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मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा

  • 03 Dec 2020
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने छात्रों को अपनी मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने हेतु  रोडमैप तैयार करने के लिये एक कार्य दल (Task Force) का गठन किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • कार्य दल-
    • अध्यक्षता: इसकी स्थापना सचिव, उच्च शिक्षा, अमित खरे की अध्यक्षता में की जाएगी।
    • उद्देश्य: इसका उद्देश्य प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण- छात्र अपनी मातृभाषा में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों जैसे- चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कानून आदि में आगे बढ़ सकें, को प्राप्त करना है।
      • यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का हिस्सा है जो कक्षा 8 तक क्षेत्रीय भाषा में पढ़ने और पाठ्यक्रम को एक ऐसी भाषा में तैयार करने पर केंद्रित है कि वह छात्र के लिये सहज हो।
    • कार्य: यह विभिन्न हितधारकों द्वारा दिये गए सुझावों को ध्यान में रखेगा और एक माह में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
  • क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने का कारण
    • रचनात्मकता को बढ़ाना: यह देखा गया है कि मानव मस्तिष्क उस भाषा में सहजता से ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम होता है जिसमें वह बचपन से सोच-विचार का आदी होता है।
      • जब छात्रों को क्षेत्रीय भाषाओं में समझाया जाता है, विशेषकर मातृभाषा में तो वे विचारों की अभिव्यक्ति या उसे सरलता से ग्रहण कर लेते हैं।
    • कई देशों द्वारा अभ्यासरत: विश्व के कई देशों में कक्षाओं में शिक्षण कार्य विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में किया जाता है, चाहे वह फ्राँस, जर्मनी, रूस या चीन जैसे देश हों, जहाँ 300 से अधिक भाषाएँ और बोलियाँ हैं।
    • समावेशी बनाना: यह सामाजिक समावेशिता, साक्षरता दर में सुधार, गरीबी में कमी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में मदद करेगा। समावेशी विकास के लिये भाषा एक उत्प्रेरक का कार्य कर सकती है। मौजूदा भाषायी बाधाओं को हटाने से समावेशी शासन के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
  • मुद्दे: क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिये शिक्षकों को ऑडियो ट्रांसलेशन टूल्स से तकनीकी सहायता के अलावा अंग्रेज़ी, पाठ्यपुस्तकों और क्षेत्रीय भाषाओं में संदर्भ सामग्री के साथ-साथ शाब्दिक माध्यम में कुशल होने की आवश्यकता होगी।
  • क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहलें
    • हाल ही में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक मुख्य पहल  है।
    • वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology-CSTT) क्षेत्रीय भाषाओं में विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन को बढ़ावा देने हेतु प्रकाशन अनुदान प्रदान कर रहा है।
      • इसकी स्थापना वर्ष 1961 में सभी भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली विकसित करने के लिये की गई थी।
    • केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages- CIIL), मैसूर के माध्यम से राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (National Translation Mission- NTM) का क्रियान्वयन किया जा रहा है, जिसके तहत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में निर्धारित विभिन्न विषयों की पाठ्य पुस्तकों का आठवीं अनुसूची में शामिल  सभी भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है।
      • CIIL की स्थापना वर्ष 1969 में शिक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत की गई थी।
    • भारत सरकार द्वारा लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये 'लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना' (SPPEL) का कार्यान्वयन किया जा रहा है।
    • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) देश में उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने का प्रयास करता है और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं हेतु केंद्र की स्थापना से संबंधित योजना के तहत कुल नौ केंद्रीय विश्वविद्यालयों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
    • हाल ही में केरल राज्य सरकार द्वारा शुरू किये गए ‘नमथ बसई’ कार्यक्रम ने राज्य के जनजातीय बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने हेतु मातृभाषाओं को अपनाने में सहायता प्रदान कर महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
  • वैश्विक प्रयास
    • वर्ष 2018 में चीन के चांग्शा (Changsha) शहर में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन- यूनेस्को (UNESCO) की ‘युएलु घोषणा’ (Yuelu Proclamation) ने अल्पसंख्यक भाषाओं और विविधता की रक्षा के लिये दुनिया भर के देशों का मार्गदर्शन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2019 को ‘स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष’ के रूप में घोषित किया था। 
      • इसका उद्देश्य राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वदेशी भाषाओं का संरक्षण, उनका समर्थन करना और उन्हें बढ़ावा देना है।

स्थानीय भाषाओं की रक्षा हेतु संवैधानिक और कानूनी अधिकार

  • अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण) यह उपबंध करता है कि भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों को अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा।
  • अनुच्छेद 120 (संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा) संसदीय कार्यवाही हेतु हिंदी या अंग्रेज़ी भाषा के उपयोग का प्रावधान करता है, लेकिन साथ ही संसद सदस्यों को अपनी मातृभाषा में अभिव्यक्ति का अधिकार प्रदान करता है।
  • भारतीय संविधान का भाग XVII, अनुच्छेद 343 से 351 तक आधिकारिक भाषाओं से संबंधित है।
    • अनुच्छेद 350A (प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा): इसके मुताबिक प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषायी अल्पसंख्यकों के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेंगे।
    • अनुच्छेद 350B (भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये विशेष अधिकारी): भारत के राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अधीन भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करने और इस संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी। राष्ट्रपति ऐसे सभी प्रतिवेदनों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत करेगा और संबंधित राज्यों की सरकारों को भिजवाएगा।
    • अनुच्छेद 351 (हिंदी भाषा के विकास के लिये निदेश) केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के विकास के लिये निर्देश जारी करने की शक्ति देता है।
  • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है: असमिया, उड़िया, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, गुजराती, डोगरी, तमिल, तेलुगू, नेपाली, पंजाबी, बांग्ला, बोडो, मणिपुरी, मराठी, मलयालम, मैथिली, संथाली, संस्कृत, सिंधी और हिंदी।
  • शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के मुताबिक जहाँ तक संभव हो शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृभाषा होनी चाहिये।

आगे की राह

  • दुनिया भर के विभिन्न देशों ने अपनी मातृभाषा को सफलतापूर्वक अंग्रेज़ी के साथ प्रतिस्थापित कर दिया है, और वे विश्व-स्तरीय वैज्ञानिकों, शोधकर्त्ताओं, अनुसंधानकर्त्ताओं और विचारकों को तैयार करने में सक्षम हैं। भाषा की बाधा केवल तभी तक रहती है जब तक कि संबंधित भाषा का प्रयोग करने वाले लोगों को उस भाषा में ज्ञान के सृजन हेतु उचित प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है, अतः आवश्यक है कि सरकार द्वारा स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के लिये उन भाषाओं में मूल वैज्ञानिक लेखों और पुस्तकों के प्रकाशन को प्रोत्साहित किया जाए।
  • साथ ही कई अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि यदि बच्चों को छोटी उम्र में ही सिखाया जाए तो वे कई सारी भाषाएँ सीख सकते हैं। इस तरह अंग्रेज़ी भाषा के ज्ञान को नज़रअंदाज किये बिना भी क्षेत्रीय भाषाओं में बच्चों को उच्च-स्तरीय ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। यह याद रखना महत्त्वपूर्ण है कि अंग्रेज़ी ऐसी  एकमात्र भाषा नहीं है, बल्कि यह उन भाषाओं में से एक है, जो कि बच्चों को विश्व में भागीदार बनने और उसका अनुभव करने में मदद कर सकती है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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