रवाह के उत्तर की ओर खिसकने से न केवल भारत में पश्चिमी विक्षोभ के आने की संभावना कम हो जाती है, बल्कि तिब्बती पठार या यहाँ तक कि चीन और रूस जैसे उच्च अक्षांशों को प्रभावित करने की संभावना भी बढ़ जाती है।
      • यह अप्रत्यक्ष रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रभावित कर सकता है, जो भारत की वार्षिक वर्षा का 80% हिस्सा है।
  • दक्षिण पश्चिम मानसून के साथ अंतःक्रिया:
    • आर्कटिक क्षेत्र के गर्म होने से यह ध्रुवीय जेट को तरंगदार बनाता है, जिससे पश्चिमी विक्षोभ गर्मियों के दौरान भारत में अधिक बार आते हैं।
    • ग्रीष्म एवं मानसून के दौरान तथा मानसून के बाद के मौसम में पश्चिमी विक्षोभ के दक्षिण-पश्चिम मानसून और अन्य संबद्ध स्थानीय संवहन प्रणालियों, जैसे कि उष्णकटिबंधीय अवसाद जो बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से उत्तर की ओर यात्रा करते हैं, के साथ अंतःक्रिया की अधिक संभावना होती है।
      • इस तरह की अंतःक्रिया विनाशकारी मौसम आपदाओं का कारण बन सकती है।
      • उदाहरण के लिये मई 2021 में अत्यधिक गंभीर चक्रवात ताउते, जिसके कारण गुजरात तट पर भूस्खलन हुआ, साथ ही इसने पश्चिमी विक्षोभ के साथ अंतःक्रिया कर दिल्ली एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में भारी वर्षा की।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)

  1. विश्व में उष्णकटिबंधीय मरुस्थल महाद्वीपों के पश्चिमी सीमांतों में व्यापारिक पवन पट्टी में पाए जाते हैं।
  2. भारत में पूर्वी हिमालय क्षेत्र उत्तर-पूर्वी पवनों से अधिक वर्षा प्राप्त करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1
(B) केवल 2
(C) 1 और 2 दोनों
(D) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (A)

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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