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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विदेश मंत्रालय का पुनर्गठन

  • 19 Feb 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये

सॉफ्ट पावर

मेन्स के लिये

पुनर्गठन की आवश्यकता और महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने भारत के रणनीतिक लक्ष्यों के साथ साम्यता स्थापित करने के लिये स्वतंत्रता के बाद के सबसे बड़े प्रशासनिक सुधारों में से एक, विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs-MEA) के पुनर्गठन का फैसला किया है।

प्रमुख बिंदु

  • सरकार ने संस्कृति, व्यापार और विकास जैसे विषयों के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने कार्यों को व्यवस्थित करने के लिये विदेश मंत्रालय के पुनर्गठन का निर्णय लिया है।
  • इस पुनर्गठन द्वारा सात अतिरिक्त सचिवों (Additional Secretaries) को सशक्त कर विभिन्न डिवीज़नों का कार्य विभाजन किया जाएगा।
  • इस पुनर्गठन का उद्देश्य दीर्घकालिक प्रभाव क्षेत्रों की पहचान कर अतिरिक्त सचिवों को एकीकृत कार्यों की निगरानी के लिये सशक्त बनाना है।
  • साथ ही व्यापार और अर्थशास्त्र जैसे क्षेत्रों में बाहरी विशेषज्ञता को शामिल करना तथा सांस्कृतिक शक्ति एवं विकास भागीदारी में समन्वय स्थापित करना आवश्यक है।

पुनर्गठन की आवश्यकता क्यों?

  • सचिव स्तर के अधिकारी दिन-प्रतिदिन के कर्त्तव्यों के साथ विभिन्न मंत्रालयों से समन्वय भी स्थापित करते हैं जिससे उन पर अत्यधिक कार्य दबाव और आवश्यक रणनीतिक कार्यों के लिये समय का अभाव था।
  • सांस्कृतिक विरासत, इतिहास, पर्यटन जैसे उद्देश्यों को बढ़ावा देने और प्रवासी भारतीयों के साथ समन्वय स्थापित करने के लिये सरकार के प्रयासों को मज़बूत करने की आवश्यकता थी।
  • यह भारत को सॉफ्ट पावर (Soft Power) के वाहक के रूप में स्थापित करने में सहायता करेगा।

महत्त्व

  • पुनर्गठन के बाद निर्मित संरचना, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में वार्ता के दौरान दूसरे पक्ष की वार्ता रणनीति तथा अंतिम चरण में होने वाले अपरिहार्य ट्रेड-ऑफ ( एक परिस्थितिजन्य निर्णय है जिसमें विशेष लाभ के लिये किसी अन्य लाभ की गुणवत्ता या मात्रा को कम करना या समाप्त करना शामिल है) के अग्रिम निहितार्थ का आकलन करने में सक्षम होगी।
  • इस पुनर्गठन से यूरोप, अफ्रीका और पश्चिम एशियाई क्षेत्रों में होने वाली गतिविधियों पर कार्यरत डिवीज़न तथा हिंद महासागर और भारत-प्रशांत क्षेत्र में कार्यरत डिवीज़न का एकीकरण कर दिया गया है।
  • एकीकरण के बाद गठित डिवीज़न वैश्विक स्थलीय सुरक्षा के साथ समुद्री सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित करेगी।

सॉफ्ट पावर

  • इसके अंतर्गत कोई देश परोक्ष रूप से सांस्कृतिक अथवा वैचारिक साधनों के माध्यम से किसी अन्य देश के व्यवहार अथवा हितों को प्रभावित करता है।
  • इसमें आक्रामक नीतियों या मौद्रिक प्रभाव का उपयोग किये बिना अन्य देशों को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है।
  • सॉफ्ट पॉवर की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग हार्वर्ड विश्वविद्यालय के जोसेफ न्ये (Juseph Nye) द्वारा किया गया था।

चिंताएँ

  • रणनीतिक लक्ष्यों पर अधिक ध्यान न दे पाना तथा वैश्विक मुद्दों पर समसामयिक जानकारी का अभाव होना।
  • वैश्विक भूमिका निभाने की हमारी क्षमता और प्रदर्शन के बीच विद्यमान अंतर को समाप्त करने के लिये सकारात्मक विज़न का अभाव।
  • प्रोद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाने हेतु सॉफ्ट पावर रणनीति का अत्यधिक प्रयोग।
  • सार्वजनिक नीति और अनुसंधान डिवीज़न की अस्पष्ट भूमिका।
  • भारत के रणनीतिक लक्ष्यों के साथ समरूपता का अभाव।

दीर्घकालिक सामरिक रणनीति

  • सामरिक रणनीति तब अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है जब संसाधनों की आपूर्ति कम हो, कोई भी राष्ट्र वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं का दावा तभी कर सकता है जब उसका सकल घरेलू उत्पाद अधिक हो।
  • भारत को सामरिक क्षेत्र में मुख्य अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित होने के लिये दीर्घकालिक प्रतिक्रिया नीति की आवश्यकता है।
  • दीर्घकालिक सामरिक रणनीति के निर्माण में बेहतर आर्थिक विकास दर एक प्रमुख कारक है।

आगे की राह

  • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में भारत को स्थापित करने के लिये भारतीय विदेश नीति का समय-समय पर मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
  • विदेश मंत्रालय के प्रत्येक डिवीज़न की स्पष्ट भूमिका का होना अति आवश्यक है। भूमिका के स्पष्ट विभाजन से आपसी समन्वय स्थापित करने में आसानी होती है।
  • सरकार को शीघ्रता से दीर्घकालिक सामरिक रणनीति के निर्माण की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू

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