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एडिटोरियल

शासन व्यवस्था

जनसांख्यिकीय ट्रांजिशन का दोहन

  • 14 Jan 2022
  • 15 min read

यह एडिटोरियल 13/01/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Reaping India’s Demographic Dividend” लेख पर आधारित है। इसमें युवाओं की क्षमता का पूरी तरह से दोहन करने हेतु किये जाने वाले उन उपायों के बारे में चर्चा की गई है जो भविष्य में तब लाभ देंगे जब भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा वृद्धों का होगा।

संदर्भ

एक राष्ट्र के विकास के लिये समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से बच्चों और युवाओं के उत्पादक योगदान की आवश्यकता होती है, जिन्हें आत्म-अभिव्यक्ति के लिये अवसर प्रदान किया जाना महत्त्वपूर्ण होता है।

बच्चों और युवाओं में पारिवारिक और राष्ट्रीय निवेश आर्थिक रूप से सक्रिय आबादी (जब तक वे वृद्ध आयु वर्ग में प्रवेश नहीं कर लेते) की ओर से उच्च उत्पादकता के मामले में दीर्घावधिक लाभ पाने का अवसर प्रदान करते हैं।

वर्तमान में भारत की आबादी एक प्रौढ़ विश्व में सबसे युवा आबादी में से एक है, हालाँकि  भारत की आबादी का भी एक बड़ा हिस्सा वर्ष 2050 तक प्रौढ़ हो जाएगा। इस परिदृश्य में जनसंख्या गतिशीलता, शिक्षा एवं कौशल, स्वास्थ्य देखभाल, लिंग संवेदनशीलता को भविष्योन्मुखी नीति में शामिल करने और युवा पीढ़ी को अधिकार एवं विकल्प प्रदान करने की आवश्यकता है, ताकि वे भविष्य में देश के आर्थिक विकास में अपनी अधिकतम क्षमता तक योगदान कर सकें। 

भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश

  • प्रजनन दर में गिरावट का प्रभाव: प्रजनन दर में गिरावट के साथ युवा आबादी की हिस्सेदारी घटती जाती है और यदि यह गिरावट तीव्र हो होती है तो कामकाजी आयु की आबादी में पर्याप्त वृद्धि होती है जिससे 'जनसांख्यिकीय लाभांश' प्राप्त होता है।  
    • जनसंख्या में बच्चों की छोटी हिस्सेदारी प्रति बच्चा उच्च निवेश को सक्षम बनाती है। इससे श्रम बल में भविष्य के प्रवेशकों की उत्पादकता बेहतर हो सकती है और इस प्रकार आय में वृद्धि हो सकती है।    
  • भारत की औसत आयु में वृद्धि: घटते प्रजनन दर (वर्तमान में 2.0) के साथ भारत की औसत/मध्यम आयु (Median Age) वर्ष 2011 में 24 वर्ष से बढ़कर अब 29 वर्ष हो गई है और वर्ष 2036 तक इसके 36 वर्ष हो जाने का अनुमान है।
    • ‘निर्भरता अनुपात’ (Dependency Ratio) में गिरावट—जहाँ इसके अगले दशक में 65% से घटकर 54% होने का अनुमान है (15-59 आयु वर्ग को कामकाजी आयु आबादी मानते हुए), के साथ भारत एक जनसांख्यिकीय ट्रांजिशन (Demographic Transition) के मध्य में है। 
  • जनसांख्यिकीय ट्रांजिशन का GDP पर प्रभाव: भारत का जनसांख्यिकीय ट्रांजिशन तीव्र आर्थिक विकास का अवसर प्रदान करता है।  
    • हालाँकि भारत में जनसांख्यिकीय ट्रांजिशन से सकल घरेलू उत्पाद को प्राप्त लाभ एशिया के अन्य समकक्ष देशों की तुलना में कम रहा है और यह अभी से ही संकुचित होता जा रहा है।   
      • सिंगापुर, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने शिक्षा, कौशल और स्वास्थ्य विकल्पों के मामले में युवाओं को सशक्त बनाने के लिये दूरंदेशी नीतियों को अपनाया है और असाधारण आर्थिक विकास प्राप्त किया है।
    • यह उपयुक्त नीतिगत उपाय करने की तात्कालिकता की ओर इंगित करता है। 
  • भारतीय राज्यों में अलग-अलग परिदृश्य: जबकि भारत एक युवा देश है, जनसंख्या की आयु में वृद्धि की स्थिति और गति विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। जनसांख्यिकीय ट्रांजिशन के विषय में उन्नत दक्षिणी राज्यों में वृद्ध लोगों का प्रतिशत अधिक हो चुका है। 
    • जबकि केरल की जनसंख्या प्रौढ़ होती जा रही है, बिहार में कामकाजी आयु वर्ग के वर्ष 2051 तक वृद्धि करने का अनुमान किया गया है। 
      • वर्ष 2031 तक 22 प्रमुख राज्यों में से 11 में हमारी विशाल कामकाजी आयु आबादी का समग्र आकार घट चुका होगा।
    • आयु संरचना में अंतर विभिन्न राज्यों के आर्थिक विकास और स्वास्थ्य में अंतर को दर्शाता है।

युवा क्षमता के दोहन के मार्ग की बाधाएँ

  • भारत में निम्न प्रति व्यक्ति उपभोग और व्यय की स्थिति: भारत में एक बच्चा 20 से 64 आयु वर्ग के वयस्क द्वारा किये जाने वाले उपभोग का लगभग 60% उपभोग करता है, जबकि इसकी तुलना में चीन में एक बच्चे का उपभोग लगभग 85% है।     
    • एशिया में भारत निजी और सार्वजनिक मानव पूंजी व्यय के मामले में अत्यंत पिछड़ा हुआ है। 
      • भारत का स्वास्थ्य व्यय भी उसकी आर्थिक वृद्धि के साथ सामंजस्य नहीं रखता। स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 1% पर ही स्थिर बना हुआ है। 
  • उपयुक्त नीतियों के अभाव का प्रभाव: उपयुक्त नीतियों के अभाव में कामकाजी आयु आबादी में वृद्धि से बेरोज़गारी बढ़ सकती है जो आर्थिक एवं सामाजिक जोखिम बढ़ा सकते हैं।    
    • भारत पहले से ही विभिन्न कल्याणकारी नीतियों और कार्यक्रमों के बदतर कार्यान्वयन का शिकार है।
  • अपूर्ण शैक्षिक आवश्यकताएँ: शिक्षा में लैंगिक असमानता चिंता का विषय है, क्योंकि भारत में बालिकाओं की तुलना में बालक माध्यमिक और तृतीयक स्तर के विद्यालयों में नामांकित होने की अधिक संभावना रखते हैं।  
    • तुलनात्मक रूप से फिलीपींस, चीन और थाईलैंड में विलोम स्थिति है, जबकि जापान, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया में लिंग अंतर बेहद कम है।
  • कौशल उन्नयन का अभाव: यूनिसेफ की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार कम-से-कम 47% भारतीय युवा उस  शिक्षा और कौशल प्राप्ति की राह पर नहीं हैं जो वर्ष 2030 में रोज़गार पाने के लिये आवश्यक होंगे।    
    • जबकि भारत के 95% से अधिक बच्चे प्राथमिक विद्यालय में नामांकित हैं, NFHSs इस बात की पुष्टि करते हैं कि सरकारी स्कूलों में बदतर बुनियादी ढाँचे, बच्चों में कुपोषण और विद्यालयों में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी ने सीखने की क्षमता या ‘लर्निंग आउटकम’ को प्रभावित किया है।   

आगे की राह

  • शिक्षा मानकों का उन्नयन: ग्रामीण या शहरी स्थिति से परे सार्वजनिक विद्यालय प्रणाली को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि प्रत्येक बच्चा हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करे और बाज़ार की मांग के अनुरूप उपयुक्त कौशल, प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा की ओर आगे बढ़ाया जाए।   
    • स्कूल के पाठ्यक्रम का आधुनिकीकरण, मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज़ (MOOCS) के साथ वर्चुअल क्लासरूम स्थापित करने के लिये नई प्रौद्योगिकी का उपयोग और ओपन डिजिटल यूनिवर्सिटीज़ में निवेश से उच्च शिक्षित कार्यबल प्राप्त करने में मदद मिलेगी।       
  • स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना: भारत में वृद्धों की आबादी वर्ष 2011 में 8.6% से दोगुनी होकर वर्ष 2040 में 16% हो जाने का अनुमान है। यह सभी प्रमुख राज्यों सहित भारत में अस्पताल बिस्तरों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता को तेज़ी से कम करेगा, यदि स्वास्थ्य प्रणालियों में निवेश के माध्यम से इन कमज़ोरियों को संबोधित नहीं किया जाएगा। 
    • स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये अधिक वित्तपोषण के साथ-साथ उपलब्ध वित्त से बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है; साथ ही, प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को अधिकार-आधारित दृष्टिकोण से सुलभ बनाया जाना चाहिये।      
  • कार्यबल में लैंगिक अंतर को दूर करना: 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में महिलाओं और बालिकाओं की भागीदारी के लिये नए कौशलों एवं अवसरों की तत्काल आवश्यकता है। इसके लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं: 
    • जेंडर डिसएग्रीगेटेड डेटा और नीतियों पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करने हेतु कानूनी रूप से अनिवार्य जेंडर बजटिंग करना 
    • बाल देखभाल लाभ की वृद्धि करना
    • अंशकालिक कार्य के लिये कर प्रोत्साहन को बढ़ावा देना
  • विविध राज्यों के लिये संघीय दृष्टिकोण: जनसांख्यिकीय लाभांश हेतु शासनिक सुधारों के लिये एक नए संघीय दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता होगी ताकि प्रवासन, प्रौढ़ आयु वृद्धि, कौशल, महिला कार्यबल भागीदारी और शहरीकरण जैसे उभरते हुए विभिन्न जनसंख्या संबंधी मुद्दों पर राज्यों के बीच नीति समन्वय स्थापित किया जा सके।        
    • इस व्यवस्था में रणनीतिक योजना, निवेश, निगरानी और पाठ्यक्रम सुधार के लिये अंतर-मंत्रालयी समन्वय पर विशेष ध्यान देना होगा।
  • अंतर-क्षेत्रीय सहयोग: किशोरों के भविष्य की सुरक्षा की दिशा में आगे बढ़ते हुए बेहतर अंतर-क्षेत्रीय सहयोग के तंत्र स्थापित करना अनिवार्य है। 
    • उदाहरण के लिये, विद्यालय में मध्याह्न भोजन योजना का कार्यान्वयन इस बात का साक्ष्य है कि किस प्रकार बेहतर पोषण बेहतर लर्निंग आउटकम का सृजन करता है। विभिन्न अध्ययनों ने पुष्टि की है किशोरों में पोषण और संज्ञानात्मक उपलब्धि के बीच मज़बूत संबंध पाए जाते हैं।    
      • किशोरों के समक्ष विद्यमान संकट से निपटने के लिये विभिन्न विभागों के बीच समन्वय बेहतर समाधानों और वृहत क्षमताओं को सक्षम कर सकता है। 
    • स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालय आपसी समन्वय से महत्त्वपूर्ण सूचना का प्रसार कर सकते हैं जो किशोरों को उनके स्वास्थ्य की रक्षा और सीखने की क्षमता के संबंध में सहायता देगा।   

निष्कर्ष

पथ-प्रदर्शक नवाचार की संभावना से परिपूर्ण भारत के युवा देश के विकास के लिये एक वृहत अवसर प्रदान करते हैं। इस परिदृश्य का सर्वोत्तम उपयोग करने में सक्षम होने के लिये नीतियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वे मानव विकास और जीवन स्तर की वृद्धि पर लक्षित सभी पहलुओं को व्यापक रूप से कवर करें और इस तेज़ी से विकास करते राष्ट्र के दूरस्थ कोनों तक पहुँच सकें।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत द्वारा अपनाई गई नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन यह सुनिश्चित करेगा कि जनसांख्यिकीय लाभांश, जो एक समय-सीमित अवसर है, भारत के लिये वरदान बन जाए।’’ चर्चा कीजिये।

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