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शासन व्यवस्था

एकल महिलाओं के लिये गर्भपात अधिकार

  • 30 Sep 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गर्भपात कानून, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी MTP (2021), प्रजनन अधिकार।

मेन्स के लिये:

एकल महिलाओं के लिये गर्भपात का अधिकार, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी MTP एक्ट (2021) और इसका  महत्त्व ।

चर्चा  में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने देश में सभी महिलाओं को (वैवाहिक स्थिति से इतर) सुरक्षित और कानूनी गर्भपात देखभाल प्राप्त करने के लिये 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने की अनुमति दी है।

सर्वोच्च न्यायालय  का फैसला:

  • पुराने कानून का विस्तार:
    • इसने 51 साल पुराने गर्भपात कानून (द मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971) को विस्तारित किया है, जो अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करने से रोकता है।  
      • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 और इसके नियम 2003 के तहत 20 सप्ताह से 24 सप्ताह की गर्भवती अविवाहित महिलाओं को पंजीकृत चिकित्सकों की मदद से गर्भपात करने का अधिकार नहीं है।
      • MTP अधिनियम में नवीनतम संशोधन 2021 में किया गया था।
  • अनुच्छेद 21 के तहत चयन का अधिकार:
  • न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन स्वायत्तता, गरिमा और निजता के अधिकार अविवाहित महिला को यह चुनने का अधिकार देते हैं कि विवाहित महिला के समान ही बच्चे को जन्म देना है या नहीं।
  • अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार:
    • न्यायालय ने कहा है कि 20-24 सप्ताह के बीच की गर्भावस्थ वाली सिंगल या अविवाहित महिलाओं को गर्भपात करने से रोकना, जबकि विवाहित महिलाओं को ऐसी स्थिति में गर्भपात की अनुमति देना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा
    • एकल महिला को एक विवाहित गर्भवती महिला के समान "वैवाहिक परिस्थितियों में परिवर्तन" का सामना करना पड़ सकता है। हो सकता है कि उसे छोड़ दिया गया हो या वह बिना नौकरी के हो या वह गर्भावस्था के दौरान हिंसा का शिकार भी हो सकती है।
  • संवैधानिक रूप से उचित नहीं:
    • विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव संवैधानिक रूप से सही नहीं है।
    • कानून के लाभ एकल और विवाहित महिलाओं को समान रूप से प्राप्त हैं।
  • प्रजनन अधिकारों का विस्तार:
    • प्रजनन अधिकार शब्द बच्चे होने या न होने तक ही सीमित नहीं है।
    • महिलाओं के प्रजनन अधिकारों में "महिलाओं के अधिकारों एवं स्वतंत्रता को शामिल किया गया है।
    • प्रजनन अधिकारों में शिक्षा तक पहुँच और गर्भनिरोधक एवं यौन स्वास्थ्य के बारे में जानकारी का अधिकार, सुरक्षित तथा कानूनी गर्भपात चुनने का अधिकार और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल का अधिकार शामिल है।
  • वैवाहिक बलात्कार से संबंधित दृष्टिकोण:
    • MTP अधिनियम का उद्देश्य महिला के प्रजनन और निर्णयात्मक स्वायत्तता के अधिकार के तहत  वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार की श्रेणी में शामिल करना है। 

भारतीय संदर्भ में गर्भपात कानून:

  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
    • 1960 के दशक तक भारत में गर्भपात अवैध था और ऐसा करने पर एक महिला के लिये भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 312 के तहत तीन वर्ष की कैद और/अथवा ज़ुर्माने का प्रावधान किया गया था।
    • 1960 के दशक के मध्य में सरकार ने शांतिलाल शाह समिति का गठन किया और डॉ. शांतिलाल शाह की अध्यक्षता वाले समूह को गर्भपात के मामले की जाँच करने तथा यह तय करने के लिये कहा गया कि क्या भारत को इसके लिये एक कानून की आवश्यकता है अथवा नहीं।
    • शांतिलाल शाह समिति की रिपोर्ट के आधार पर लोकसभा और राज्यसभा में एक चिकित्‍सकीय समापन विधेयक पेश किया गया था तथा अगस्त 1971 में इसे संसद द्वारा पारित किया गया था।
    • 1 अप्रैल, 1972 को गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन (MPT) अधिनियम, 1971 जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू हुआ।
    • इसके अलावा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 312, गर्भवती महिला की सहमति से गर्भपात किये जाने पर भी स्वेच्छा से "गर्भपात का कारण" अपराध है, सिवाय इसके कि जब गर्भपात महिला के जीवन को बचाने के लिये किया जाता है।
      • इसका अर्थ यह है कि स्वयं महिला पर या चिकित्सक सहित किसी अन्य व्यक्ति पर गर्भपात का मुकदमा चलाया जा सकता है।
  • परिचय:
    • गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम (MTP), 1971 एक्ट ने दो चरणों में एक चिकित्सक द्वारा गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी:
      • गर्भधारण के 12 सप्ताह बाद तक के गर्भपात के लिये एक डॉक्टर की राय ज़रूरी थी।
      • इस कानून के अनुसार, कानूनी तौर पर गर्भपात केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, जैसे- जब महिला की जान को खतरा हो, महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो, बलात्कार के कारण गर्भधारण हुआ हो, पैदा होने वाले बच्चे का गर्भ में उचित विकास न हुआ हो और उसके विकलांग होने का डर हो। 12 से 20 सप्ताह के बीच के गर्भधारण के संदर्भ में इन सभी बातों का निर्धारण करने के लिये दो डॉक्टरों की राय आवश्यक थी।
  • हाल के संशोधन:
    • वर्ष 2021 में संसद ने 20 सप्ताह तक के गर्भधारण के लिये एक डॉक्टर की सलाह के आधार पर गर्भपात की अनुमति देने के लिये कानून में बदलाव किया।
    • संशोधित कानून के तहत 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भधारण के लिये दो डॉक्टरों की राय की आवश्यकता होती है।
    • इसके अलावा 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भधारण के लिये, नियम महिलाओं की सात श्रेणियों को निर्दिष्ट करते हैं जो MTP अधिनियम के तहत निर्धारित नियमों की धारा 3 बी के तहत समाप्ति की मांग करने के लिये पात्र होंगी।
      • यौन हमले या बलात्कार की स्थिति में।
      • अवयस्क।
      • विधवा और तलाक होने जैसी परिस्थितियों अर्थात् वैवाहिक स्थिति में बदलाव के समय की गर्भावस्था।
      • शारीरिक रूप से विकलांग महिलाएँ (विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत निर्धारित मानदंडों के अनुसार प्रमुख विकलांगता)।
      • मानसिक रूप से विक्षिप्त महिलाएँ।
      • भ्रूण की विकृति जिसमें जीवन के साथ असंगत होने का पर्याप्त जोखिम होता है या यदि बच्चा पैदा होता है तो वह गंभीर रूप से विकलांग, शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं से पीड़ित हो सकता है।
      • मानवीय आधार या आपदाओं या आपात स्थितियों में गर्भावस्था वाली महिलाएँ।

चिंताएँ:

  • असुरक्षित गर्भपात के मामले:
    • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत में मातृ मृत्यु दर का तीसरा प्रमुख कारण असुरक्षित गर्भपात है और असुरक्षित गर्भपात के कारण हर दिन करीब 8 महिलाओं की मौत हो जाती है।
    • विवाह से पूर्व गर्भधारण करने वाली और गरीब परिवारों की महिलाओं के पास अवांछित गर्भधारण को रोकने के लिये असुरक्षित या अवैध तरीकों का इस्तेमाल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है।
  • ग्रामीण भारत में चिकित्सा विशेषज्ञ की कमी:
    • लैंसेट के वर्ष 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, 2015 तक भारत में प्रतिवर्ष 15.6 मिलियन गर्भपात हुए।
    • MTP अधिनियम केवल स्त्री रोग या प्रसूति विशेषज्ञ डॉक्टरों को गर्भपात करने की स्वीकृति देता है।
    • हालाँकि ग्रामीण स्वास्थ्य साँख्यिकी पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण भारत में प्रसूति-स्त्री रोग विशेषज्ञों की 70% कमी है।
  • अवैध गर्भपात के कारण मातृ मृत्यु दर में वृद्धि:
    • चूँकि कानून अपनी मर्जी से गर्भपात की अनुमति नहीं देता है, यह महिलाओं को असुरक्षित परिस्थितियों में अवैध गर्भपात करने के लिये प्रेरित करता है, जिसके परिणामस्वरूप मातृ मृत्यु दर में वृद्धि होती है।

आगे की राह

  • गर्भपात पर भारत के कानूनी ढाँचे को काफी हद तक प्रगतिशील माना जाता है, खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों की तुलना में जहाँ ऐतिहासिक रूप से और वर्तमान समय में गर्भपात पर गंभीर प्रतिबंध है।
  • इसके अलावा सार्वजनिक नीति निर्माण में गंभीरता के साथ पुनर्विचार करने के साथ ही सभी हितधारकों को महिलाओं और उनके प्रजनन अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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