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आकाशीय बिजली (तड़ित) संबंधी घटनाएँ

  • 13 Jul 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये 

आकाशीय बिजली, जलवायु परिवर्तन 

मेन्स के लिये

आकाशीय बिजली (तड़ित) की प्रक्रिया एवं प्रकार, जलवायु परिवर्तन का आकाशीय बिजली की घटनाओं पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश के विभिन्न हिस्सों में आकाशीय बिजली गिरने की अलग-अलग घटनाओं में तीस लोगों की मौत हो गई।

  • प्राकृतिक कारणों से होने वाली आकस्मिक मौतों में आकाशीय बिजली का सबसे बड़ा योगदान है।

प्रमुख बिंदु 

परिचय :

  • आकाशीय बिजली/तड़ित का तात्पर्य वातावरण में विद्युत के तीव्र प्रवाह और बड़े पैमाने पर निर्वहन से है। इसका कुछ भाग पृथ्वी की ओर निर्देशित होता है। यह बादल के ऊपरी हिस्से और निचले हिस्से के बीच प्राकृतिक रूप से न्यूनतम अवधि के विद्युत निर्वहन और उच्च आवेश के प्रक्रिया का परिणाम है। 
    • इंटर क्लाउड या इंट्रा-क्लाउड (Intra-Cloud) बिजली दृश्यमान और हानिरहित होती है।
    • क्लाउड टू ग्राउंड (Cloud to Ground)  बिजली हानिकारक होती है क्योंकि 'उच्च विद्युत आवेश तथा विद्युत प्रवाह' इलेक्ट्रोक्यूशन उत्पन्न करता है।

प्रक्रिया :

  • यह बादल के ऊपरी हिस्से और निचले हिस्से के बीच विद्युत आवेश के अंतर का परिणाम है।
    • बिजली उत्पन्न करने वाले बादल आमतौर पर लगभग 10-12 किमी. की ऊँचाई पर होते हैं, जिनका आधार पृथ्वी की सतह से लगभग 1-2 किमी. ऊपर होता है। शीर्ष पर तापमान -35 डिग्री सेल्सियस से -45 डिग्री सेल्सियस तक होता है।
  • चूँकि जलवाष्प ऊपर की ओर उठने की प्रवृत्ति रखता है, यह तापमान में कमी के कारण जल में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिससे जल के अणु और ऊपर की ओर गति करते हैं। 
  • जैसे-जैसे वे शून्य से कम तापमान की ओर बढ़ते हैं, जल की बूंँदें छोटे बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाती हैं। चूँकि वे ऊपर की ओर बढ़ती रहती हैं, वे तब तक एक बड़े पैमाने पर इकट्ठा होती जाती हैं, जब तक कि वे इतने भारी न हो जाए कि नीचे गिरना शुरू कर दें।
  • यह एक ऐसी प्रणाली की ओर गति करती है जहाँ बर्फ के छोटे क्रिस्टल ऊपर की ओर, जबकि बड़े क्रिस्टल नीचे की ओर गति करते हैं। इसके चलते इनके मध्य टकराव होता है तथा इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं, यह विद्युत स्पार्क के समान कार्य करता है। गतिमान मुक्त इलेक्ट्रॉनों में और अधिक टकराव होता जाता है एवं इलेक्ट्रॉन बनते जाते हैं; यह एक चेन रिएक्शन का निर्माण करता है।
  • इस प्रक्रिया के कारण एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें बादल की ऊपरी परत धनात्मक रूप से आवेशित हो जाती है, जबकि मध्य परत नकारात्मक रूप से आवेशित होती है।

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  • थोड़े समय में ही दोनों परतों के बीच एक विशाल विद्युतधारा (लाखों एम्पीयर) बहने लगती है।
    • इससे ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिससे बादल की दोनों परतों के बीच मौजूद वायु गर्म होने लगती है।
    • इस ऊष्मा के कारण दोनों परतों के बीच वायु का खाका बिजली के कड़कने के दौरान लाल रंग का नज़र आता है।
    •  गर्म हवा विस्तारित होती है और आघात उत्पन्न करती है जिसके परिणामस्वरूप गड़गड़ाहट की आवाज़ आती है।

पृथ्वी की सतह पर बिजली का गिरना:

  • पृथ्वी विद्युत की सुचालक है। वैद्युत रूप से तटस्थ होने पर यह बादल की मध्य परत की तुलना में अपेक्षाकृत धनात्मक रूप से आवेशित होती है। इसके परिणामस्वरूप वर्तमान प्रवाह का अनुमानित 20-25% पृथ्वी की ओर निर्देशित होता है।
    • इस वर्तमान प्रवाह के परिणामस्वरूप जीवन और संपत्ति को नुकसान होता है।
  • इस बिजली के ज़मीन पर उठी हुई वस्तुओं जैसे-पेड़ या इमारत से टकराने की अधिक संभावना होती है।
    • ‘लाइटनिंग कंडक्टर’ एक उपकरण है जिसका उपयोग इमारतों को बिजली के प्रभाव से बचाने के लिये किया जाता है। भवन के निर्माण के दौरान इसकी दीवारों में भवन से ऊँची धातु की छड़ लगाई जाती हैं ।
  • पृथ्वी पर सबसे अधिक बिजली गिरने की गतिविधि वेनेज़ुएला में माराकाइबो झील के तट पर देखी जाती है।
    • जिस स्थान पर कैटाटुम्बो नदी माराकाइबो झील में गिरती है, वहाँ हर वर्ष औसतन 260 तूफान आते हैं और अक्तूबर में हर मिनट में 28 बार बिजली चमकती है - इस घटना को ‘बीकन ऑफ माराकाइबो’ या चिरस्थायी तूफान कहा जाता है।

जलवायु परिवर्तन और आकाशीय बिजली:

  • वर्ष 2015 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में इस बात को लेकर चेतावनी दी गई कि तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने से  आकाशीय बिजली के गिरने की आवृत्ति में 12% की वृद्धि होगी।
  • मार्च 2021 में जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक अध्ययन में भी  आर्कटिक क्षेत्र में हो रहे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और बिजली गिरने की बढ़ती आवर्तियों के मध्य संबंध बताया गया है।
    • वर्ष 2010 से  2020 के मध्य गर्मियों के महीनों के दौरान आकाशीय बिजली गिरने की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई जो वर्ष 2010 में 18,000 से बढ़कर वर्ष 2020 तक  1,50,000 से अधिक हो गई।
  • अत: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मैनेजमेंट ( Indian Institute of Tropical Management- IITM) ने भी बिजली गिरने की घटनाओं में वृद्धि को सीधे तौर पर जलवायु संकट और ग्लोबल वार्मिंग के कारण ज़मीन पर अधिक नमी की उपलब्धता से संबंधित माना है।
    • पुणे स्थित IITM भारत का एकमात्र संस्थान है जो पूर्ण रुप से गरज और आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं पर कार्य करता है।

भारत में आकाशीय बिजली की घटनाओं में वृद्धि:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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